Home लेखक और लेखराजीव मिश्रा परिवर्तन और विषैलावामपंथ

परिवर्तन और विषैलावामपंथ

242 views
अक्सर कोई परिवर्तन की आवश्यकता के पक्ष में बोलता है तो लोग उसे वामपन्थी बोलते हैं. वामियों की सबसे बड़ी सफलता यह रही है कि वे अपने आपको परिवर्तनशील, प्रोग्रेसिव और उदारवादी घोषित किये हुए हैं और हम सब अनजाने में उन्हें सारे परिवर्तनों का श्रेय देने में लग जाते हैं.
जबकि सच तो यह है कि परिवर्तन होने ही हैं और होकर रहेंगे. राजनीतिक वामपन्थ की शुरुआत ही सामंतवाद के पतन की प्रतिक्रिया से हुई है. जबतक पश्चिम में सामंतवाद था, दुनिया में एक व्यवस्था थी जिसमें लोगों का स्थान जन्म से ही धनी और गरीब, ऊँचा और नीचा निर्धारित हो जाता था. जब औद्योगिक क्रांति हुई तो पूँजीवाद आया जब कोई भी व्यक्ति श्रम और उद्यम से धनी बन सकता था. इसकी प्रतिक्रिया में वामपन्थ आया जो मूलतः सामंती व्यवस्था को दूसरे रूप में वापस लागू करने का एक प्रयास है. वामपन्थ ने समझा है कि परिवर्तन तो होते रहेंगे, परिवर्तनों की दिशा भी लगभग वही रहेगी जो रहनी है…लेकिन अगर उन परिवर्तनों के आसपास जो नैरेटिव बनता है उनपर कंट्रोल रखा जा सके तो उसका लाभ उठा कर सत्ता पर कब्जा बनाये रखा जा सकता है.
दुनिया में जो भी परिवर्तन आये हैं, वामपन्थ उनका श्रेय लेता है. लेकिन सत्य तो यह है कि उन्हें लाने में वामपन्थ का कोई रोल नहीं है. दुनिया में साम्राज्यवाद मिटा तो इसलिए मिटा कि साम्राज्यवादी शक्तियों ने एक नए किस्म के साम्राज्यवाद के लिए व्यवस्था कर ली थी. दासता खत्म हुई तो इसलिए खत्म हुई क्योंकि दास रखना फायदे की बात नहीं रह गयी थी. भारत में छुआछूत खत्म हुआ तो इसलिए खत्म हुआ क्योंकि उसे खत्म होना ही था…जो समाज स्वतंत्रता के लिए लड़ रहा था वह समाज छुआछूत को बर्दाश्त कर ही नहीं सकता था. स्त्रियों की अवस्था में सुधार आया क्योंकि समाज दासता और इस्लामिक शासन से मुक्त हुआ तो स्त्रियों ने स्वयं को पहले से अधिक सुरक्षित पाया और आगे बढ़ने के अवसर खुले. गरीबी मिटेगी तो औद्योगिक विकास से मिटेगी. इन सारे परिवर्तनों में वामपन्थ का कोई योगदान नहीं है. लेकिन श्रेय लेने का समय आता है तो वे सबका श्रेय लेने का प्रयास अवश्य करते हैं, चाहे पहले खुद सबमें कितने भी रोड़े अटकाए हों.
क्योंकि वे समझ गए हैं कि चेंज से लड़ा नहीं जा सकता. इसलिए वे चेंज को मैनेज करते हैं. इसके आसपास के नैरेटिव को मैनेज करते हैं. जबकि हममें से कई चेंज को रेसिस्ट करते हैं. परिवर्तन का प्रतिकार एक प्राकृतिक प्रवृति है, नी-जर्क रिएक्शन है. और इस एक क्षण में जब हम इससे एडजस्ट कर रहे होते हैं, वामपन्थ इसे लपक लेता है, अपनी ओर मोड़ लेता है…और हम इंटेलेक्चुअल लड्डाइट बने रह जाते हैं.
चेंज-मैनेजमेंट एक नया चैलेंज है. हमें समझने की आवश्यकता है कि क्या परिवर्तन अवश्यम्भावी हैं…उन्हें स्वयं लेकर आइये. इसके पहले कि वह दरवाजा तोड़ कर अंदर घुस आए, उसे दरवाजा खोल कर अंदर लाइये, और उसके बैठने की जगह आप निर्धारित कीजिये. वरना परिवर्तन किसी और की ऊँगली पकड़ कर आएगा और उसकी बात सुनेगा.

Related Articles

Leave a Comment