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परिवार और सरकार

रिवेश प्रताप सिंह

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जब उनकी कुछ कर गुजरने की उमर थी तब वो गांव में परधानी लड़ाने में व्यस्त थे। जब कुछ जीतने, पाने, कमाने का अंतिम वक्त था तब वो पर्चा दाखिला, टेंडर और विधायक जी के साथ फोटो खिंचाने में मशगूल थे।
यही सब करते-कराते उमर तीन दशक पार कर गयी और उनका बड़ा भतीजा… जिसको वो साइकिल पर बिठाकर स्कूल छोड़ते थे। इक्कीस की उमर तक यूपीपी में सलेक्ट हो गया।
पूरा गांव गवाह है कि भतीजे के सिपाही बनने पर चाचा ने दस-दस किलो के दो बकरे हलाल करवावे और अपने जीवन भर के अर्जित सम्बन्धों के उदर क्षेत्र में हाहाकार मचा दिया।
वो भतीजे के ज्वानिंग का दिन था जब चाचा, खुद अपने दोस्त के बहनोई की बुलेट मांगकर 170 किलोमीटर नॉनस्टॉप चलाकर मुख्यालय उसकी रिपोर्टिंग किये।
अब जब भतीजा सिपाही हो गया तो वरदखूआ का गिरना वैसे ही है जैसे सरसो पर माहो। शादी के रिश्ते तर-ऊपर!!लेकिन उनकी भौजाई!! अपने देवर के अविवाहित होने हवाला देकर सब विआह टाल जातीं।
वो दिन कयामत का था जब एक बंका वाली पार्टी ने टॉप मॉडल बोलोरो और पांच लाख नगद की पेशकश की। वहीं पेशकश, चाचा के इज्ज़त में पेंचकस लगा गयी।
चाचा जब शाम को घर आये तब दूसरी कयामत आयी। हांलांकि चाचा को बोलोरो का बहुत शौक था लेकिन जहर और जलालत की शर्त पर बोलोरो! कदापि नहीं।
चाचा ने पहली बार रात की थाली सरका कर किनारे कर दिया..वह भी तब, जब उनको मैनेज करने के लिए उनके कटोरे में एक मुर्गे की दोनों टांगें हाजिर थीं।
गजब तो तब हो गया जब भतीजा छुट्टी पर घर आया और चाचा का पैर छूकर बोला- ” “चाचू आपके लिए गोल्डन शेरवानी चूज किये हैं।”
चाचा को ऐसा लगा जैसे शेरवानी न हुआ कोई घोड़े पर घुमाने-बिठाने के नाम पर मेले में लकड़ी के घोड़े पर बिठाने को कह रहा हो। चाचा ने उस वक्त तो कुछ नहीं कहा लेकिन उनके तकियों पर उनके आंसुओ की गहरी लकीरें सालों तक उनके दर्द की गवाही देती रहीं।
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मित्रों! रोजगार (नौकरी) और विवाह (पत्नी) जब तक अन्तिम व्यक्ति के हिस्से में नहीं पहुंच जाती तब तक, हम सब को समाज की दर्दनाक कराह का सामना करना पड़ेगा।
मान लिजिए 99 लोगों का विवाह हो गया लेकिन एक व्यक्ति कुंवारा है। तो उस एक व्यक्ति की मार्मिक कराह 99 विवाहितों के डबल बेड की चूलें हिला देने के लिए पर्याप्त हैं।
सरकार या परिवार दोनों चाहते हैं कि अगला रोज़गार और विवाह से संतृप्त हो जाये लेकिन लाख प्रयास के बाद भी यह संभव नहीं हो पाता। हांलांकि यह स्वीकार करना पड़ेगा कि कमियां सरकार की भी हैं कुछ परिवार की भी और कुछ उनकी भी जो अपना कीमती वक्त दूसरे को ब्लाक प्रमुख बनाने में गवां देंगे हैं।
कुलमिलाकर यह बेहद ही संवेदनशील मामला है जिसे सरकार और परिवार दोनों को ध्यान में रखना चाहिए।

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