Home आर ऐ -ऍम यादव ( राज्याध्यक्ष) परिवार पितृसत्तावादी नहीं होता… | प्रारब्ध

परिवार पितृसत्तावादी नहीं होता… | प्रारब्ध

लेखक - आर ए एम देव

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परिवार पितृसत्तावादी नहीं होता बल्कि महिलाओं के लिए सब से बेहतर व्यवस्थ परिवार ही है। जब परिवार टूटते हैं तो पुरुषों के लिए तो मजे होते है, बस ऐश करो, ऐय्याशी करो, कोई जिम्मेदारी नहीं। महिलायें ही खुद को निराधार पाती हैं, ज़िंदगी अकेले में बीतती है, भूख और बुराई का शिकार होती हैं।
यह तो वामी प्रॉपगंडा की ताकत है कि हमें यह सब देखने नहीं दिया जाता।
परिवार ही महिला का सब से सुरक्षित गढ़ था और है।
बचपन में सुनी एक लोककथा याद आती है। दीवार में एक सुराख दिखता है और एक आदमी कुतूहलवश उसमें हाथ डालता है। असलमें अंदर एक ततैया का छत्ता है और इसका हाथ अंदर आता है तो वे काटती भी हैं। वो हाथ निकल लेता है लेकिन सच नहीं बताता; जकूटह बोल देता है कि अंदर सोने के सिक्के हैं, और अपनी जेब से एक सिक्का निकालकर दिखाता भी है।
और एक आदमी भी हाथ डालता है और उसे भी वही अनुभव होता है और वो भी वियसी ही घोषणा करता है।
असल में सभी लिबरेटेड महिलाओं को अपनी कहानी कहानी का मौका नहीं दिया जाता। केवल कुछ सक्सेस स्टोरीज को सभी मैगजीन, चैनल आदि में प्रचारित किया जाता है। हर एक सक्सेस के पीछे हजारों ऐसी भ होती हैं जो शहरों की चकाचौंध के तले बहती नालियों में बहती जाती हैं।
अविवाहित माता बनकर नीना गुप्ता को एक बोल्ड सेलेब्रिटी स्टेटस दिया गया। लेकिन जब उसने कहा कि विवाह जरूरी है और हर युवती को सही उम्र में विवाह कर लेना चाहिए, वो खबर सत्रहवे पन्ने के निचले कोने के अंतिम परिच्छेद में दो लाइन की बनकर रह गई।

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