लोगों ने , तमाम वकीलों ने मुझे
दी और कहा कि खरे की नौटंकी अब खत्म । परसों तक आप का कम्प्लायन्स हो जाएगा । सचमुच उस दिन पी के खरे अपने काले चेहरे पर कमीनापन पोते हुए , लाल टीका लगाए कोर्ट में उपस्थित दिखे । पूरे ठाट में थे । ज्यों ऐज केस नंबर वन पर मेरा केस टेक अप हुआ , बुलबुल सी बोलने वाली सुंदर देहयष्टि वाली , बड़े-बड़े वक्ष वाली एक वकील साहिबा खड़ी हो गईं , वकालतनामा लिए कि अपोजिट पार्टी फला की तरफ से मैं केस लडूंगी । मुझे केस समझने के लिए , समय दिया जाए । पालोक बसु उन्हें समय देते हुए नेक्स्ट केस की सुनवाई पर आ गए । मैं हकबक रह गया । पता चला बुलबुल सी आवाज़ वाली मोहतरमा वकील की देह गायकी में पालोक बसु सेट हो चुके थे । मेरा केस बाकायदा जयहिंद हो चुका था । बाद में यह पूरा वाकया मैं ने अपने उपन्यास अपने-अपने युद्ध में दर्ज किया । इस से हुआ यह कि बुलबुल सी आवाज़ वाली मोहतरमा जस्टिस होने से वंचित हो गईं । मोहतरमा सारी कलाओं से संपन्न थीं ही , रसूख वाली भी थीं । सो जस्टिस के लिए इन का नाम तीन-तीन बार पैनल में गया । लेकिन उन का नाम इधर पैनल में जाता था , उधर उन के शुभचिंतक लोग मेरे उपन्यास अपने-अपने युद्ध के वह पन्ने जिस में उन का दिलचस्प विवरण था , फ़ोटोकापी कर राष्ट्रपति भवन से लगायत गृह मंत्रालय , कानून मंत्रालय और सुप्रीम कोर्ट भेज देते । हर बार वह फंस गईं और जस्टिस होने से वंचित हो गईं । संयोग यह कि जिस नए अख़बार में बाद में मैं गया , वहां वह पहले ही से पैनल में थीं । वहां भी मेरी नौकरी खाने की गरज से मैनेजमेंट में मेरी ज़बरदस्त शिकायत कर बैठीं । मैं ने उन्हें संक्षिप्त सा संदेश भिजवा दिया कि मुझे तो फिर कहीं नौकरी मिल जाएगी पर वह अभी एक छोटे से हवा के झोंके में फंसी हैं , लेकिन अगर उन के पूरे जीवन वृत्तांत का विवरण किसी नए उपन्यास में लिख दिया तो फिर उन का क्या होगा , एक बार सोच लें। सचमुच उन्हों ने सोच लिया। और खामोश हो गईं। मैं ने उस संस्थान में लंबे समय तक नौकरी की।