Home अमित सिंघल प्रधानमंत्री मोदी के शासनकाल में गण का तंत्र साकार हुआ है।

प्रधानमंत्री मोदी के शासनकाल में गण का तंत्र साकार हुआ है।

by अमित सिंघल
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इस प्रश्न पे विचार कीजिये। एक कांस्टेबल सड़क पे इशारा करता है, तो ट्रैफिक रूक जाता हैं। लेकिन यदि यही कार्य आप करे तो लोग आपको इग्नोर करके आगे बढ़ जाएंगे। ऐसा क्यों होता है? उस पुलिस वाले की अथॉरिटी का आधार आखिर क्या है?
इसी प्रकार से एक सरकारी शिक्षिका आपके पास जनगणना के समय जानकारी मांगने या मतदाता सूची को अपडेट करने के लिए आएगी। आप उसे यह कार्यवाही क्यों करने देते हैं? अगर आप किसी अनजान व्यक्ति से ऐसी व्यक्तिगत जानकारी मांगे, तो क्या आप को वह सूचना मिल जायेगी?
मेरा पूछने का तात्पर्य यह है कि ऐसी कौन सी “शक्ति” या “अथॉरिटी” उन अधिकारियों और कर्मचारियों में होती है जिसके कारण भारत के सभी नागरिक उनकी आज्ञा का पालन करते हैं? और ना करने पर दंड का प्रावधान है। आखिर उनकी “अथॉरिटी” का श्रोत क्या है?
आप कहेंगे उनको यह अथॉरिटी सरकार से मिली है। लेकिन सरकार कौन है और कैसे वह “सरकार” हो गई?
और फिर लोकतंत्र में किसी भी सरकार को सौ प्रतिशत मत कहीं नहीं मिलता। कुछ ना कुछ नागरिक उस सरकार के विरोध में हमेशा खड़े रहेंगे। तो आप उन नागरिकों को कैसे उस सरकार की सत्ता या अथॉरिटी मानने के लिए बाध्य कर सकते हैं?
आप कहेंगे कि हम 130 करोड़ भारतीय संप्रभु हैं; यानि कि लोकतंत्र में सत्ता या अथॉरिटी का निवेश हम में है; उस अथॉरिटी का स्रोत हम है।
कैसे भारत के 130 करोड़ नागरिकों की सम्प्रभुता – “वास्तविक इच्छा” या real will – को पहचाना जाए और उसे लागू किया जाए?
कैसे 130 करोड़ भारतीयों की आकांक्षाओं और अभिलाषाओं – संप्रभुता या सर्वोच्च शक्ति – का निचोड़ निकालकर उसको समझा जा सके और उसका पालन किया जा सके?
उत्तर यह है कि उस संप्रभुता या सर्वोच्च शक्ति का निवेश भारत गणतंत्र के राष्ट्रपति में है। उस उच्च ऑफिस में 130 करोड़ भारतीयों की गरिमा और संप्रभुता निहित है, प्रतिबिंबित है।
छोटे से छोटा कर्मचारी भी भारत के राष्ट्रपति के नाम पर उस अथॉरिटी का निर्वहन करता है। तभी आप और हम उसके आदेशों का पालन करते हैं। इस का मतलब यह नहीं है कि आप रामलाल कांस्टेबल की बात मान रहे हैं। एक तरह से उसका अर्थ यह है कि आप भारत के राष्ट्रपति की सत्ता का सम्मान कर रहे हैं।
संविधान का 52 वा अनुच्छेद कहता है कि “भारत का एक राष्ट्रपति होगा”। पूरे संविधान में यह कहीं नहीं लिखा कि भारत का राष्ट्रपति नियुक्त होगा। जबकि उसी संविधान में लिखा है कि भारत के प्रधानमंत्री और उनके मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति करेंगे।
आखिरकार राष्ट्रपति की नियुक्ति क्यों नहीं होती। क्योंकि, क्या 130 के 130 करोड़ भारतीय अपने आप को नियुक्त कर सकते हैं?
इस लेख का उद्देश्य भारत के राष्ट्रपति के कर्तव्य और अधिकार के बारे में बतलाना नहीं है। यह तो सभी को पता है कि वह भारतीय थल सेना, नौसेना और वायुसेना के सर्वोच्च कमांडर है। उनके अनुमोदन बिना कोई भी कानून मान्य नहीं है।
भारत के राष्ट्रपति को वेतन नहीं मिलता, बल्कि emoluments – मानदेय – मिलता है जिसकी गरिमा वेतन से अधिक होती है।
कैसे आप यह सुनिश्चित करेंगे कि 130 करोड़ भारतीयों का सम्मान हो? कैसे आप यह सुनिश्चित करेंगे कि जब कोई विदेशी राजनयिक या नेता भारत आए तो उसे 130 करोड़ भारतीयों की मान और मर्यादा का सम्मान करने का अवसर मिले? और बदले में उसे भी हम भारतीयों से सम्मान मिले।
तभी राष्ट्रपति जी के उच्च ऑफिस की भव्यता और गरिमा उस गणतंत्र के सम्मान को प्रदर्शित करती है। तभी राष्ट्रपति महोदय प्रोटोकॉल से बंधे होते हैं।
पद्म सम्मान को स्वीकार करते समय जब एक किन्नर, मन्जाम्मा जोगती, राष्ट्रपति महोदय की बलैया लेती है; जब उनकी नजर उतारती है, तब वे राष्ट्र की मंगलकामना करते हुए भारत के सारे कष्ट अपने ऊपर ले रही है।
दो वर्ष पूर्व सालूमरदा थिम्माक्का ने राष्ट्रपति महोदय के सर पर हाथ रखकर राष्ट्र को आशीर्वाद दिया था।
या फिर 102 वर्षीय “नंद सर” राष्ट्रपति महोदय को आशीर्वाद देते है।
यही है गण का तंत्र (गणतंत्र) या फिर गण का राज्य (गणराज्य), जो प्रधानमंत्री मोदी के शासनकाल में साकार हुआ है !
जय हिंद!

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