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बात की शुरुआत…

by Swami Vyalok
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आप किसी भी राजनीतिक पार्टी में हों, उसके अनुरूप ही आचरण करेंगे। खासकर, प्रवक्ताओं की ट्रेनिंग तो बहुत खास होती है। उन्हें ऑन द रिकॉर्ड ही नहीं, ऑफ द रिकॉर्ड भी बोलना सिखाया जाता है। जहां तक मुझे पता है, प्रवक्ताओं की कोई तनख्वाह नहीं होती, फिर भी वे बढ़िया जीवन जीते हैं। कैसे?
सत्ता से..या सत्ता की आस से। राजनीति से। मैं बचपन से कहता आया हूं कि राजनीति पुंश्चली होती है और राजनीति का एकमात्र लक्ष्य सत्ता होता है। भड़किए मत, आराम से सोचिए।
आपने यज्ञदत्त शर्मा का नाम सुना है, जगन्नाथराव जोशी का, बलराज मधोक का सुना होगा शायद। मधोक वह थे, जिन्होंने कांग्रेस और नेहरू की आंधी में जनसंघ के बिरवे को बड़ा किया, सबसे बड़ी जीत दिलाई। उसके तुरंत बाद उन्हें निष्कासन मिला। कभी अटल-आडवाणी के बारे में उनके विचार पढ़िएगा। मजा आ जाएगा, कसम से।
मोदी आए तो आडवाणी मनमोहन सिंह बन गए थे, गाली मिलने लगी थी उनको। आडवाणी के समय अटल को आधा कांग्रेसी कहा जाता था। आज योगी आपको दिख रहे हैं, हेमंत बिस्वा दिख रहे हैं तो मोदी बेकार हो गए। त्रिपुरा के सीएम याद हैं, उनको अचानक ही पदमुक्त क्यों कर दिया गया?
राजनीति एक हिस्सा है, मात्र एक हिस्सा आपके जीवन का। आप देखिए मुसलमानों को, ईसाइयों को। सत्ता के शीर्ष पर छोड़िए, भागीदार तक नहीं रहे ढंग से वे, लेकिन आपको पामाल-परेशान करते रहे। क्यों…क्योंकि सामाजिक तौर पर वह बद्धमूल हैं, एक हैं।
आप? हा हा हा। आपमें से ही पेरियार निकलते हैं, राममोहन राय निकलते हैं, अंबेडकर निकलते हैं और आप इनको राष्ट्रनायक बनाते-मानते हैं। फुले को पढ़ा है आपने, पेरियार को….। पढ़िएगा। खून निकल आएगा, कान से। यहां तक कि लोहिया की भी कुछ बातें पढ़िएगा, ललई यादव की भी।
ये तो इतिहास है। आज ज्ञानवापी के सर्वे-रिपोर्ट पर सबसे ‘बहादुर’ और ‘प्रगतिशील’ प्रतिक्रिया देनेवालों के नाम देखिएगा, जरा। दिल्ली का वह प्रोफेसर है, लखनऊ का प्रोफेसर है। नूपुर शर्मा की गिरफ्तारी की मांग सबसे पहले जिसने की, देखिएगा कहीं उसका नाम अखिलेश यादव तो नहीं…
आप कहते हैं कि वोट दिया तो हमारा अधिकार है, आलोचना। ठीक बात। आप सड़कों पर उतरे अधिकार मांगने। क्या आपको अविमुक्तेश्वरानंद का पता है? उनके अनशन का आज तीसरा दिन है…बनारस में कितने लोग उनके पास गए हैं, ये पता कर लीजिएगा।
कानपुर में जिस जगह परसों दंगे हुए, वहां पहले हिंदू बहुसंख्यक थे। 12 हाते (कॉलोनी) थे आपके। आज बस एक बचा है, चंद्रेश्वर हाता। क्यों और कैसे बचा, पता है आपको? उसकी रणनीति को जानने की कोशिश की…
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यह सभ्यताओं की लड़ाई है। सभ्यता का फर्क है। आप अब तक यह तो तय ही नहीं कर पाए हैं कि आपको उनके साथ बरतना कैसे है, 1200 वर्षों में आप उनको समझ ही नहीं सके हैं, तो उनसे लड़ाई की तो छोड़ दीजिए।
हुड़कहुल्लूपन छोड़िए। गंभीर बनिए। जब बात अस्तित्व की हो, तो आत्मचिंतन करना चाहिए, हहुआना नहीं चाहिए।
असल बात ये जानिए कि मोदीजीवा भी हिंदू है, उसका भी डीएनए वही है और हां…वह जानता है कि किस देश का वह प्रधानमंत्री है।
आप वही नेता पाते हैं, जो डिजर्व करते हैं। (डिजर्व का हिंदी लिखता तो मजा नहीं आता)
बिहारियों ने राबड़ी तक को देखा है, भारतीयों ने नेहरू, राजीव, देवगौड़ा, मोरारजी देसाई, और गुजराल तक को।
यह देश महान है, इसे प्रणाम कीजिए।

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