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बिन तीखा सब फीका

by अमित सिंघल
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विदेशो में जब भी बाहर भोजन करता हूँ, चाहे चीनी, थाई, भारतीय, मेक्सिकन, कैरिबियन, पूर्वी या दक्षिण अफ़्रीकी क्षेत्र का रेस्टोरेंट हो, मैं वेटर से सबसे तीखा व्यंजन लाने को कहता हूँ; या फिर व्यंजन को एक्स्ट्रा तीखा बनाने को बोलता हूँ।
कारण यह है कि बिन तीखा सब फीका !
कई बार वेटर मुझे चेतावनी देते है कि मैं उनका सबसे तीखा भोजन नहीं खा पाउँगा। मैं हाथ लहरा कर बोलता हूँ कि देख लेते है क्या होगा।
जब भोजन आ जाता है तो मैं तिरछी आँख से देखता हूँ कि वेटर दूर से मुझे खाता हुआ देख रहे है; यह सोचते हुए कि मैं किसी भी समय व्यंजन वापस कर दूंगा।
लेकिन मेरे चेहरे पर शिकन तक नहीं आती। पूरा व्यंजन समाप्त कर देता हूँ; जीभ पर मिर्च या तीखेपन की बस आहट भर होती है। कोई सिसकारना नहीं; पानी पर पानी नहीं पीना; माथे पर पसीना नहीं आता।
कुछेक वेटर बाद में, अचंभित भाषा में, पूछते है कि मुझे मिर्च नहीं लगी।
मैं यूरोपियन या अमेरिकन रेस्टोरेंट में तीखा भोजन नहीं मंगाता क्योकि इन देशो की मिर्च ही मीठी होती है। इन राष्ट्रों को पता ही नहीं है कि तीखा भोजन क्या होता है। बहुत हुआ तो भारत से आयात की हुई काली मिर्च या टोबैस्को सॉस पकड़ा देंगे।
जिबूती, सोमालिया, ज़िम्बाब्वे, लेसोथो, बोत्सवाना इत्यादि देशो में पीरी-पीरी सॉस या चटनी बनाते है जिसे वे बहुत तीखा मानते है। लेसोथो के एक रेस्टोरेंट में तीन तरह की पीरी-पीरी सॉस मिलती है जिसे वे तीखेपन के अनुसार ग्रेड करते है। मैंने सीधा सबसे तीखी पीरी-पीरी मंगाई। वेटर एक छोटी सी कटोरी में ले आया। जब मैंने उस सॉस को स्टार्टर (प्रथम व्यंजन) समाप्त करने के पूर्व ही खा लिया तो अचंभित होकर वह शेफ या रसोइये को बुला लाया। आखिरी दिन जब मैंने उस रेस्टोरेंट में खाया, तो शेफ ने मुझे पीरी-पीरी चैंपियन घोषित किया और पुरूस्कार के रूप में एक बोतल पीरी-पीरी भेंट की।
कैरिबियन देशो में स्कॉच बोनट (scotch bonnet) मिर्च भोजन में डाली जाती है; लेकिन वह भी मेरे लिए भारतीय हरी मिर्च से अधिक तीखी नहीं है। मेक्सिको में अधिकतर हलापिन्यो (jalapeño) खाते है। हलापिन्यो और स्कॉच बोनट को भारतीय हरी मिर्च की तरह कच्चा खाने में आनंद नहीं आता क्योकि इसका आकर छोटी शिमला मिर्च जैसा होता है।
लेकिन चीन का सिचुआन पेप्परकॉर्न (Sichuan peppercorns) या मिर्च जो भारत के काली मिर्च की तरह छोटी, सूखी एवं गोल होती है, लेकिन उसका रंग लाल या हरा हो सकता है, की बात निराली है।
मैंने इसका प्रयोग केवल चीनी व्यंजनों में देखा है। जब सिचुआन मिर्च को दांत काटता है, एकाएक मिर्च के प्रभाव से जीभ पांच सेकंड के लिए सुन्न हो जाती है; मुंह में साईट्रसी (निम्बू या संतरे जैसा) फ्लेवर भर जाता है। पिछले कौर का स्वाद भूल जाते है। फिर जब अगला कौर मुंह में लाते है, तो ऐसा लगता है कि वह भोजन का पहला टुकड़ा खा रहे है क्योकि सिचुआन मिर्च के कारण पिछला स्वाद तालु से साफ़ हो जाता है। इस प्रकार हर बार एक नए स्वाद का अहसास होता है। लेकिन सिचुआन मिर्च को तीखा नहीं कहा जा सकता। इसके विपरीत काली मिर्च गले में काफी देर तक तीखे फ्लेवर का अहसास कराती है।
कुछ महीने पूर्व मैं सिचुआन पेप्परकॉर्न को एक एशियाई स्टोर से ले आया। इस मिर्च को मैंने सूखी एवं रसेदार तरकारी में डालना शुरू किया। चाहे आलू-गोभी, सेम, हरी लोबिया, आलू-मेथी, कद्दू, भिंडी या फिर आलू-टमाटर, सभी में मसाले के बाद सिचुआन मिर्च डाल देता हूँ।
जब भी सिचुआन मिर्च मुंह में आती है, भारतीय व्यंजनों का स्वाद कई गुना बढ़ जाता है। अब लगता है कि इस मिर्च के बिना भोजन में आनंद नहीं आएगा। मेरा मानना है कि यह मिर्च रसम, सांभर एवं दक्षिण भारतीय व्यंजनों के स्वाद को भी सूट करेगी।
भारत में सिचुआन उगानी चाहिए। यह हमारे व्यंजनों को नया आयाम देगी।

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