ऐसे ही नाली के कीड़े आपके बच्चों को पढ़ा रहे हैं और आप दोष देते हैं अपने बच्चों को कि उनमें संस्कार नहीं है।
उंस पर तुर्रा ये कि इतिहास पढ़ा रहे हैं। ठहरिए और सोचिए। सोचिए यह कि वाया क्लासकोर्स आप भी जो इतिहास जानते हैं, वह कितना इतिहास है और और कितना फंतासी। जब ऐसे ही ऐसे रहामजादे दिहाजी, अपनी ही परमपूज्या मातृशक्ति के अर्थभर्तार कोर्स तय करने से लेकर किताबें लिखने और नियुक्तियां करने तक के सारे काम करेंगे तो इतिहास के नाम पर जो बमपुलिस का माल परोसा जाएगा, वह कितना इतिहास और कितना मस्तराम होगा?
इन्हें इतिहास के नाम पर जाहिर है कि सीतारमैया जैसे दिहाजी ही सही लगेंगे। सोचिए कि आप अहिंसा का पुजारी मानकर जिसकी पूजा करते हैं उसने ऐसे रहामजादों के गुरुघंटाल सीतारमैया की हार को अपनी व्यक्तिगत हार कहा था। अब यह बात आपसे छिपी नहीं है कि किन रहामजादों ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे अमर बलिदानी को तोजो का कुत्ता कहा था और किसने झाँसी में चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा लगाने के रास्ते में सारे रोड़े अटका डाले थे। सोचिए कि इन रहामजादों ने किनकी शह पर यह सब किया।
और इस सबसे ज्यादा जिस बिंदु पर सोचने की जरूरत है वह यह है कि आप, आपकी पिछली और अगली पीढ़ी ने जो इतिहास पढ़ा है उसमें बतौर इतिहास, विश्वास के लायक क्या है!!!