बेतिया के एक ऐसे भू माफिया पर कई सारी जानकारी इकट्ठी हुई है, जिसका नाम ना कहीं अखबार में आया कभी और ना गूगल सर्च में। तब भी नहीं आया, जब शराब और देह व्यापार के मामले में इस पर एफआईआर हुई। शराब का केस बिहार में सबसे खराब केस माना जाता है। उस केस से उसके सामाजिक और माफिया जीवन पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा। उल्लेखनीय है कि जिसका जिक्र यहां किया जा रहा है, वह छोटे कद का माफिया है। जिले में एक दर्जन से अधिक ऐसे लोग सक्रिय हैं।
एक अंचलाधिकारी ने बताया था कि पश्चिम चंपारण में एक भू माफिया है, जिसके पास शूटरों का अपना एक गिरोह है।
बहरहाल जिस अदने माफिया का जिक्र कर रहा था, उसकी अपनी एक कन्स्ट्रक्शन कंपनी है। कंपनी के शेयर का सबसे बड़ा हिस्सा इस अदने माफिया के पास है, लेकिन कन्स्ट्रक्शन कंपनी का चेहरा स्थानीय जदूयू के एक नेता को बना रखा है। इसका दिल्ली एनसीआर में भी कारोबार चल रहा है। इसके नाम पर होटल भी है। इसके संबंध में रिसर्च के दौरान यह बात चौंकाने वाली थी कि इतने तरह के दो नंबर के काम शामिल रहने वाले आदमी के संबंध में गूगल पर कोई जानकारी नहीं मिलती। आज के जमाने में आप विश्वास करेंगे इस बात पर?
बेतिया के कुछ पत्रकारों से बात हुई। एक संपादक ने तो साफ साफ कहा कि सर यह समय समाचार निकाल कर माफिया से लड़ने का नहीं है। उनका कुछ नहीं उखड़ेगा। वे तो नाक तक कीचड़ में धंसे हैं। उनके संबंध में अधिक पूछ ताछ करेंगे तो आप भी कीचड़ से नहला दिए जाएंगे। अच्छा है कि यहां कोई काम है तो एसपी साहब और डीएम साहब से मिलिए। मेरी कोई मदद चाहिए तो बताइए। आप लोग तो नेताओं के संपर्क में हैं। किसी नेता से फोन करा दीजिए।
पूर्वी पश्चिम चंपारण, सिवान, गोपालगंज में बड़ी संख्या में ऐसे मामले सज्ञान में आ रहे हैं, जहां जमीन किसी की है और बेच कोई और रहा है।
इन जिलों में सीओ, थाना, एसडीएम के दफ्तरों में अपनी पैठ को लेकर कुछ लाइजनर्स खुलेआम दावा कर रहे हैं कि वहां उनकी इतनी गहरी पैठ है कि कोई चिट्ठी सीओ, एसडीएम के टेबल पर बाद में जाती है और उसकी खबर उनके पास पहले आती है।
बेतिया को लेकर दुख इसलिए अधिक होता है क्योंकि बेतिया के जिलाधिकारी के प्रशंसक पीएम Narendra Modi भी हैं। अभी कुछ दिनों पहले ही वे दिल्ली से अवार्ड लेकर लौटे हैं लेकिन पीएमओ का स्टैंड भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस का है। बेतिया के बाहर रहने वाले हम जैसे लोग तो यही चाहेंगे कि बेतिया का थाना, अंचल, प्रखंड और अनुमंडल भ्रष्टाचार मुक्त बने लेकिन वहां आपके नाम से आई हुई चिट्ठी भी इसलिए रोक कर रख ली जाती है क्योंकि बदले में कर्मचारियों को पैसा चाहिए। ऐसे कैसे बिहार सरकार का काम चल रहा है? यदि कर्मचारियों का घर वेतन से नहीं चल रहा तो उनको वेतन के लिए आंदोलन करना चाहिए लेकिन पैसे ना मिलने पर चिट्ठी रोक लेना। यह बात थोड़ी अजीब लगती है।
दलाल किस्म के लोगों के पास गाड़ी भी बड़ी होती है और दो नंबर का पैसा भी दुगुना होता है। वे समय समय पर मिठाई का डिब्बा भिजवाते रहते हैं। उनसे लीजिए। लेकिन सरकारी दफ्तरों में आने वाला हर आदमी दलाल नहीं होता और ना ही सबके पास दो नंबर का पैसा होता है। इसलिए कर्मचारियों को भी आदमी देखकर बख्शीश मांगनी चाहिए।
मैं बेतिया में नहीं हूं लेकिन जब मुझे इतनी सारी जानकारी हजार किमी दूर बैठकर मिल सकती है तो क्या स्थानीय प्रशासन को इसकी जानकारी नहीं होगी। बिहार में जंगलराज खत्म होने के बाद क्या भू माफिया राज चल रहा है?