भाजपा की पहली लिस्ट निकलने के साथ ही कुछ चीजें साफ हो गयी हैं।
–भाजपा के फैसलों के बारे में किसी भी पत्रकार को उसके किसी भी सूत्र या मूत्र से कुछ भी पता नहीं चलता। पिछले सात वर्षों से यानी 2014 से ये स्वनामधन्य पत्रकार आधिकारिक तौर पर जलील होते रहते हैं, लेकिन सबक लेने को तैया नहीं होते।
एनसीआर के डेढ़ कट्ठे में फैले स्वयंभू राष्ट्रीय चैनल्स की ये कौन सी जिद है, पता नहीं कि वे अब भी ‘सूत्रों’ के होने पर आमादा हैं। हालांकि, मोदी सरकार ने अपने आने के बाद से ही ये तय किया है कि सरकार और पार्टी (भाजपा) के स्तर पर उनको वही सूचना मिले, जो प्रेस-ब्रीफिंग के तौर पर मिलती है। बाकी, कयास लगाने को तो कोई भी स्वतंत्र है ही।
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मुझे योगी की एक ब्रीफिंग बस याद है, जब Long long ago सीएम की सोशल मीडिया को मैं लीड कर रहा था। एक लाइन का वह ब्रीफ था–आदरणीय प्रधानमंत्री जी (यानी, नरेंद्र मोदी) के सोशल मीडिया को स्टडी कीजिए और उसी की तरह आपको काम करना है।
इस एक लाइन में मुझे योगी की कुंठा, तड़प, महत्त्वाकांक्षा और लक्ष्य के दर्शन हुए थे।
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भाजपा की पहली लिस्ट से साफ है कि सोशल इंजीनियरिंग के मामले में पार्टी सभी दलों से कहीं आगे है। महिलाओं को भी ठीक-ठाक संंख्या में टिकट दिया गया है। इसके साथ ही, उतनी मात्रा में टिकट काटे भी नहीं गए हैं कि विद्रोही एक चुनौती बन जाएं।
अखिलेश की पीसी में बौखलाहट अगर संकेत है तो आगे ये बौखलाहट और भी बढ़नेवाली ही है।