महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे को मुख्य मंत्री बना कर भाजपा ने जो छक्का मारा उसकी उम्मीद न पक्ष को थी न विपक्ष को. इसी लिए राजनीति सब लोग नहीं कर सकते. जिन्होंने यह खेल रचा उनके जैसी सूझ बूझ मेरे पास नहीं, पर फ़ाइनल कंक्लूज़न देख मेरा निष्कर्ष:
1) राजनीति में कुर्सी पर कौन है से ज़्यादा पावर होती है चाभी किसके पास है. उद्धव की चाभी शरद पवार के पास थी, मनमोहन की चाभी सोनिया के पास थी, महाराष्ट्र सरकार की चाभी एनीवे फड़नवीश के पास रहेगी, सांख्य बल भी है और मोरल बल भी
2) अब उद्धव अपने को शहीद होने का दावा कर सहानुभूति नहीं ले सकते. उनकी पार्टी के जो थोड़े बहुत विधायक बचे भी हैं वह आप्रसंगिक हो जाएँगे. सिम्प्ली महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे ख़ानदान की जगह इस नए हिंदू वादी ग्रूप ने ले ली.
3) उद्धव अपने बूट से ज़्यादा बड़े हो गए थे. वर्तमान भाजपा की कार्य शैली यदि देखें तो इसे आँख दिखा कर लम्बे समय कोई टिक न पाया. सायलेंट्ली एंड स्लोली यह ऐसे सभी लोगों को ख़त्म कर रही है. यही उद्धव के केस में हुआ. भाजपा को बड़ा भाई मानते हुवे दुलार पुचकार से चलते हैं तो नीतीश कुमार बना कर रखा जाता है, आँख दिखाते हैं तो स्वामी प्रसाद मौर्य और OP राजभर बना दिया जाता है.
4) समस्या शिव सेना से कभी नहीं रही, समस्या रही उद्धव की अति महत्वकांक्षा से और उनके परिवार मोह से.
5) शिंदे ज़मीनी नेता हैं, उनमें क्षमता है NCP के बेस को समेटने की. NCP में शरद पवार का लगभग अंतिम समय चल रहा है, बेटी भतीजे का झगड़ा होना तय है, शिंदे की सेना उस वैक्यूम को टेक ओवर करने के लिए तैयार है. अब शिंदे एक बड़ा नाम हैं, मुख्य मंत्री हैं.
6) भाजपा ने यह चाल चल यह पक्का कर दिया कि 2024 में महाराष्ट्र से इकतरफ़ा सीट निकलेंगी भाजपा की
7) फ़ॉर राइट विंग वैक्यूम जो बन गया था, उम्मीद है शिंदे इस वैक्यूम को पूर्ण करेंगे. राष्ट्रीय दल और केंद्र में सत्ता होने के नाते उग्र हिंदू वादी जो कुछ भाजपा नहीं कर सकती एक प्रादेशिक दल अच्छे से कर सकता है.
8) कुछ मित्रों को लग रहा है यही करना था तो उद्धव को ढाई साल के लिए बना देते. उत्तर बिंदु नम्बर तीन चार में निहित है.
अंततः महाराष्ट्र की सोनिया गांधी फड़नवीश और भाजपा ही रहेगी. विन विन फ़ोर ऑल