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भाजपा तेजी से 2024 के लोकसभा चुनाव में हार की ओर बढ़ती हुई

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भाजपा तेजी से 2024 के लोकसभा चुनाव में हार की ओर बढ़ती हुई दिख रही है। अगर पार्टी ने जल्दी ही अपनी गलतियों पर ध्यान नहीं दिया तो हार पक्की है। नवंबर में सरकार ने तीनों कृषि कानून वापस लेना बहुत बड़ी गलती है। इस तरह गलत दबाव के आगे घुटने टेकना बहुत गलत था पिछले वर्ष के गणतंत्र दिवस समारोह में इतनी भीषण हिंसा हुई, आंदोलन स्थल पर ही हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों की खबरें आई, कोविड नियमों के उल्लंघन के आरोप लगे, उन सबकी जांच करके दोषियों पर कार्यवाही करने की बजाय सरकार ने कृषि कानून वापस लेकर उन लोगों को धोखा दिया जो उसका समर्थन कर रहे थे।

 

तब मोदी जी ने भी टीवी पर आकर प्रवचन सुनाया कि तपस्या में कमी रह गई थी इसलिए नए कानून के लाभ हम लोगों को समझा नहीं पाए। यह अद्भुत बात है कि अच्छे कानून के लाभ नहीं समझा पाए तो बेहतर ढंग से समझाने का प्रयास करने की बजाय अच्छे कानून ही वापस ले लिए और एक राज्य के आढ़तियों और दलालों को खुश करने के लिए देश भर के किसानों को फिर पुरानी कुव्यवस्था के चंगुल में धकेल दिया। चुनावी लाभ के लालच में ऐसा गलत फैसला सरकार ने लिया है, लेकिन उससे कुछ मिलेगा नहीं, बल्कि जो है वह भी हाथ से जाएगा फिर चुनाव का परिणाम आया और अपेक्षित रूप से भाजपा पंजाब में बुरी तरह हार गई। उसके बाद से पंजाब में जो हो रहा है|

 

अभी एक नए मामले में भी भाजपा ने बहुत विचित्र आचरण किया है। पार्टी के दो प्रवक्ताओं ने कुछ बयान दिए। उनका विरोध हुआ। फिर दंगा हुआ। फिर विदेशों में हल्ला मचा। दूसरे देशों ने भारत को धमकियां दीं। फिर अचानक भाजपा ने पत्र जारी किया कि इन प्रवक्ताओं ने पार्टी की विचारधारा और नीति के विरुद्ध बातें कही हैं, इसलिए उन्हें पार्टी से निकाला जा रहा है।

 

क्या आपको इसमें कुछ विचित्र नहीं लगा? लोग इस बात पर बहस कर रहे हैं कि निकालना सही था या गलत। पार्टी का प्रवक्ता कौन होगा या पार्टी किसे रखेगी और निकलेगी, यह भाजपा का आंतरिक विषय है। लेकिन अगर अपने प्रवक्ताओं का बयान भाजपा को अपनी विचारधारा के अनुसार गलत लग रहा था, तो उसी दिन उन्हें क्यों नहीं निकाला? जब कतर, ईरान, सऊदी अरब और न जाने किन देशों ने आपत्ति जताई तब भाजपा को याद आया कि प्रवक्ता का बयान पार्टी की विचारधारा के विपरीत है।

 

भाजपा की विचारधारा भाजपा मुख्यालय में तय हो रही है या सऊदी अरब और कतर में? अगर विचारधारा की रक्षा के लिए अपने प्रवक्ताओं को बेसहारा छोड़ना था, तो बयान वाले दिन ही उन्हें निकालते। अगर कतर और सऊदी अरब के डर से निकाला है तो विचारधारा की आड़ में बहाने बनाने की बजाय पत्र में स्पष्ट लिखना चाहिए था कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में देश हित का ध्यान रखते हुए यह निर्णय ले रहे हैं। अब जो किया है, उससे भाजपा धोबी के श्वान जैसी लग रही है, न समर्थक खुश हैं और न विरोधी संतुष्ट हैं।

 

ऐसा वैचारिक कन्फ्यूजन बहुत हानिकारक है। जब नेता स्वयं ही इतने भ्रमित हैं, तो स्वाभाविक है कि उनके समर्थक अति भ्रमित हैं। ऐसा ही चलता रहेगा, तो वाकई 2024 में हार पक्की हो जाएगी भाजपा को अपनी एक विचारधारा तय करनी चाहिए और उस पर चलना चाहिए। कांग्रेस की बेहतर नकल बनने का प्रयास भाजपा को केवल गर्त में ही ले जाएगा।

 

जो स्वघोषित विद्वान स्वयं को पूरे विश्व के हर विषय की कूटनीति और राजनीति का विशेषज्ञ समझते हैं, वे कृपया मुझे ज्ञान न दें। मोदी जी आपके भगवान हैं, मेरे नहीं। मेरे लिए वे केवल एक उपयोगी राजनेता हैं और जब भी वे अनुपयोगी लगेंगे, तो मैं उनकी आलोचना करूंगा

 

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