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भारत के मुस्लिम की छवि

Dayanand Pandey

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ओला और एयरटेल के मार्फत जो मामले सामने आए हैं , वह दुर्भाग्यपूर्ण ज़रुर हैं पर सच हैं । मुसलमानों ने अपनी छवि ही ऐसी बना ली है । मुस्लिम बहुल इलाके मिनी पाकिस्तान का रुप ले चुके हैं , इस से अगर कोई इंकार करता है तो वह न सिर्फ़ अंधा है बल्कि मनबढ़ है और कुतर्की भी । अगर यकीन न हो तो किसी भी मुस्लिम बहुल इलाक़े में रहने वाले इक्का दुक्का नान मुस्लिम से बात कर लीजिए । हकीकत पता चल जाएगी । और जो कोई नया सेक्यूलर है और प्याज खाने का बड़ा शौक़ीन है तो उसे बाकायदा चैलेंज देता हूं कि सौ प्रतिशत मुस्लिम बहुल इलाके में ज़मीन या मकान खरीद कर दिखा दे । या फिर किराए पर मकान ले कर इज्जत से साल भर रह कर दिखा दे । किराएदार ! अरे , मुस्लिम बहुल इलाकों में पुलिस वालों का आना-जाना दूभर है । बिजली वाले जाते ही नहीं । अगर अवैध कनेक्शन काटने जाते हैं तो पिट कर आते हैं । यह तो लखनऊ का हाल बता रहा हूं । उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों या देश के बाक़ी हिस्सों की हालत भी यही है । पुराने लखनऊ के ख़ास कर चौक और नखास इलाके के तमाम नान मुस्लिम तो नान मुस्लिम अब तो मुस्लिम भी उन इलाकों में रहने से घबराते हैं । यही कारण है कि चौक और नखास इलाकों में अब कोई प्रापर्टी कौड़ी के मोल भी खरीदना नहीं चाहता । मुसलमान भी नहीं । इन मुहल्लों से बाहर आने पर इन मुस्लिम को भी जल्दी किराए का घर नहीं मिलता । दो का घर चार में खरीद लें तो बात अलग है । मुसलमानों का कट्टर होना , लीगी होना उन का बहुत नुकसान कर रहा है । देश का भी और समाज का भी नुकसान है इस में । अंतर्राष्ट्रीय इस्लामिक आतंकवाद ने भी मुसलमानों का बहुत नुकसान किया है । बाकी जिन्ना मानसिकता , आए दिन मौलानाओं का नित नया फतवा , मदरसा की पढ़ाई और उन का कट्टरपन उन्हें आधुनिक समाज और जीवन से दूर रखता है । इस माहौल को बदलने के लिए पढ़े-लिखे और उदार मुसलमानों को आगे बढ़ कर इन मसलों को संभालना चाहिए । बात ज्यादा बिगड़े उस के पहले यह तसवीर दुरुस्त करने की ज़रूरत है । क्यों कि इस सब से सिर्फ़ मुस्लिम समाज का ही नहीं , समूचे समाज और देश का नुकसान है । जल्दी से जल्दी यह सूरतेहाल बदलना चाहिए । नहीं मुस्लिम समाज के अलगाव की हालत बहुत तकलीफदेह है । बताता चलूं कि गोरखपुर के जिस इलाहीबाग मुहल्ले में मैं पला-बढ़ा और जवान हुआ हूं , वहां भी मुस्लिम और हिंदू आबादी लगभग आधी-आधी थी । हमारे घर के पास में ही मस्जिद थी । अजान सुन कर ही सुबह होती थी , अजान सुन कर ही रात के सोने की तैयारी । तब माइक का चलन नहीं था , न लोगों की हैसियत थी इस की । पास ही मदरसा था । बहरामपुर , टिपरापुर जैसे मुस्लिम बहुल मुहल्ले बगल में थे । अधिकतर जुलाहे थे , दर्जी थे । पर यह कठमुल्लापन नहीं था । कोई मिनी पाकिस्तान नहीं था । कभी भी , कोई भी कहीं जा सकता था । आपसी सौहार्द्र और आपस में एक दूसरे के प्रति सम्मान था ।
मैं बहुत दूर नहीं जा रहा गोरखपुर में अपने गांव बैदौली की हालत बताऊं । हमारा गांव ब्राह्मण बहुल गांव है । लेकिन सभी जातियां मिल-जुल कर रहती आई हैं । पहले हमारे गांव में मुस्लिम भी साथ ही रहते थे । चूड़ीहार कहलाते थे । लेकिन दर्जी का काम भी करते थे । बैंड भी बजाते थे । खेती बाड़ी भी । सब कुछ साझा था । लेकिन कोई डेढ़ दशक पहले दो मुस्लिम घर गांव से अलग घर बना कर रहने लगे । उन के बच्चे सऊदी कमाने लगे थे । देखते-देखते पूरा मुस्लिम टोला बन गया वहां । मस्जिद बन गई । माइक पर नमाज होने लगी । जो लोग धोती , पायजामा पहनते थे , लूंगी पहनने लगे । टोपी लगाने लगे । जो औरतें सिंदूर लगाती थीं , बिछिया पहनती थीं , चूड़ी पहनती , पहनाती थीं , अचानक बुर्का पहनने लगीं । पहले यह सब कुछ नहीं था । मोहर्रम में पूरा गांव ताजिया उठाता था । घर-घर होते हुए ताजिया गुज़रता था । पूरा गांव ताजिया उठाता था । हम ने खुद ताजिया उठाया है । पूरा गांव ईद , होली मनाता था । पर अब ?
अब कुछ भी साझा नहीं रहा । गांव के लोग अब मुस्लिम टोले में नहीं जाते । मैं ही गांव जाता हूं तो वहां भी पुराने लोगों को खोजते हुए घूम आता हूं । लेकिन अब वह पहले वाली बात बदल गई है । गांव हिंदू , मुसलमान हो गया है । ग़नीमत बस यही है कि मुस्लिम आबादी बहुत कम है , ऊंट के मुंह में जीरा जैसी । सो वह कट्टरपन का रंग गाढ़ा नहीं हो सका है , सौहार्द्र कायम है । लेकिन पास ही एक मुस्लिम बहुल गांव है सलारपुर । वहां मुस्लिम कट्टरता अपने चरम पर है । जब कि पहले वहां भी कोई कट्टरता नहीं थी । पढ़े-लिखे और उदार मुस्लिम लोगों को समय रहते इस बदलाव , इस कट्टरता पर ध्यान देना चाहिए । मिली-जुली आबादी और मिली-जुली संस्कृति पर जोर देना चाहिए । मिनी पाकिस्तान बना कर रहना न मुस्लिम समाज के लिए शुभ है , न समूचे समाज के लिए , न देश के लिए , न मनुष्यता के लिए । यह खतरे की घंटी है । नहीं अभी देश की राजधानी दिल्ली में ओला के ड्राइवर ने मिनी पाकिस्तान बताते हुए मुस्लिम बहुल इलाक़े में जाने से मना करते हुए सवारी उतार दी है , एक लड़की ने एयरटेल का मुस्लिम इक्जीक्यूटिव बदलने की बात की है । यही स्थिति रही तो यह बात आगे बढ़ सकती है । और आप अल्ला हो अकबर ही करते रह जाएंगे ।
जाहिर है यह ओला ड्राइवर या वह लड़की भाजपाई , संघी और विहिप के लोग नहीं थे । लोग भूल गए हैं पर याद कीजिए कि कुछ समय पहले अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पढ़ कर निकले तमाम इंजीनियर्स को कुछ कंपनियों ने नौकरी पर रखना बंद कर दिया था । अभी समय है , मुस्लिम समाज आगे बढ़ कर अपने को बदले । अपनी कट्टरता से छुट्टी ले । नहीं जैसे अपनी कट्टरता और आतंकवाद के चलते पाकिस्तान दुनिया में अलग-थलग पड़ चुका है , भारतीय मुस्लिम समाज भी न फंस जाए । मुस्लिम समाज के लोगों को समझना चाहिए कि आखिर जब-तब कुछ लोग क्यों उन्हें पाकिस्तान भेजने की बात करने लगते हैं । ध्यान रखिए कि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती । कश्मीर एक दिन में जलता कश्मीर नहीं बना है , न एक दिन में कश्मीरी पंडित वहां से विस्थापित हो गए । कश्मीर के जिस पाकेट में रोज उपद्रव होता है , जवान शहीद होते रहते हैं , उसे भी लोग वहां मिनी पाकिस्तान कहते हैं । तो क्या यह मिनी पाकिस्तान भी एक दिन में बन गया ?
बातें और भी बहुत हैं । फिर कभी । पर अगर इस मिनी पाकिस्तान की मुश्किल से जल्दी छुट्टी नहीं ली मुस्लिम समाज ने तो देश कब ज्वालामुखी के मुहाने पर आ खड़ा होगा , कोई नहीं जानता । क्यों कि यह तो मुस्लिम समाज को ही तय करना है कि देश और समाज में सम्मान और बराबरी से सीना तान कर सभ्य शहरी बन कर स्वाभिमान से रहना है कि मिनी पाकिस्तान बना कर रहना है । जहां किसी ओला , किसी उबर का ड्राइवर यह कह कर आप को उतार सकता है कि वह तो मिनी पाकिस्तान है , हम नहीं जाएंगे । फिर ओला , उबर से आगे दुनिया और भी है । और लोग भी मना कर सकते हैं ।

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