Home अमित सिंघल भारत के सन्दर्भ में भुखमरी सूचकांक का सच।

भारत के सन्दर्भ में भुखमरी सूचकांक का सच।

अमित सिंघल

by अमित सिंघल
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भुखमरी सूचकांक के अनुसार भारत में नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, एवं म्यांमार की तुलना में अधिक भुखमरी है।
अतः पहला प्रश्न यही होना चाहिए कि वहां के लोग एक ऐसे देश में अवैध रूप से क्यों आना चाहते है जहाँ उनसे अधिक भुखमरी है?
द्वितीय, यह सूचकांक चार इंडिकेटर के द्वारा बतलाता है कि किस देश में कितनी भुखमरी है।
दो सूचकांक बतलाते है कि भारत में 5 साल तक के बच्चो का वजन एवं लंबाई उनके उम्र के अनुसार कम है। भारत के सन्दर्भ में इन दोनों सूचकांकों के लिए चार वर्ष 2016 से 2020 तक के आंकड़ों का औसत लिया गया है। कम वजन के लिए यूनिसेफ की रिपोर्ट का सहारा लिया गया है जिसमे भारत के लिए वर्ष 2017 एवं नेपाल तथा बांग्लादेश के लिए वर्ष 2019 के आंकड़े संज्ञान में लिए गए है।
वजन एवं लम्बाई में कमी का प्रमुख कारण बचपन में या तो सही पोषण का अभाव है, या फिर अस्वच्छ वातावरण में रहने का असर है जिसमे अच्छे भोजन के बावजूद बीमारी के बोझ – ना कि बीमारी – के कारण एक व्यक्ति समय-समय पर अस्वस्थ रहता है और परिणामस्वरूप शरीर ठिगना रह जाता हैी भारत में शौचालय की कमी और साफ़-सफाई के निम्न स्तर के कारण जनता को बीमारी का बोझ वहन करना पड़ता थाI भारत में अधिकतर बच्चे मल, मूत्र, कूड़े से घिरे रहते है, वहां रेंगते है, खेलते हैं, भोजन करते है, पानी पीते हैं और स्नान करते हैंI यह गन्दगी उनके मुंह में आती हैI वे इस गन्दगी और जीवाणुओं को अपने हाथों से अन्य लोगो में फैला देते है और सभी लोग पेशिच, दस्त, बुखार के बोझ के कारण कुपोषण और बौनेपन से ग्रस्त हो जाते हैी
अस्वच्छ वातावरण में ना सिर्फ अशुद्ध पानी शामिल है, बल्कि कूड़ा-कचरा और प्रदूषण भी I इस गन्दगी का बोझ ना केवल आम भारतीयों को बीमार रखता है, बल्कि उस बीमारी का बोझ शरीर को निचोड़ देता है।
दूसरे शब्दों में, अगर आप 2017 के आकड़ो का संज्ञान वर्ष 2021 में भारत का सूचकांक बनाने में लेंगे, तो भारत नीचे ही आएगा। भारत ने वर्ष 2019 में खुले में शौच समाप्त कर दिया; सभी को घर, नल से जल मिल रहा है या मिलने जा रहा है, गैस पर खाना बन रहा है। अतः स्वच्छता बढ़ ही रही है जिससे कुपोषण में निश्चित रूप से कमी आनी चाहिए।
तृतीय, कुपोषण के सूचकांक के लिए सूचकांक ने खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुमानों के आधार पर भारत को डाउनग्रेड किया है। एफएओ द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली विधि अवैज्ञानिक है। उन्होंने फोन पर गैलप एजेंसी के द्वारा वर्ष 2020 के अंत में किए गए सर्वे में चार प्रश्न पूछकर भारत में कुपोषण की मात्रा को निर्धारित किया है । इस सर्वे में प्रति व्यक्ति भोजन की उपलब्धता जैसे कुपोषण को मापने के लिए किसी वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग नहीं किया गया है।
यह रहे गैलप के चार प्रश्न:
क्या आपने कोरोना के कारण निम्न स्थिति का अनुभव किया है?
1. अपनी नौकरी या व्यवसाय पर अस्थायी रूप से काम करना बंद कर दिया: हाँ/नहीं।
2. अपनी नौकरी या व्यवसाय खो दिया: हाँ/नहीं।
3. अपनी नौकरी या व्यवसाय में कम घंटे काम किया: हाँ/नही।
4. अपने एम्प्लायर या व्यवसाय से सामान्य से कम धन प्राप्त किया: हाँ/नहीं।
ध्यान देने की बात है कि गैलप ने एक भी प्रश्न भोजन की उपलब्धता के बारे में नहीं पूछा। यह भी नहीं पूछा कि उन भारतीयों को सरकार या अन्य स्रोतों से कोई खाद्य या अन्य सहायता मिली है।
फिर, यह भी नहीं पता कि गैलप की तरफ से सर्वे किसने किया। अगर योगेंद्र यादव को सर्वे करने को देंगे, तो उत्तर भी वैसा ही मिलेगा।
जब प्रश्न ही ऐसे पूछेंगे जिससे आप भारत को नीचे दिखा सके, तो उत्तर भी वैसा ही मिलेगा।
चौथा एवं अंतिम सूचकांक 5 साल तक बच्चो में मृत्यु दर के बारे में है जिसमे भारत ने भारी सुधार किया है। लेकिन फिर प्रश्न यह है कि अगर हमारे बच्चो की लम्बाई एवं वजन मेंं कोई सुधार नहीं हुआ या फिर यह समस्या पहले से अधिक बढ़ गयी है तो उनकी मृत्यु दर में कमी कहाँ से आ गयी?
जानकार लोगो को अच्छी तरह से पता है कि यह सूचकांक कैसे बनते है और इनका पोलिटिकल एजेंडा क्या है। भारत के सन्दर्भ में NGO द्वारा बनाए जाने वाले डेमोक्रेसी इंडेक्स एवं भुखमरी इंडेक्स इत्यादि का एजेंडा भी क्लियर है। इससे अधिक नहीं लिख सकता।

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