Home महिला लेखक भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै!

भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै!

by रंजना सिंह
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भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै!
नासै रोग हरै सब पीरा,जपत निरन्तर हनुमत बीरा!!
जहाँ सात्त्विकता सकारात्मकता का पूँजीभूत स्वरूप हो,वहाँ कोई भी नकारात्मकता(भूत पिशाच) आ कैसे सकता है।जब सात्त्विकता का निरन्तर साथ हो तो रोग और पीड़ा के लिए स्थान कहाँ बचे।
भक्ति शक्ति युक्ति बुद्धि और शील के प्रतिरूप अजर अमर देव श्री हनुमानजी सनातन के आधार और परिचय हैं।राम का बस नाम लीजिए और आपके सात्विकता को बल देने, श्रीराम के चरणों तक पहुँचाने हनुमान जी स्वयं उपस्थित हो जायेंगे।
श्री रामजानकी और भक्तशिरोमणि हनुमानजी के चरित्र का स्मरण हृदय को ऐसे तरल कर जाता है कि भावों को एकत्रित कर शब्दों में ढालना मेरे वश में नहीं हुआ करता।ऐसे में जब संलग्न पोस्ट सा कुछ पढ़ने को मिल जाता है जिसमें संक्षेप में लगभग समस्त बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया हो, तो मन गदगद भावविभोर हो जाता है।हृदय से आभार है भाई Abhijeet Singh का उनके इस अप्रतिम पोस्ट के लिए।कृपया अवश्य पढ़ें और अग्रेसित करें।
एंग्री हनुमान
कुछ वर्ष पूर्व कर्नाटक के रहने वाले ‘करण आचार्य’ ने “क्रोधित हनुमान” की एक पेंटिंग बनाई थी, जिसकी प्रशंसा प्रधानमंत्री ‘श्री नरेन्द्र मोदी जी’ ने भी की थी और उनके द्वारा प्रशंसा किये जाने के बाद अचानक यह पेंटिंग देश भर में सुर्खियों में आ गई थी।
ओला, ऊबर समेत निजी वाहन वाले हनुमान जी की इस तस्वीर को अपने-अपने वाहनों के ऊपर लगाने लग गये तो ओला, ऊबर का प्रयोग करने वाले लोग ऐसे कार ड्राइवरों को प्रोत्साहित करने हेतु उन्हें बिल से अधिक पेमेंट करने लगे। इन बातों से हिन्दू द्वेषी मीडिया व अन्य जमात वालों के सीने पर सांस लोटने लगे। “द वायर” आदि जमातों ने बजरंगबली को निशाने पर लेते हुए कई लेख लिखे। अग़र आप पढ़ने-लिखने में रुचि रखते हैं तो आपको यह भी याद होगा कि काफी पहले ‘हंस’ पत्रिका के संपादक ‘राजेन्द्र यादव’ ने यही हरकत की थी और हनुमान जी को “मानव-सभ्यता का पहला आतंकवादी” बताया था।
आपने कभी सोचा है कि बजरंगबली से ये जमातें इतना चिढ़ती क्यों हैं? क्यों बजरंग बली की उस मनभावन पेंटिंग को ये ‘ब्रेकिंग इंडिया फोर्सेस’ “मिलिटेंट हनुमान” कहने लगे?
आख़िर हनुमान जी से इनके चिढ़ने की वज़ह क्या है? वजह है कि :-
– “बजरंग बली” के उज्ज्वल चरित्र और कृतित्व से सम्पूर्ण भारतवर्ष न जाने कितनी सदियों से प्रेरणा लेता आया है।
– हनुमान प्रतीक हैं उस स्वाभिमान” के जिन्होंने ‘बाली’ जैसे महापराक्रमी परंतु अधम शासक के साथ रहने की बजाय ‘बाली’ के अनाचार से संतप्त ‘सुग्रीव’ के साथ रहना स्वीकार किया था ताकि संसार के सामने यह आदर्श स्थापित हो कि सत्य और न्याय के साथ खड़ा होना ही धर्म है।
– हनुमान प्रतीक हैं उस “स्वामी-भक्ति” और “राज-भक्ति” के जिन्हें उस समय के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य के प्रतिनिधि प्रभु श्रीराम का सानिध्य प्राप्त था, परंतु उन्होंने अपने स्वामी सुग्रीव का साथ नहीं छोड़ा और उनके प्रति उनकी राजभक्ति असंदिग्ध रही।
– हनुमान प्रतीक हैं उस सेतु के जो उत्तर और दक्षिण भारत को जोड़ता है। जिसने किष्किंधा और अयोध्या को जोड़ा। पेंटिंग बनाने वाले “करण आचार्य” दक्षिण से थे और पेंटिंग वायरल होने लगी दिल्ली में, तो इनके पेट में मरोड़ उठने लगी कि अरे ये कैसे हो गया!! हमने उत्तर भारत और दक्षिण भारत में कनफ्लिक्ट पैदा करने के लिए जो वर्षों-वर्ष मेहनत की है वो इतनी आसानी से कैसे ज़ाया हो रही है?
– हनुमान प्रतीक हैं उस “अनुशासन और प्रोटोकॉल” के जिसका अनुपालन उन्होंने अपने जीवन में हर क्षण किया जबकि ‘हनुमान विरोधियों’ को अनुशासनहीन समाज पसंद है।
– हनुमान प्रतीक हैं उस पौरुष के, कि जब उनका स्वामी ‘बाली’ अधम होकर एक स्त्री पर कुदृष्टि डालने लगा तो उन्होंने उसे सहन नहीं किया और बाली का साथ छोड़ने में एक पल भी नहीं लगाया।
– हनुमान प्रतीक हैं स्त्री रक्षण के प्रति उस कर्तव्य के जो किसी और की स्त्री के सम्मान की रक्षा के लिए भी निडर होकर उस समय के सबसे शक्तिशाली शासक को चुनौती देने उसके राज्य में घुस जाते हैं।
– हनुमान प्रतीक हैं उस ‘चातुर्य और वाकपटुता’ के जिनकी वाणी के ओज ने श्री राम को भी मंत्रमुग्ध कर दिया था।
अगर हम रामायण का कथानक देखें तो पता चलता है कि हनुमान, जामवंत, सुग्रीव, नल-नील, अंगद और तमाम दूसरे वानर वीर ये सब वो लोग हैं जो वनवासी-गिरिवासी और वंचित समाज के प्रतिनिधि हैं। ये उनलोगों के रूप में चिन्हित हैं जिनकी भाषा संस्कृत नहीं थी, जो किसी कथित उच्च वर्ग से नहीं थे, जो शहरी सभ्यता के नहीं थे परंतु इनके प्रतिनिधि के रूप में “हनुमान क्या उच्च वर्ण और क्या निम्न वर्ण, क्या नगरवासी और क्या वनवासी, सब हिन्दुओं के घरों में आराध्य रूप में पूजित हैं।
इनको “हनुमान जी” से पीड़ा इसलिये है क्योंकि इन्हें बर्दाश्त नहीं हो रहा कि कैसे वनवासी वर्ग का एक प्रतिनिधि हर हिन्दू घर में पूजित है। इन्हें ये पच नहीं रहा कि कैसे कोई ऐसा पात्र हो सकता है जिसके प्रति हिंदुओं के वंचित समाज से लेकर भारत का प्रधानमंत्री तक में एक समान भावना है। “हनुमान” से इनकी वेदना इसलिए है क्योंकि उनके होते वर्ग-संघर्ष, जाति-संघर्ष, आर्य-द्रविड़ विवाद, उत्तर-दक्षिण संघर्ष पैदा करने के इनके तमाम षड़यंत्र विफल हो जा रहे हैं।
हनुमान से इनको तकलीफ़ इसलिए भी है क्योंकि “मारुति” इन्द्रिय संयम के जीवंत प्रतीक हैं यानि बजरंगबली “यौन-उच्छृंखलता” के इनके नारों की राह के रोड़े भी हैं। हनुमान धर्म के नाम पर कहीं भी सॉफ्ट नहीं हैं, ये इनकी पीड़ा है।
एक अकेले हनुमान के कारण “ब्रेकिंग इंडिया फोर्सेस” के तमाम मंसूबे नाकाम हैं तो इनको हनुमान से तकलीफ़ क्यों न हो?
आज हर हिन्दू घर में हनुमान कई रूपों में विराजमान हैं। कहीं वो तस्वीर रूप में, कहीं मूर्ति-रूप में, कहीं, महावीरी-ध्वज रूप में, कहीं हनुमान-चालीसा, बजरंग-बाण या सुंदर-काण्ड रूप में उपस्थित हैं।

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