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भ्रष्टाचार से पीड़ित लोगो की समय-समय पर पोस्ट आती रहती है।

अमित सिंघल

by अमित सिंघल
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भ्रष्टाचार से पीड़ित लोगो की समय-समय पर पोस्ट आती रहती है। अधिकतर शिकायतें छोटे-मोटे कार्य, मूलभूत सुविधाएँ, सार्वजनिक जीवन – दैनिक जीवनयापन, से जुड़े कार्यकलाप से सम्बंधित होती है।
उदाहरण के लिए, राशन कार्ड के लिए घूस, लेबर कार्ड के लिए घूस, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान बनवाने के लिए घूस, शौचालय बनवाने के लिए घूस, सरकारी नलकूप के लिए घूस, वृद्धावस्था पेंशन के लिए घूस ! सड़क के किनारे फल-तरकारी ठेला लगाने के लिए घूस, चाय स्टाल चलाने के लिए घूस … !
आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को प्राईवेट स्कूलों मे निर्धन परिवारों के कोटा के अंतर्गत एडमिशन धनी परिवारों के बच्चे ले जाते है।
निसंदेह।
लेकिन एक अन्य पहलू भी है। अब ट्रेन टिकट, गैस सिलेंडर, गाड़ी रजिस्ट्रेशन, पासपोर्ट के लिए भ्रष्टाचार समाप्त हो गया। वर्ग ग एवं घ की नौकरियों से इंटरव्यू समाप्त कर दिया गया है। पेंशन आटोमेटिक रूप से चालू हो जाती है। बिक्री कर का विलय GST में होने के बाद व्यवसायियों को कर अधिकारियों की प्रताड़ना से मुक्ति मिल गयी है। मार्कशीट सत्यापन के लिए राजपत्रित कर्मी के समक्ष प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती। निर्धनों को आवास, टॉयलेट, बिजली, पानी, गैस, बैंक अकाउंट इत्यादि वास्तव में मिल रहे है, ना कि केवल पेपर में दिखा दिया जाता है।
ट्रेन स्टेशन एवं पटरी से मल-मूत्र समाप्त, रेल यात्रा में यात्री की मृत्यु नहीं हो रही है। सभी को बिजली एवं टॉयलेट मिल चूका है। अगले तीन वर्ष के अंदर घर एवं उस घर में नल से जल भी मिल जाएगा।
यही स्थिति स्कूटर, कार, सिनेमा टिकट, फोन कनेक्शन की है जिन से ब्लैक मार्केट समाप्त हो गया। एलेक्ट्रोनिक वोटिंग सिस्टम से बैलट बॉक्स में वोट ठूसना, बूथ कैप्चर करना समाप्त हो गया है।
अब आते है आंकड़ों पर।
अब तक लगभग 22.92 करोड़ राशन कार्ड इशू हो चुके है जिसमे से 20.42 करोड़ कार्ड आधार से लिंक है। इन राशन कार्ड से 75.77 करोड़ लाभार्थी जुड़े है जिन में से 67.80 करोड़ लाभार्थी आधार से लिंक है। दूसरे शब्दों में, अभी भी 8 करोड़ लाभार्थी ऐसे है जिनके बारे में पूर्ण जानकारी नहीं है। संभव है कि वे लाभ की कसौटी पर खरे ना हो; या फिर फर्जी हो।
समस्या कहाँ पर है?
पहले की सरकारों में शीर्ष नेतृत्व एवं उनका परिवार स्वयं भ्रष्टाचार में लिप्त था। गमलो में गोभी उगाकर करोड़ो कमा लिए जाते थे। प्रॉपर्टी डीलर से करोड़ो का लोन मिल जाता था। एक समाचारपत्र की करोड़ो की बिल्डिंग को शाही परिवार कौड़ियों के भाव खरीद लेता था। दिल्ली से फोन पर अरबो का लोन दे दिया जाता था। रक्षा मंत्री की पत्नी की पेंटिंग एयर इंडिया एवं प्रियंका गाँधी की पेंटिंग यस बैंक का मालिक करोड़ों में खरीद लेता था। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा कोष से प्रियंका-राहुल के NGO को फंडिंग मिल जाती थी। जहाँ देखिए भ्रष्टाचार और उस भ्रष्टाचार के तार शीर्ष नेतृत्व से जुड़े थे। मंत्रिमंडल का गठन टाटा की एजेंट (रादिया उस समय टाटा के लिए कार्य करती थी), समाचारपत्र के संपादक एवं टीवी न्यूज़ की पत्रकार करती थी।
आधार को फोन, राशन कार्ड, बैंकिंग इत्यादि सेवाओं से जोड़ने के विरोध में कुछ चुने हुए NGO सर्वोच्च न्यायालय तक चले गए थे। अब एक प्रस्ताव आया है कि वोटर लिस्ट को आधार के साथ जोड़ दिया जाए जिससे फर्जी वोटर भी समाप्त हो जाएंगे। इसका विरोध भी वही NGO कर रहे है। दूसरे शब्दों में, वे चाहते ही नहीं कि व्यवस्था पारदर्शी बने।
समस्या अभी भी निचले स्तर पर भ्रष्टाचार की है जिसके लिए कोई जादू की छड़ी नहीं है।
एक तरफ लोग बिना लाइसेंस के सड़क किनारे ठेला, चाय स्टाल लगाना चाहते है। दूसरी तरफ आप घूस से भी परेशान है। समस्या यह है कि सरकार – चाहे किसी भी दल की हो – ऐसे कितने लोगो को सड़क किनारे स्टाल लगाने की अनुमति दे सकती है। फिर, जब उस क्षेत्र के निवासी अतिक्रमण का विरोध करते है, तब उनकी समस्या से कैसे निपटा जाए। फिर, घूस उस स्टाल से भी ली जाती होगी जिनके पास लाइसेंस है।
एक समय लगता था कि हम भारत में गंदगी, मल-मूत्र के बीच में रहने को अभिशप्त थे। बिना नल के जल, शौचालय, घर, बिजली, बैंक अकाउंट का जीवन जीना ही भाग्य में था। अब स्थिति क्या है?
अभी भी अधिकतर लोग सरकारी नौकरी के लिए पोस्ट डालते रहते है; वही लोग जो भ्रष्टाचार से प्रताड़ित है, उस के विरोध में खड़े है। जब वे स्वयं सरकारी नौकरी ज्वाइन कर लेते है, वे स्वयं भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाते है।
अब निर्धनों को घर, टॉयलेट, मनरेगा इत्यादि ग्राम प्रधान के द्वारा सत्यापन पर मिलता है। लेकिन अगर प्रधान ही घूस लेने लगे, तो इसका क्या इलाज है?
कई सौ वर्षों की गुलामी से जो भ्रष्टाचार हमारे चरित्र में घुस गया था क्या वह रातों रात निकल जाएगा?
प्रधानमंत्री मोदी भ्रष्टाचार मिटाने के लिए नियम कानून को बदल रहे हैं। क्या पूर्व की सरकारों ने ऐसे संस्थागत प्रयास किए थे? क्या इन प्रयासों का परिणाम दिखाई देना नहीं शुरू हो गया है?
अगर आपके पास भ्रष्टाचार मिटाने के लिए बेहतर सुझाव है तो उसे जरूर लिखिए और प्रधानमंत्री जी को भी भेजिए।

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