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मीने रामी और तिये की परिभाषा…

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मीने रामी और तिये की परिभाषा…
दूर से सुनने में तो ये तीनों शब्द एक दूसरे के काफी समानार्थक लगते हैं लेकिन इनमें बड़ा महीन पर महत्वपूर्ण अंतर है.
*मीने वे होते हैं जिन्हें सिर्फ अपने फायदे से मतलब होता है. अपने जरा से फायदे के लिए सबका क्या और कितना बड़ा नुकसान कर सकते हैं, इसकी उन्हें कोई परवाह नहीं होती.
**रामी वे होते हैं जिन्हें दूसरों का नुकसान करने में सुख मिलता है. वे बिना अपने किसी फायदे के भी देश दुनिया का नुकसान करेंगे, बल्कि अपना नुकसान उठाकर भी. ये वो लोग हैं जिनकी वंदना गोस्वामी जी ने मानस में सबसे पहले की थी.
और इन सबसे बड़े महापुरुष वे होते हैं जिन्हें फायदा नुकसान घंटा नहीं समझ में आता. वे इन छोटी छोटी सांसारिक बातों से ऊपर उठ चुके हैं. दुनिया उनकी लेती रहती है और वे हँस हँस के देते रहते हैं…बस, उनको सेक्युलर, प्रोग्रेसिव और इक्वलिटी जैसे दो चार जुमले रटा दिए गए हैं…और फिर उनको समझा दिया गया है कि जो बीबीसी और एनडीटीवी कहता है वह दुहराते रहो. वही सत्य है, वही बुद्धिमता की पराकाष्ठा है… चाहे उसमें अपनी लंका लग जाये. ऐसे ही ज्ञानी जनों को शास्त्रों में ***तिया की उपाधि से अलंकृत किया गया है.
आआपा के समर्थकों में ऐसे तीनों प्रकार के लोग बहुतायत में मिलते हैं. सबसे पहले वे वामी हैं जिन्हें सिर्फ देश का नुकसान करने से मतलब है…इसी को वे अपना फायदा गिनते हैं.
और ऐसे लोगों ने दिल्ली में उन लोगों को बहुत आसानी से जोड़ लिया जो जरा से फायदे के लिए, 300 यूनिट बिजली और 700 लीटर पानी के लिए अपनी पत्नी और बेटी की इज्जत, बेटे का भविष्य..सब बेच देंगे. और उनके ऊपर वे शिरोमणि हैं जिन्हें सिर्फ सिद्धांतों के आधार पर केजरीवाल का नैतिक समर्थन करना है. उन्हें फायदा और नुकसान घंटा समझ में नहीं आता. आआपा की लीडरशिप जहाँ **रामियों से भरी पड़ी है, वहीं उनके समर्थकों में या तो *मीने हैं या फिर दर ***तिये. जब तक भारत मे इन तीन प्रजातियों के लोग मिलते रहेंगे, केजरीवाल और उसकी राक्षसी हँसी आप देखते रहेंगे

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