Home आर ऐ -ऍम यादव ( राज्याध्यक्ष) मुस्लिम समुदाय के वामपंथी
विश्वास कहो या अंधविश्वास । उस को जब शस्त्र बनाया जाता है उसकी ताकत हम खुली आँखों से भी देख नहीं पा रहे क्योंकि वामियों ने हमारी नजर पर यह पर्दा डाल रक्खा है।
एक्स मुस्लिम्स की बहसों को देखता हूँ तो एक बात बड़े आसानी से समझ आती है । उनसे जो बिलिवर्स बहस करते हैं वो ऐसी बातों को इतनी जोर से रखते हैं कि क्या ही कहें। ध्यान देने की बात यह है कि ये लोग पढे लिखे लोग होते हैं, कोई डॉक्टर भी होता है, कोई और किसी विज्ञान शाखा में उच्चशिक्षित होता है। और जितनी दृढ़ता से वे अपनी बात रखते हैं, उसके पलड़े में अपनी क्वालिफ़िकेशन का भी वजन रखते हैं ताकि उनकी बात की विश्वसनीयता बढ़े, और जिस गर्व से खुद को “मुत्तकी” याने विश्वास रखनेवाले बतलाते हैं यह देखने की बात होती है।
इसके बनिस्बत अगर हिंदुओं को देखें तो वे इस तरह की बातों को बोलने से भी कतराते हैं क्योंकि उनको वे बातें अवैज्ञानिक और अंधविश्वास भरी लगती हैं । और होती भी हैं। और इस तरफ न केवल ऐसी बातें जोर दे कर कही जाती हैं बल्कि उनपर समीक्षा, विश्लेषण भी एक काल्पनिक क्लब मेम्बरशिप का कैन्सलेशन माना जाता है।
ऐसे ही एक चैनल पर एक्स मु साहिल से एक बिलिवर बहस कर रहा था। उसके कहने के मुताबिक वह अमेरिका का रहनेवाला था और यह बात उसके बोली में प्रतीत भी हो रही थी। यहाँ मैं केवल एक प्रसंग लूँगा जो सब से कम offensive लगा।
दूसरे धर्मों के ग्रंथ जलाने की बात साहिल ने छेड़ी और कहा क्या यह गलत मानते हो या नहीं। क्या दूसरों के धर्मग्रंथ जलानेवालों पर लानत भेजोगे या नहीं। अब पहले बात उनके ग्रंथ की हुई थी तो भायजान थोड़ा बैलन्स दिखाने के चक्कर में आ गए और बोले हाँ। फिर साहिल ने बात की खलीफा उमर ने एक ग्रंथागार जलाने की, तो भायजान कहने लगे कि ऐसा हो नहीं सकता। एपोस्टेट इमाम उसी चर्चा का हिस्सा थे, फौरन संदर्भ ले आए। साहिल ने अपना प्रश्न फिर दोहराया ।
इसपर भायजान साफ अड गए कि मैं खलीफा उमर ने जो किया उसे गलत नहीं कहूँगा।
और कई ऐसे मुद्दे बता सकता हूँ ऐसे कई बहसों से, लेकिन कहाँ क्या लिख सकते हैं इस बात का भी ध्यान रखना पड़ता है। समझ गए ही होंगे ऐसी आशा करता हूँ।
मूल बात की ओर मुड़ते हैं, अंधविश्वास को शस्त्र बनाने को। ये अमेरिकानिवासी भायजान और क्या ही बोल गए। और भी कई लोग आते हैं, क्या क्या कह जाते हैं। लड़ झगड़ जाते हैं, ट्रेस कर के मार डालने की धमकियाँ दे जाते हैं। कुछ धूर्त होते हैं, सच्चाई जानते हैं लेकिन अधिकांश लोग ऐसे होते हैं जो सच्चाई की बात करने से भी वाकई डरते हैं और डर के कारण हिंसक प्रतिक्रिया देते हैं। कभी बात से तो कभी हात से। बाकी ज़िंदगी में ये बहुत rational और तार्किक लोग होते हैं, हम से अधिक भी होते हैं। लेकिन जैसे ही हल्ला होता है, दिमाग पर ताला लग जाता है।
हमारी गलती यह है कि हम इस मानसिकता को नहीं समझते। और दूसरी बात यह है कि हमारी मानसिकता पर वामियों ने जो काम किया है वो ये समझते हैं, इन्होंने वामियों को अपने में घुलने नहीं दिया। इन्होंने वामी चोला ओढा और खुद को एथिस्ट बताकर शायर आदि बने लेकिन निशाने पर हमारे देवता ही रहे, अपनी विचारधारा पर एक अक्षर भी नहीं लिखा। असल में ये वामी जो बने वे वामियों की मॉनिटरिंग करने के लिए ही बने ताकि वामी कभी इनपर लिख बोल न सकें।
बाकी वामियों की जो मानसिकता है उसपर अलग से लिखना होगा।
विस्तार से लिखूँगा। और एक बात। मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि हमें चर्चा का क्षेत्र जो हमने भुगता है उसपर ही रखना चाहिए। क्योंकि आक्रांता भले ही अलग अलग मुल्कों से आये, अलग अलग भाषा बोलनेवाले थे, अलग अलग संस्कृतियों से थे, लेकिन सब का हमारे प्रति, हमारी संस्कृति के प्रति और हमारे पूर्वजों के प्रति रवैया समान था। यह हुआ उनका चरित्र। आचरण भी समान था । और इतिहास देखें तो सब में क्रूरता और हमारी श्रद्धा के प्रति अपमान भाव का धागा समान था। सभी एक ही ग्रंथ से संचालित थे, हमारे लिए इतना ही काफी है। इसपर ही बात होगी और इतिहास के इन्हीं घावों को भरना है। इसके लिए जो जिंदा, बहते हुए घाव हैं उनको इग्नोर नहीं किया जा सकता। और जो विचार उन आक्रान्ताओं को अलग अलग देशों से यहाँ लाया वो आज भी हमारे बीच जिंदा है तो उसका भी अभ्यास और इतर जो भी करना होगा वो सब करना आवश्यक है अगर भारत को भारत रखना है।

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