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मेरे लेखो में संजीदगी और मुद्दे

by अमित सिंघल
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मैं अपने लेखो को बुनने के लिए तीन धागो का अधिकतम प्रयोग करता हूँ। प्रथम, अभिजात वर्ग के कुकर्म एवं मोदी सरकार द्वारा उनका रचनात्मक विनाश; द्वितीय, हमारी निर्धनता का संरचनात्मक और बहुआयामी चेहरा जिसे हम अनदेखा कर देते है; तृतीय, महिला सशक्तिकरण। \

 

अभिजात वर्ग के बारे में मेरी समझ में विस्तार तब हुआ जब मैं स्वयं इसी अभिजात वर्ग का भाग बन गया; और इनसे बात करने, भोजन करने, साथ घूमने-फिरने का अवसर मिला। कई देशो के सन्दर्भ में इनकी कार्य प्रणाली एवं नीतियों पर भ्रष्ट पकड़ को निकट से देखने का अवसर मिला।

 

मेरा मानना है कि भारत ही नहीं, बल्कि अन्य विकासशील देशो में स्वतन्त्रता के बाद कुछ परिवारों ने सत्ता और संसाधन हथिया लिया था। भारत में नेहरू परिवार का वर्चस्व था। कई राज्यों में यादव, ठाकरे, पवार, बादल, करूणानिधि इत्यादि की वंशावली राज कर रही है या सत्ता में भागीदार थी। जिन राज्यों में इस वंश के लोग सत्ता में नहीं है, उसमें नेहरू खानदान के प्यादे सत्ता भोग रहे हैं। यही हाल तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्रियों का है जिनकी संताने भी राजनीति में है या जिनके पिता भी राजनीति में थे।

 

सत्ता और संसाधनों पर कब्जा बनाने के बाद इन परिवारों ने सुनिश्चित किया कि बहुसंख्यक जनता उसी शिक्षा तथा समृद्धि से वंचित रहे जिसका उन्हें लाभ मिला था। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इन्होंने जानबूझकर प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा की उपेक्षा की. खराब गुणवत्ता के विद्यालय खोलें। उच्च शिक्षा के विद्यालयों की जानबूझकर कभी रखी गयी। छात्रों को एडमिशन और दोयम दर्जे की डिग्री के फेर में उलझा दिया। आम जनता को बिजली, पानी, छत, ट्रांसपोर्ट, स्वास्थ्य इत्यादि जैसी दोयम दर्जे की सेवाओं में उलझा दिया या उनसे वंचित कर दिया। साथ ही, कनेक्टिविटी के साधन (सड़क, रेलमार्ग, हवाई यात्रा, टेलीफोन इत्यादि) का विकास नहीं होने दिया जिससे जनता को संगठित होने में समस्या आए।

 

तीन उदहारण देना चाहूंगा।
प्रथम, एक चार्जशीट में विशेष जाँच टीम ने कोर्ट को बताया कि कांग्रेस के अहमद पटेल के कहने पर तीस्ता सीतलवाड़, गुजरात के पुलिस अधिकारी आरबी श्रीकुमार और संजीव भट्ट ने उस समय के मुख्यमंत्री एवं उनके सहयोगी अमित शाह को फर्जी केसो में फसांया गया था। इन “सेवाओं” के लिए तीस्ता को लाखो रुपये एवं पद्मश्री भी दिया गया। कारण यह था अभिजात वर्ग ने समझ लिया था कि आने वाले समय में निर्धन एवं पिछड़े समाज के मोदी उन्हें सत्ता से फेंक देंगे। अतः, क्यों ना उन्हें जेल भेजकर सत्ता में पहुंचने ही ना दिया जाए?
द्वितीय, NGO के द्वारा विकास के हर प्रयास में, न्यायालय के सहयोग, रोढ़ा अटकाया गया जिससे विशाल जनता निर्धन रहे, सरकार को माई-बाप समझे। उदहारण के लिए, मेधा पटकर ने जानबूझकर नर्मदा डैम के निर्माण के विरोध में आंदोलन किया; जिसमे सुज़ाना अरुंधति रॉय एवं आमिर खान जैसे लोग ने सहयोग दिया। अमेरिकी उद्यमी आशा जडेजा मोटवानी ने ट्वीट में बताया था कि उन्हें आज भी वह दिन याद है जब नर्मदा बचाओ आंदोलन में विश्व बैंक की इंटर्न के रूप में कार्य कर रही थी और मेधा पाटकर ने उनके जैसे 20 इंटर्न को “थोड़ा झूठ बोलने” की सलाह दी थी। पटकर ने ग्रामीणों के हित और उनकी मांग को इग्नोर करके अपनी आइडियोलॉजी को प्राथमिकता दी।
तृतीय, चूंकि प्रधानमंत्री मोदी को अब लोकतान्त्रिक तरीको से, मतदान द्वारा, अगले चुनावो में भी हारने के सम्भावना नहीं है, तो भारत के लोकतंत्र, मीडिया फ्रीडम, प्रसन्नता, भुखमरी इत्यादि मानकों में जानबूझकर नीचा दिखवाना। देश-विदेश में बहुसंख्यक समुदाय के विरुद्ध कैंपेन चलाना; विज्ञापन एवं फिल्मे बनाना; हिंदू धर्म एवं मान्यताओं को निरस्त करने की मांग करना; सनातन प्रतीक चिन्हों (जैसे कि स्वास्तिक) को हिटलर से जोड़ना; एवं देवी-देवताओ को अपमानित करना। साथ ही, अन्य सम्प्रदाय की रूढ़िवादी, कट्टरपंथी मान्यताओं (जैसे कि महिलाओ को तंबू की तरह अपना शरीर ढककर शिक्षा संस्थाओ में जाने की मांग) को बढ़ावा देना। किसी भी प्रकार से राष्ट्र में दंगे फैलाना, चाहे वह कृषि सुधार, CAA, अग्निवीर जैसे योजनाए ही क्यों ना हो जो राष्ट्रहित में है।
इस तीसरे बिंदु पर यह बतला दूँ कि हाल ही के वर्षो में कई राष्ट्रों (श्री लंका, मिस्र, ट्यूनीशिया, अल्जीरिया, उक्रैन इत्यादि) में ऐसे दंगे एवं घेराव के द्वारा सत्ता पलट दी गयी थी।
तभी किसी भी निर्णय के नाम पर, समुदाय विशेष की आड़ में, यह अभिजात वर्ग भारत के उन राज्यों में दंगे करवा रहा है जहां उन्होंने सत्ता पर वर्चस्व बना रखा है. क्योंकि यह उनकी एक आखरी आशा है। वे प्रधानमंत्री मोदी को अपनी “शक्ति” प्रदर्शन के द्वारा भयभीत कराना चाहते हैं। यह भी चाहते है कि मोदी समर्थक इन दंगो के कारण सरकार से विमुख हो जाए।
प्रधानमंत्री मोदी उस अभिजात वर्ग का विध्वंसक रचनात्मक विनाश कर रहे हैं जिन्होंने हमारे देश के संसाधनों, शिक्षा तथा सेवाओं पर परिवार और पैसे के नाम पर कब्जा किया हुआ था।

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