मैं अपने लेखो को बुनने के लिए तीन धागो का अधिकतम प्रयोग करता हूँ। प्रथम, अभिजात वर्ग के कुकर्म एवं मोदी सरकार द्वारा उनका रचनात्मक विनाश; द्वितीय, हमारी निर्धनता का संरचनात्मक और बहुआयामी चेहरा जिसे हम अनदेखा कर देते है; तृतीय, महिला सशक्तिकरण। \
अभिजात वर्ग के बारे में मेरी समझ में विस्तार तब हुआ जब मैं स्वयं इसी अभिजात वर्ग का भाग बन गया; और इनसे बात करने, भोजन करने, साथ घूमने-फिरने का अवसर मिला। कई देशो के सन्दर्भ में इनकी कार्य प्रणाली एवं नीतियों पर भ्रष्ट पकड़ को निकट से देखने का अवसर मिला।
मेरा मानना है कि भारत ही नहीं, बल्कि अन्य विकासशील देशो में स्वतन्त्रता के बाद कुछ परिवारों ने सत्ता और संसाधन हथिया लिया था। भारत में नेहरू परिवार का वर्चस्व था। कई राज्यों में यादव, ठाकरे, पवार, बादल, करूणानिधि इत्यादि की वंशावली राज कर रही है या सत्ता में भागीदार थी। जिन राज्यों में इस वंश के लोग सत्ता में नहीं है, उसमें नेहरू खानदान के प्यादे सत्ता भोग रहे हैं। यही हाल तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्रियों का है जिनकी संताने भी राजनीति में है या जिनके पिता भी राजनीति में थे।
सत्ता और संसाधनों पर कब्जा बनाने के बाद इन परिवारों ने सुनिश्चित किया कि बहुसंख्यक जनता उसी शिक्षा तथा समृद्धि से वंचित रहे जिसका उन्हें लाभ मिला था। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इन्होंने जानबूझकर प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा की उपेक्षा की. खराब गुणवत्ता के विद्यालय खोलें। उच्च शिक्षा के विद्यालयों की जानबूझकर कभी रखी गयी। छात्रों को एडमिशन और दोयम दर्जे की डिग्री के फेर में उलझा दिया। आम जनता को बिजली, पानी, छत, ट्रांसपोर्ट, स्वास्थ्य इत्यादि जैसी दोयम दर्जे की सेवाओं में उलझा दिया या उनसे वंचित कर दिया। साथ ही, कनेक्टिविटी के साधन (सड़क, रेलमार्ग, हवाई यात्रा, टेलीफोन इत्यादि) का विकास नहीं होने दिया जिससे जनता को संगठित होने में समस्या आए।