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मोदी सरकार के आठ वर्ष

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मोदी सरकार के आठ वर्ष पूरा होने के बाद उनकी उपलब्धियों का रिव्यु किया जा रहा है। लगभग सभी लेख सरकारी योजनाओं, कुछ बड़े निर्णय (370 हटाना, नोटबंदी, GST इत्यादि), विकास, आतंक से निपटना, सुरक्षा इत्यादि पर केंद्रित है।
मैं इस सरकार के कार्यकाल को एक अन्य दृष्टिकोण से देखने का आग्रह करूँगा।
प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद संसद में अपने प्रथम संबोधन में मोदी जी ने कहा था कि 1200 साल की गुलामी की मानसिकता के कारण हमसे थोड़ा ऊँचा व्यक्ति मिले तो, सर ऊँचा करके बात करने की हमारी ताकत नहीं होती है। कभी-कभार चमड़ी का रंग भी हमें प्रभावित कर देता है। अब विश्व के सामने ताकतवर देश के रूप में प्रस्तुत होने का समय आ गया है। हमें दुनिया के सामने सर ऊँचा कर, आँख में आँख मिला कर, सीना तान कर, भारत के सवा सौ करोड़ नागरिकों के सामर्थ को प्रकट करने की ताकत रखनी चाहिए और उसको एक एजेंडा के रूप में आगे बढ़ाना चाहिए। भारत का गौरव और गरिमा इसके कारण बढ़ सकते हैं।
हाल ही में जर्मनी में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि विदेशी हुकूमत ने भारतीयों का साल दर साल जो आत्म विश्वास कुचला था, उसकी भरपाई का एक ही उपाय था फिर से एक बार भारत की जन जन में आत्मविश्वास भरना, आत्मगौरव भरना, और उसके लिए सरकार के प्रति भरोसा बनना बहुत जरूरी था।
इस गुलाम मानसिकता से निकलने के लिए आवश्यक था कि हर व्यक्ति में आत्मविश्वास का संचार किया जाए। लेकिन यह कैसे होगा? क्या केवल जीडीपी वृद्धि या अंतर्राष्ट्रीय मंचो पर सम्मान मिलने से हर व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ जाएगा?
नहीं। इस आत्मविश्वास के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति में स्वतंत्र रूप से कार्य करने या अपना मार्ग प्रशस्त करने और अपनी इच्छा के अनुसार उन लक्ष्यों और मूल्यों को प्राप्त करने के बारे में निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए, जिन्हे वे महत्वपूर्ण मानते हैं। संयुक्त राष्ट्र इस क्षमता को human agency कहता है।
निर्धन एवं निम्न मध्यम वर्गीय पुरुष, महिलाओ, किशोर, किशोरियों में इस ह्यूमन एजेंसी का विकास नहीं हो पाता। क्योंकि उन्हें सुबह से रात तक पानी, एक समय का भोजन, शौच, महिला स्वास्थ्य, बीमारी, छोटे-मोटे लोन चुकाने से ही फुर्सत नहीं मिलती। ना ही उनका घर है, ना ही उस झोपड़ी में बिजली है, ना ही पानी, ना ही शौचालय। एक आम मध्यम परिवार की तरह माता-पिता अपने बच्चो से यह नहीं पूछते कि आज स्कूल में क्या पढ़ाया गया या चलो होमवर्क में मदद कर दे।
रोजमर्रा की आवश्यकताओं में फंसे रहने के बाद उनमें कुछ और चाहने की और ना ही कोई राह निकालने की क्षमता बचती हैी
एक उदहारण लेते है – निर्धनों में ह्यूमन एजेंसी होने या ना होने की। एक मध्यम आय वाला भारतीय अपने घर में नल खोलता है, निर्धारित समय में या छत पे स्थित पानी की टंकी से पानी आ गया। उसको यह भी पता है कि उस पानी को फ़िल्टर करके पीना है, नहीं तो प्रदूषित पानी से टॉयफॉयड, कॉलेरा, पेट में कीड़े, जॉन्डिस जैसी बीमारी हो सकती हैI
एक तरह से हमारे लिए स्वच्छ जल पीने की प्रक्रिया आटोमेटिक हो गयी है जिसमे कोई समय व्यर्थ नहीं होताI शौच गए, फ्लश कर दियाI सिंपल।
अब भीषण गरीबी में रहने वाला परिवार क्या करेगा? महिलाओं को अपनी बेटियों और बहुओ के साथ गावो में पानी लाने के लिए कई किलोमीटर अभी भी चलना पड़ता हैI स्वच्छ पानी के बारे में जानकारी नहीं है और यदि है, तो उसके पास समय और साधन, दोनों नहीं है कि इस “मामूली” सी बात के बारे में सोंचेI क्योकि उन्हें पानी साफ़ करने के लिए उबालना होगा, जिसमे ईंधन लगेगाI फिर ठंडा करना होगा, जिसमे समय लगेगा I उनके पास ढेर सारे बर्तन नहीं है कि उसमे गर्म और ठन्डे पानी की साइकिल बना के रखेI
अस्वच्छ पानी के कारण उनकी लड़किया स्कूल से वंचित रह जायेगी. एक कामवाली, रिक्शेवाले, सड़क पे काम करने वाली महिला के लिए बीमारी का मतलब एक दिन की रोजगारी गयीI उसके पास पेड लीव की सुविधा नहीं हैI और कभी गंभीर बीमारी या चोट के कारण उन्हें महीने, दो महीने इलाज करवाना और काम से अनुपस्थित रहना पड़ सकता हैI पैसा भी खर्च हुआ और पारिश्रमिक भी नहीं मिलाI
मेरे लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसलिये विशेष है कि ना केवल उन्हें निर्धनता के संरचनात्मक कारको की गहरी समझ है, बल्कि उन्होंने उस निर्धनता को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाये है जिसके कारण भारत स्वतंत्रता के बाद अब भीषण गरीबी एवं भुखमरी का उन्मूलन कर चुका है (यह बदलाव मैंने वर्ष 2018 में ही पकड़ लिया था; लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के इस वर्ष के एक पेपर में पहली बार इस तथ्य को स्वीकार किया गया है) ।
15 अगस्त 2019 को केवल 3.23 करोड़ ग्रामीण घरो में (17%) नल से जल आता था। आज 9.60 करोड़ ग्रामीण घरो में (50%) नल से जल आता है और वर्ष 2024 तक सभी घरो में नल से जल उपलब्ध हो जाएगा। सभी को वर्ष 2024 तक पक्का घर भी मिल जाएगा।
आज सभी के पास बैंक अकाउंट, टॉयलेट, आधार पहचान है। सभी निर्धनों को फ्री अन्न मिल रहा है। सभी को वैक्सीन लग गयी है।
पहले किसी बड़े अस्पताल में एक निर्धन बीमार के परिजन घुसने का साहस नहीं करते थे..गिड़गिड़ाते थे। आज हाथ में आयुष्मान कार्ड लिए जब एक निर्धन आत्मविश्वास के साथ अस्पताल में घुसता है तो इसी बिंदू पर मोदी सरकार के आठ साल के शासन को दस में दस अंक दे देता हूं।
आज राहुल गाँधी ब्रिटेन के सार्वजानिक मंच से शिकायत करते है कि भारतीय राजनयिक विदेशियों की बात नहीं सुनते है, बल्कि पलट कर हड़का देते है।
बदलते भारत का, आत्मविश्वास से भरे भारत का, ह्यूमन एजेंसी से भरपूर भारतीयों का इससे बड़ा प्रूफ और क्या हो सकता है ?
यही मोदी सरकार की प्रमुख उपलब्धि है। दस में दस अंक!

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