Home लेखक और लेखदेवेन्द्र सिकरवार मोदी_कठोर_कार्यवाही_क्यों_नहीं_कर_रहे?

मोदी_कठोर_कार्यवाही_क्यों_नहीं_कर_रहे?

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पंजाब में भाजपा के सामने वही धर्मसंकट है जो पाँच साल पहले 2017 के चुनाव के समय था।
दरअसल पंजाब चुनाव से पूर्व किसी पाठक ने मुझसे पूछा था, “भाजपा शिरोमणि अकाली दल को क्यों ढो रही है और बिना कुछ किये धरे क्यों बादल परिवार की बदनामी का फल भुगत रही है।”
“क्योंकि जिस दिन भाजपा अकाली दल से हाथ छुड़ा लेगी उसी दिन से पंजाब में उग्रवाद फैलने लगेगा क्योंकि अकाली व बादल परिवार भाजपा से मिलने वाले लाभ और गठबंधन के संकोच में तब तक कुछ नहीं बोलेंगे जब तक भाजपा उन्हें मुक्त नहीं कर देती और जब इस होगा तो वह अपने स्वार्थों के लिए पृथकतावाद को हवा देने लगेंगे।” तब मैंने उत्तर दिया था।
आगे चलकर यही हुआ लेकिन ऐसा होने से भी पहले अकालियों की विडंबना रही कि उनकी खड़ी की गई पृथकतावाद की फसल पर आम आदमी पार्टी ने डाका डाल दिया।
पंजाब AAP जो पूरी तरह प्रोखालिस्तानी है 2017 में उसकी विजय सुनिश्चित हो चुकी थी और भाजपा के पास उसे रोकने के लिए अकाली दल की ढाल नहीं थी क्योंकि बादल परिवार पंजाब में लगभग सभी हिंदुओं व सिखों के बड़े वर्ग का समर्थन खो चुकी थी।
ऐसे में मोदी जी ने राष्ट्रहित में ऐसा कदम उठाया था जो संघ का देशभक्त कार्यकर्ता ही उठा सकता है।
उन्होंने भाजपाई वोट ‘अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली पंजाब कांग्रेस’ को स्थानांतरित करवा दिए जिसके बाद अमरिंदर सिंह पूर्ण बहुमत पा गये।
भारत मे अराजकता के लिए छटपटा रहे AAP, इटैलियन औरत आदि का पांसा उल्टा पड़ गया क्योंकि तमाम व्यक्तिगत कमजोरियों के बावजूद कैप्टन किसी भी तरह इटालियन औरत के संकेतों पर नाचने वाले शख्स नहीं थे।
अपनी मनमानी को छटपटा रहे कनाडाई खालिस्तानियों, कॉंग्रेस और AAP को मौका मिला कृषि सुधार बिल से जिससे जट्ट सिख बुरी तरह बौखला उठे क्योंकि मंडियों में उनकी अवैध व अनैतिक कमाई बंद हो जाने वाली थी।
इन सभी राष्ट्रद्रोही स्वार्थी तत्वों ने पूरे मामले को पंजाब व विदेशों में ‘सिख बनाम हिंदू’ और शेष भारत व विश्व में ‘किसान बनाम सरकार’ के रूप में प्रचारित किया और मजे की बात देखिये कि ऑपरेशन ब्लूस्टार व 1984 के दंगे में सीधे तौर पर जुड़ी कॉंग्रेस को बरी कर इन घटनाओं को भी हिंदुओं व संघ से जोड़ दिया गया।
ये मूर्ख मानने भी लगे और इस तरह ‘बारह बजने पर दिमाग खराब होने वाली बात को सत्य सिद्ध कर दिया।इनकी हरकतों ने सिद्ध किया कि इनके दिमाग पूरी तरह विक्षिप्त हो चुके हैं और इनकी मूर्खताओं पर बनने वाले जोक गलत नहीं थे।
चीन तथा विदेशों में बसे खालिस्तानी फंडिंग स्रोत बने और अब्दुल, करीम आदि पगड़ी पहनकर संघू बॉर्डर पर भीड़ बढ़ाने का जरिया।
पश्चिमी उत्तरप्रदेश के एक पिटे हुये राजनैतिक गुंडे राकेश टिकैत के कारण जातिवाद के मारे कुछ अभागे जाट भी ऐसे राष्ट्रद्रोही तत्वों के झांसे में आ गये।
अब उनका एक ही उद्देश्य था कि कैसे भी करके मोदी को एक कठोर पुलिस कार्यवाही करने को विवश कर दिया जाये जिसके लिए उन्होंने घृणित से घृणित कृत्य किये-
-उन्होंने संघू बॉर्डर पर मारपीट की।
-उन्होंने संघू बॉर्डर पर बलात्कार किये।
-उन्होंने संघू बॉर्डर पर षड्यंत्रपूर्वक हत्याएं की।
इसके बाद भी जब मोदी सरकार उनके उकसावे में नहीं आई तो पुलिस के जवानों पर हिंसक हमला करते हुए दिल्ली के लालकिले पर राष्ट्र के सर्वोच्च प्रतीक तिरंगे का अपमान करते हुए उस पर खालिस्तानी झंडे को लगाया और राष्ट्र की संप्रभुता को चुनौती दी।
पूरा राष्ट्र उबल पड़ा और कार्यवाही की मांग की लेकिन सरकार जानती थी कि ऐसा घोर कृत्य करने वाले इन देशद्रोही नीचों को राष्ट्र की भावना की कोई परवाह नहीं थी, उन्हें जरूरत थी सरकार की एक कठोर कार्यवाही की ताकि उसके वीडिओ बनाकर पंजाब को सुलगाया जा सके।
अपने समर्थकों की घोर आलोचनाओं के बाद भी सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं की अतः देशद्रोहियों की बौखलाहट बढ़ती चली गई।
इसी बौखलाहट में इन देशद्रोहियों की नीली पलटन के विक्षिप्तों ने एक निरीह दलित की बर्बर हत्या की और एक बार फिर भारत की राजसत्ता को उकसाया।
लेकिन मोदी सरकार तमाम आलोचनाओं के बाद भी टस से मस नहीं हुई और ऊपर से कृषि कानून वापस लेकर ऐसा कदम उठाया कि उनके विरोधी व समर्थक दोंनों सकते में आ गए।
मेरे जैसे मोदी समर्थक भी उस दिन हताश हो उठे थे लेकिन जब इटैलियन औरत व एक राजनैतिक गिरगिट नवजोत सिंह सिद्धू के षड्यंत्र से पंजाब के मुख्यमंत्री पद से हाथ धोने की सजा भुगते बैठे कैप्टन अमरिंदर सिंह अमित शाह से मिले तब मुझे इस कदम की महत्ता समझ आई।
कांग्रेस ने चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर दलितों, धर्मांतरित ईसाई सिखों व देशद्रोही सिखों के मध्य एक पांसा फैंका जिसके बाद मोदी के समक्ष दुविधा की स्थिति आ गई क्योंकि अब कांग्रेस का समर्थन नहीं किया जा सकता था क्योंकि वहाँ अब अमरिंदर सिंह नहीं चन्नी जैसे पपेट के माध्यम से स्वयं इटैलियन औरत सत्ता पर काबिज हो चुकी थी।
ऐसी स्थिति में कैप्टन अमरिंदर सिंह की सलाह को महत्व देते हुए मोदी सरकार ने कदम उठाया ताकि उसका श्रेय लेकर अमरिंदर सिंह एक राजनैतिक शक्ति के रूप में स्थापित हो सकें।
अब कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब के सिख समुदाय के छोटे ही सही पर सिख वर्ग के समर्थन व भाजपा के समर्थक हिंदू वोटों के माध्यम से एक राजनैतिक शक्ति बन चुके हैं।
अब जो सत्ता संघर्ष कॉंग्रेस व AAP के रूप में खालिस्तानियों के बीच था वह अमरिंदर सिंह के माध्यम से त्रिकोणीय हो चुका है और यही कारण है कि चन्नी व खालिस्तानियों को मोहरा बनाकर इटालियन औरत मोदी के विरुद्ध राजनैतिक ही नहीं बल्कि उनके प्राण लेने का षड्यंत्र रच रही है।
समर्थक भयंकर आक्रोश में हैं और वे इंदिरा जैसी घोर स्वार्थी व सत्तापूजक महिला के उदाहरण से पंजाब सरकार को बर्खास्त करने से लेकर पंजाब में टैंक चढ़ाने की मूढ़तापूर्ण बकवास कर रहे हैं।
वे नहीं जानते कि पंजाब हो या उत्तर प्रदेश, बंगाल हो या केरल कैसी तलवार की धार पर चल रहे हैं।
राजनैतिक लड़ाई में राजकीय हिंसा कुछ मनोविक्षिप्त कायरों को कुछ क्षणों का मानसिक सुकून जरूर दे सकती है पर इसकी कीमत मासूम इंसान चुकाते हैं।
पंजाब इस दृष्टि से सर्वाधिक संवेदी प्रदेश है क्योंकि वहाँ की जनसंख्या का एक बड़ा व प्रभुत्वशाली वर्ग अपने निजी स्वार्थ व धर्मांधता में राष्ट्रद्रोह तक पहुंच चुका है।
ये एक ऐसी विडंबना भरी राजनैतिक लड़ाई है जिसमें वीरता से फूली तोंद वाले कुछ मोदीसमर्थक और राष्ट्रद्रोही कांग्रेसी व खालिस्तानी तत्व मोदी सरकार से एक जैसी प्रतिक्रिया चाहते हैं और वह है-
सरकार द्वारा एक कठोर कार्यवाही
पर राजनैतिक समझ रखने वाले जान लें कि पंजाब, उत्तरप्रदेश के चुनाव केवल राजनैतिक चुनाव भर नहीं हैं बल्कि वे लड़ाइयां हैं जो पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गोरी के विरुद्ध लड़ी थीं।
सत्रह लड़ाई जीतने वाले पृथ्वीराज को अठारवीं लड़ाई में हार का खामियाजा अपनी आंखों व प्राणों से चुकाना पड़ा था। भारत के हिंदू भी आज सामूहिक रूप से उसी विडम्बनापूर्ण स्थिति में खड़े हैं और कोढ़ में खाज यह है कि अहंकार व राजनैतिक नासमझी में यह पृथ्वीराज चौहान से इक्कीस हैं।
जिस जिस प्रांत में भाजपा राजनैतिक समझ से शून्य हिंदू वोटरों की मूर्खताओं व अधीरता के कारण हारती जा रही है वहाँ-वहाँ हिंदू दयनीय अवस्था को प्राप्त होते जा रहे हैं।
पृथ्वीराज को तो नियति ने एक गरिमामय वीरगति का अवसर भी दिया था लेकिन भारत के हिंदुओं को वह भी नहीं मिलेगा अगर उन्होंने राजनीति के खेल को समझना नहीं सीखा।
इति!

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