1947 में 951510 वर्ग किलोमीटर भूमि लेकर भी जिन देशद्रोहियों ने दुश्मनी न छोड़ी उन्हें ये मूर्ख अम्माएँ दो चार बीघे देकर एहसानमंद बनानी चाहती हैं।
अभी शाम को ही मस्जिद में शुक्राने की नमाज पढ़कर बोलेंगे
“या अल्लाह तेरा लाख लाख शुक्र कि तूने इन काफ़िर बुढियाओं का दिमाग फेर दिया।”
बेगैरत, अहसानफरामोश कौम है वरना रामजन्मभूमि का मामला इतना लंबा न खिंचा होता और न ही काशी विश्वनाथ और कृष्णजन्मभूमि, भद्रकाली मंदिर, भोजशाला, ताजमहल सहित हजारों कन्वर्टेड मंदिरों पर कब्जा जमाए न बैठे होते।
पर अपना ही सिक्का खोटा हो तो गैर को क्या दोष।
बुड्ढा खुद तो नरक को सिधार गया लेकिन जाते जाते भी नस्लों के लिए कांटे बो गया।