Home राजनीति ‘राजनीति’ का दूसरा नाम ही ‘विश्वास-घात’ है | प्रारब्ध

‘राजनीति’ का दूसरा नाम ही ‘विश्वास-घात’ है | प्रारब्ध

लेखक - आर ए एम देव

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यह अवश्य बताना होगा कि इस पोस्ट के लेखक जो मेरे मित्र हैं, बिहार के हैं, कायस्थ हैं, और वहीं के रहनेवाले भी हैं लेकिन इन जन्मना उपलब्धि कहिए या उपाधि से ऊपर उठकर विचार करते हैं, इसिलिये यह एक वैसे क्लोज्ड ग्रुप का मेसेज सार्वजनिक कर रहा हूँ, ऐसी ही सोच की आज सभी हिंदुओं को आवश्यकता है। इनके मूल का उल्लेख इसलिए किया ताकि लोग समझें कि देश का लॉंग टर्म विचार करना क्या होता है।
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भारत के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में अब वो दिन करीब आता जा रहा है, जब हिन्दू नेताओं का विश्वास-घात हिन्दू हितों को नुकसान नहीं पहुँचा पायेगा !!!! …
‘राजनीति’ का दूसरा नाम ही ‘विश्वास-घात’ है …. किसी भी देश के राजनीतिज्ञों के क़िया-कलाप को देख लें, मेंरी बात स्पष्ट हो जायेगी … ‘उगते सूरज’ की तरफ नेता-गण भागते ही हैं, और ‘ढलते सूरज’ का साथ छोड देते हैं ….. ‘राजनीति’ का मूल उद्देश्य ही ‘सत्ता द्वारा जनसेवा’ है , बिना ‘सत्ता’ के आपका अस्तित्व ही नहीं है राजनीति में ….
सबसे बडा संघर्ष क्या होता है ‘राजनीति’ में ?? — अपनी ‘राजनीतिक जमीन, राजनीतिक स्पेस’ तैयार करना …. एक दूर-दृष्टि वाला राजनीतिक रणनीतिकार त्वरित हार – जीत के आगे जाकर ये सोचने और करने की कोशीश करता है कि उसकी पार्टी की’राजनीतिक जमीन’ कितनी स्ट़ांग, कितनी पुख्ता है, जो भविष्य में होने वाली संभावित हार के परिणामों को बर्दाश्त करने में सक्षम हो …. दूर-दृष्टि वाले राजनीतिक रणनीतिकार ‘पिच’ तैयार करने के लिए मेहनत करते हैं, जिससे कि अगर विपक्षी भी सत्ता में आये, तो उसे भी पिछली सरकार के बनाये हुए इको-सिस्टम से बाहर जाने का हौसला न हो पाये !!! ..
इस भूमिका के बाद अब मुद्दे पे आता हूँ ….
”राज ठाकरे’ Con-man है, शरद पवार का एजेंट है, BMC इलेक्शन जीतने के लिए हिन्दुत्व का सहारा ले रहा है, बाद में छोड देगा !!!! ….. ‘ मेंरा सवाल है — So What ?? ….
‘आक़मक हिन्दुत्व’ की जो ‘पिच’ बालासाहब ठाकरे अपने खून – पसीनें की मेहनत से तैयार करके गए थे, उसपे आज राज ठाकरे खेल रहा है …. कल जब ये धोखा देकर चला जायेगा कांग्रेस ( या NCP में ), तब किसी और नेता का उदय होगा इसी जमीन पर ‘आक़मक हिन्दुत्व’ की तरफ से बैटिंग करने के लिए — परेशानी क्या है ?? … ‘राज ठाकरे’ गया, पर ‘जमीन’ तो इंटैक्ट बची हुई है न ?? — फिर प्रॉब्लम क्या है ??
कम – से – कम महाराष्ट्र में जमीन तो है ‘आक़मक हिन्दुत्व’ की, बिहार में तो ये जमीन ही नदारद है !!!! … दस साल के कठोर परिश्रम के बाद जाके कहीं ‘दलित राजनीति’ की जमीन तैयार की थी कांशीराम जी ने ….. जिसपे मायावती के अलावा अन्य दसियों नेता अपनी दुकान चला रहे हैं …. ‘दलित राजनीति’ का एक ‘स्थायी प्लेटफॉर्म’ बन चुका है हिन्दुस्तान के राजनीतिक बाजार में, और सैकडों छोटे – बडे दलित नेता अपनी – अपनी रोटियां सेंक रहे हैं इसपर !!!! …. While ‘Dalit Issues’ have become ‘Permanent’, Dalit leaders come & go like bubbles !!!! …
‘आक़मक हिन्दुत्व’ की जमीन महाराष्ट्र में एक ‘संभावना’ को जन्म दे चुकी है, जिसे राज ठाकरे की ‘संभावित दगाबाजी’ नुकसान नहीं पहुँचा पायेगी !!!! …. ये जमीन तो अभी उत्तर प्रदेश में भी नहीं बन पायी है, योगी बाबा के लगभग छह साल के कार्यकाल के बावजूद !!!! … यहाँ तक कि गुजरात भी इस जमीन के लिए तरस रहा है , पाँच टर्म के भाजपा शासन के होते हुए भी …..
‘आक़मक हिन्दुत्व’ का निर्माण महाराष्ट्र में हो सका, क्योंकि बाला साहेब भी कांशीराम की तरह पद – कुर्सी के लालच में न पडकर ‘राजनीतिक जमीन’ के निर्माण में लगे रहे !!!! …. राज ठाकरे की ( संभावित ) दगाबाजी से घबराने की जरूरत नहीं है भाई-लोगों …. जैसे उद्धव की दगाबाजी के बाद राज आया, वैसे ही राज के बाद भी उसको ‘डंडा’ करनें के लिए कोई न कोई आ ही जायेगा !!!!! …. खतरनाक बात ये है कि राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में न कोई ‘आक़मक हिन्दुत्व’ की जमीन बन पायी है अबतक, और न ही योगी बाबा के अलावा कोई प्लेयर दिखाई पडता है दूर – दूर तक ( हेमंत बिस्व शर्मा आसाम से बाहर निकलेंगे नहीं ) !!!!!! … एक सौ तीस करोड हिन्दुओं को इसके बारे में गंभीरता से सोचना और कुछ करना होगा ….
और इसके लिए ‘हिन्दू OS’ बनाने की जरूरत है !!!!!! ..

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