भारत में विशेष कर उत्तर भारत में सरकारी अफ़सर नौकरी का बहुत चार्म है. हर कोई अफ़सर बनना चाहता है – प्रश्न करिए ईमानदार उत्तर होता है कि पैसे की वजह से नहीं बल्कि पावर की वजह से. पावर अर्थात् VIP होना.
समस्या यह भी है कि अख़बारों में खबरें निकलती हैं VIP कल्चर समाप्त कर दिया गया है, ज़मीन पर अफ़सरों के VIP कल्चर में कोई अंतर नहीं दिखता. रेलवे में GM जब चलते हैं तो उनका स्पेशल सेलून, उनके पहुँचने पर स्टेशन पर विशेष रेड कार्पेट बिछाया जाता है चमचा गिरी में बैंड बाजा तक बजाया जाता है. खबरें आई थीं कि यह सब समाप्त हो गया है, पर दिख रहा है वह सब बस खबरें ही थीं.
रेलवे की जेनेरल मैनेजर का इन्स्पेक्शन / मीटिंग के लिए जाना पर्फ़ेक्ट्ली फ़ाइन. उनका शानदार तरीक़े से रहना – फ़ाइन. यह सब duty के पर्क्स हैं. पर मैडम आधिकारिक दौरे में बोटिंग करने गई, उसका पेमेंट सरकारी जेब से. रास्ते में जहां जहां मैडम रुकेंगी वहाँ वहाँ मैडम को फ़्रूट बास्केट, खाना पीना, गिफ़्ट सब सरकारी खर्च से. और तो और मैडम के आने पर विशेष सफ़ाई करवाई गई थी स्पेशल पैसा खर्च कर – आख़िर अधिकारी हैं आम कन्सूमर कैटल क्लास जनता थोड़े ही.
वैसे फ़ैक्ट यह भी है कि यही मैडम इससे पूर्व DRM रहते हुवे रेलवे के ही एक डॉक्टर द्वारा स्टिंग में पचास हज़ार रुपए GM की लड़की की शादी के लिए घूस माँगती पाई गई थीं. खूब बवाल हुआ था. बाद में रेलवे ने उन्ही GM से इस आरोप की जाँच करवाई और उन्होंने घोषणा कर दी कि मैडम पर लगाए आरोप झूठ है, मैडम ने मेरे लिए कोई घूस नहीं माँगी. अब मैडम खुद प्रमोट कर GM बना दी गई हैं, भारतीय सरकारी समाज में रिश्वत खोरी ऐसे भी अपराध नहीं मानी जाती.
वैसे एक पक्ष और भी है. यह खबर जिस ने भी लिखी है वह भी निष्पक्ष नहीं लगता. शब्दों का चयन और लिखने का तरीक़ा स्पष्ट बताता है कि पत्रकार जी यहाँ सुपारी पत्रकारिता कर रहे हैं. हो सकता है कि पार्टी के लिए 150 लोगों को बुलाया गया था पत्रकार महोदय को निमंत्रण न दिया गया हो. इसकी भी सम्भावना है कि पत्रकार महोदय रेलवे में छोटा मोटा टेंडर चाह रहे हों न मिलने पर घात लगाए इंतज़ार में बैठे हों.
जो कुछ भी हो पर इतना तय है कि नेताओं का VIP कल्चर मोदी/ योगी भले ही कम कर ले जाएँ, अफ़सर शाही का VIP कल्चर दूर दूर तक समाप्त होते नहीं दिखता.