महाभारत में युधिष्ठिर को मजबूरन युवराज बनाने के बाद धृतराष्ट्र ने भीम, अर्जुन, नकुल सहदेव को सिंध में सैन्य अभियान पर भेज दिया ताकि युधिष्ठिर अकेले हो जाएं लेकिन आशा के विपरीत चारों भाई सफलता प्राप्त कर त्वरित गति से लौट आये।
कर संग्रह से प्राप्त धन को दुर्योधन बुरी तरह उड़ाने लगा जबकि पांडवों की न्यूनतम आवश्यकताओं हेतु धन को भी धृतराष्ट्र बहाने बनाता था।
भीम बौखला उठे और उन्होंने बलात धन प्राप्त करने की ठानी लेकिन युधिष्ठिर ने कठोरता से उन्हें रोक दिया।
क्या भीम बल से धन प्राप्त नहीं कर सकते थे?
अवश्य कर सकते थे लेकिन युधिष्ठिर राजमर्मज्ञ भी थे। नरेंद्र कोहली जी ने उनके मुँह से जो उत्तर दिलवाया है वह राजनीति समझने वालों कब लिए एक सबक है।
“हस्तिनापुर हमारा राज्य है और अगर मैं ही इसके नियम तोड़ूंगा तो सामान्य नागरिक से अपेक्षा कैसे करूंगा कि वह मेरे नियम माने?”
दरअसल एक बात और भी थी कि दुर्योधन के लिए हस्तिनापुर की राजसत्ता ‘भोग जुटाने का साधन’ थी जबकि युधिष्ठिर के लिए कर्त्तव्य और इसीलिये दुर्योधन युधिष्ठिर को उकसाने का हर संभव प्रयत्न कर रहा था ताकि युधिष्ठिर व दुर्योधन के बीच का अंतर समाप्त हो जाये।
मीडिया हाउसेज, भ्रष्ट अफसरशाही, और न्यायपालिका के बिक चुके मी लोड और गांधी परिवार मोदी को उकसाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि देश के अपने संविधान की धज्जियां उड़ जाएं और उनमें व मोदी में अंतर शेष न रहे।
मोदी यह बात बखूबी समझते हैं कि यह महान राष्ट्र, यह भूमि उनकी अपनी है और इसकी मर्यादा उन्हें ही रखनी होगी जबकि इटालियन औरत, मु स्लिम और बिक चुके तंत्र के लिए यह देश, भूमि व जनता उनका भोग जुटाने भर का साधन भर हैं।
और हाँ, महाभारत में युधिष्ठिर को राजधर्म का उपदेश देने की योग्यता केवल तीन में थी
विदुर, भीष्म और कृष्ण।

Related Articles

Leave a Comment