सोसल मीडिया ज़मीन से कितना कटऑफ़ रहता है लखनऊ लूलू माल प्रकरण इसका ज़बर्दस्त उदाहरण है.
यदि आप केवल सोसल मीडिया पर रहते हैं तो आपको लगेगा लूलू माल में केवल मुस्लिम स्टाफ़ है, मुस्लिम ग्राहक है, हिंदुवों में ज़बर्दस्त नाराज़गी है, योगी जी मजबूरी वस उद्घाटन कर आए थे पर खुश वह भी नहीं हैं, माल फेल है.
हक़ीक़त यह है कि आज दोपहर से ही हाइवे जाम था. फ़ूड कोर्ट में लगभग हर काउंटर में पचास सौ लोगों की लाइन थी. हाइपर मार्ट के चेक आउट काउंटर पर घंटों की वेटिंग. शाम तक आते आते हाइवे पर डेढ़ से दो घंटे का जाम था. क़ानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रदेश सरकार कटिबद्ध है. अनर्गल नमाज़ प्रकरण को रोक पाने में असफल रहे थाना इंचार्ज को सस्पेंड भी कर दिया गया.
और ऐसा नहीं कि यह लखनऊ का पहला माल हो, इससे पहले भी दसियों माल खुले हैं, अन्य किसी में ऐसा क्रेज़ नहीं रहा. लूलू को सोसल मीडिया पर फ़्री की ऐड्वर्टायज़िंग मिली. सोसल मीडिया पर उनके ख़िलाफ़ जो फ़ेक मेसेज खूब शेयर किए गए, पब्लिक का कौतूहल रहा कि जाकर देखें है क्या बला. वहाँ पहुँच पब्लिक को समझ आया कि ये जो अस्सी प्रतिशत मुस्लिम आदि आदि की बात हो रही है वह सब बस सोसल मीडिया के दिमाग़ की उपज है. अब यहाँ तक आए हैं अच्छा माल है, कुछ ख़रीद लें, खा पी लें. और इस तरह से इस माल में इतनी भीड़ हो रही है जैसे लंगड़ लगा हो और भीड़ कम होने का नाम नहीं ले रही है.
वैसे यह पहला मौक़ा नहीं है जब अल्ट्रा राइट विंग समाज की नब्ज से कोशों दूर हो. पास्ट में UP चुनाव में भी इनके अनुसार चुनाव में हिंदुत्व की लहर थी, हक़ीक़त में चुनाव जिताया मोदी जी के राशन ने. इनके अनुसार ज़मीन पर मोदी को एक वोट न मिलेगा. हक़ीक़त में मोदी जी के नाम से आज किसी भी राह चलते को खड़ा कर दो सभासद से सांसद मोदी नाम लेकर लोग जीत जा रहे हैं.
धीमे धीमे भड़काऊ बयान बाज़ी, लाइक शेयर की चाहत में राइट विंग सोसल मीडिया की सोसल और पोलिटिकल क्रेडिबिलिटी का पतन हो रहा है और यह बात जितनी जल्दी इसे समझ आ जाए उतना बेहतर.