Home राजनीति लोकतांत्रिक कराह के साथ अब जागे कमीने सेक्यूलर बुद्धिजीवी भी

लोकतांत्रिक कराह के साथ अब जागे कमीने सेक्यूलर बुद्धिजीवी भी

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अब जागे सेक्यूलरिज्म के नाम पर पत्थरबाजों की पैरवी करने वाले सो काल्ड बुद्धिजीवी भी। तब जब देखा कि उत्तर प्रदेश की पुलिस ने पत्थरबाजों की कमर तोड़ दी है। पत्थरबाजों ने पश्चिम बंगाल में पुलिस पर ताबड़तोड़ हमले कर जनजीवन संकट में डाल दिया है। राजस्थान , कर्नाटक के बाद अब झारखंड में भी गुंडई का झंडा गाड़ दिया है। कश्मीर को जहन्नुम बनाने वाले लोग समूचे भारत को जहन्नुम बनाने की ठान चुके हैं। कानपुर , प्रयाग , सहारनपुर आदि शहरों में जब पत्थरबाजी हुई तो यह लोग फूले नहीं समाए। क्या तो योगी का डर ख़त्म हुआ।
लेकिन देश ने भी ठान लिया है कि देश को जहन्नुम नहीं बनने देंगे। तब सेक्यूलर बुद्धिजीवियों ने अपना-अपना बुरक़ा उतार कर दबी जुबान लोकतांत्रिक विरोध की माला जपनी शुरु की है। चूड़ियां खनकानी शुरु कर दी है। जे एन यू के क्रांतिकारियों ने भी ढपली बजानी शुरु की है। रामनवमी से ही पत्थरबाजी चालू थी। पर यह कमीने सेक्यूलर बुद्धिजीवी ख़ामोश थे। ताली बजा रहे थे। सारा लांछन मोदी सरकार पर लगा रहे थे। दंगे हो रहे थे राजस्थान में। यह कमीने मोदी सरकार को ज़िम्मेदार बता रहे थे।
अब जब पुलिस ने कमर ही तोड़ दी है , बुलडोजर चला दिया है तो लोकतांत्रिक कराह आने लगी है। उधर कुवैत ने भी भारतीय पत्थरबाजों को वीजा कैंसिल कर बेरंग भेज दिया है भारत। भारत को भी इन्हें भगा देना चाहिए। भारत में उपस्थित पत्थरबाजों की नागरिकता रद्द कर देनी चाहिए। बांग्लादेशियों , रोहिंग्याओं को तुरंत ट्रकों में भर-भर कर इन की सीमाओं पर छोड़ देना चाहिए। मानवाधिकार आदि की ऐसी-तैसी !

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