शहरी इलाकों में अतिक्रमण के दायरे में मन्दिर आते हों तो उन्हें हटाने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए केवल शहरी क्षेत्रों के सौंदर्यीकरण, विस्तारीकरण के लिए किसी पौराणिक, ऐतिहासिक मन्दिर या धर्मस्थलों को हटाना बेवकूफी है। बल्कि ऐसी किसी स्थिति में इन्हें मास्टरप्लान या प्रोजेक्ट का हिस्सा बना संरक्षित कर सदुपयोग करना चाहिए। शहर और सुन्दर लगेंगे।
यह काम मन्दिर में स्थापित विग्रहों आदि पूज्यनीय सामग्रियों को ससम्मान हटा कर किसी दूसरी जगह मन्दिर निर्माण की व्यवस्था कर और विग्रहों को पुनर्स्थापित करने के सुन्दर ढंग से किया जा सकता है। यदि नित्य पूजन-अर्चन वाली मूर्तियों/विग्रह वाला मन्दिर हो तो नए स्थान पर मन्दिर निर्माण तक विग्रह इत्यादि एक अस्थायी व्यवस्था में रखे जाएँ, उनका पूजन-आरती निरंतर होती रहे। मन्दिर हटाने से पहले नए मन्दिर की जमीन और निर्माण की व्यवस्था औपचारिक तौर पर कर ली जाय।
इसे मन्दिरों का पुनर्निर्माण कह लीजिए और इसकी परंपरा है सनातन में जब भी समयकाल की आवश्यकता हो। इस कार्य में स्थानों को हटाने वाली सरकारी इकाई और समाज दोनों की भूमिका रहे। धन आदि की व्यवस्था ट्रस्ट निर्माण के साथ समाज और बड़े स्थापित ट्रस्टों, मठों के सहयोग से की जाय। सरकारी इकाई जमीन की व्यवस्था करे।
श्रीकाशी विश्वनाथ कॉरिडोर निर्माण में ऐसा सुन्दर कार्य किया गया। ऐसे उदाहरण आगे बढ़ाए जा सकते हैं।