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शहरी लोगों को शायद पता न हो .

by Ajit Singh
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शहरी लोगों को शायद पता न हो ……
पर गांव देहात में किसान खेतिहर लोगों की अपने पशुओं से Communicate करने की भाषा होती थी ।
हर क्षेत्र बोली भाषा के अलग अलग शब्द होते थे ।
फ़ॉर इगझामपुल हमारे इधर बनारस साइड , हल या बैलगाड़ी में चल रहे बैलों को रोकने के लिये बोलते थे …… होर … होर
और बैल रुक जाया करते थे ।
अगर कोई ढीठ बैल होता तो उसे थोड़ा डांट के बोल देते ….. होरर्रे ……
तो कैसा भी ढीठ हो रुक जाता ।
इसी तरह भैंसों को रोकने के लिये कहते हीर्रर्र …… हीर्रर्र…….
अगर इतने पे न मानती तो थोड़ा डांट के , जोर से कहते ….. हिर्रर्र रे ……. अरे हीर्ररर्रे रे …….
अब आप कहेंगे कि बैल तो चलो हल में या बैलगाड़ी में चलते थे ।
ये भैंस कहाँ चलती थी ?
तो भैंस को जब सानी चलाते ….. उसे हमारे इदर भोजपुरी में हौदी लगाना भी कहते हैं ……तो वो अदबदा के हौदी पे टूट पड़ती ….. सानी करने ही न देती … तब किसान कहता …. हीरर्ररर्र रे …….
कल रात बनारस में बहुत से मसाजवादी पहाड़िया मंडी स्थित ईभीयम strong Room अगोरने टूट पड़े …….
तो DM साहब पहले तो प्यार से कहते रहे ….. होर होर होर होर
फिर जब नही माने तो चिल्ला के गुस्से में बोले , अरे हीर्ररर्रर रे …… बाद में सुना है कि 4 पैना लेबो किये ।
बाद में तो सुना है कि लबदन लबदन पिटाये सब ।
आपके इधर पशुओं से Communicate करने की क्या बोकेभुलरी है ?????

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