” शिक्षा ” जो अन्य जीवों की तरह मनुष्य को भी उसकी पहचान देती है , उसकी विशिष्टताओं को जगाती है परंतु “मानवीय शिक्षा ” अन्य जीवों की आनुवंशिक रूप में प्राप्त शिक्षा से भिन्न एक बृहत प्रक्रिया जिससे एक मनुष्य सही अर्थों में एक जानवर से ” चेतना ” युक्त जीव बनता है . “शिक्षा” जिसने मनुष्य को फर्क करना सिखाया – अच्छाई और बुराई में , सत्य और असत्य मे , धर्म और अधर्म में और सिखाया उसे ” चुनाव करना ” . यह एक एसी क्षमता है जो संसार में और किसी जीव को उपलब्ध नहीं है . इसी शिक्षा ने व्यक्ति को परिवार बनाया , परिवार को कुटुंब , कुटुंब को ग्राम , ग्राम को जनपद और जनपद को राष्ट्र बनाया . ये शिक्षा ही है जिसने ” राष्ट्र ” के रूप में मानवता को एक बडी और उदात्त इकाई में ढाला .

किसी विद्वान ने कभी कहा था , ” शिक्षा राष्ट्र निर्माण की पहली सीढी है ” इतिहास गवाह है कि शिक्षा और शिक्षक का मान जिस देश और सभ्यता में हुआ है वो विश्व में विशिष्ट रूप से विकसित हुआ और बेहद शक्तिशाली बना . प्राचीन यूनान की महानता की स्थापना उसके योद्धाओं ने नहीं बल्कि उसके दार्शनिक शिक्षकों और शिक्षा ने की थी . जर्मनी के एकीकरण के संदर्भ में प्रशिया और फ्रांस के युद्ध के संदर्भ में में कहा गया , ” पिछला युद्ध फ्रांस के शिक्षकों ने जीता था अगला युद्ध प्रशा के शिक्षक जीतेंगे ” भारत के संदर्भ में तो ये बात और अधिक स्पष्ट रूप से सामने आती है और मौजूं भी है . प्राचीन पर्शिया के महान सम्राट – सायरस से दरायस तक भारत को जीतने आये और तक्षशिला की लौह दीवार से सिर टकरा टकरा कर लौट गये . अलैक्जैंडर द ग्रेट ….सिकंदर महान आया और भग्न ह्र्दय हो लौट गया उसकी पराजय की पटकथा झेलम के युद्ध में कहर बरपाते हाथियों के महावतों या कठों के अभेद्य रथ व्यूह द्वारा नहीं लिखी गयी बल्कि वो तो तक्षशिला के विश्वविद्यालय में लिखी गयी . इसके बाद पार्थियन , शक , कुषाण , हूण जैसे अल्पकालिक विजेता आये परंतु कोई भी भारत में ठहरना तो दूर अपने स्वतंत्र अस्तित्व को कायम तक नहीं रख सके . कौन था इनकी पराजयों के पीछे थी – हमारी शिक्षा व्यवस्था जो बच्चे बच्चे को राष्ट्र के लिये उठ खडे होने को प्रेरित करती थी . प्राचीन गुरुकुल केवल औपचारिक शिक्षा के केन्द्र नहीं थे , वे तो राष्ट्र निर्माण की भट्टियाँ थीं जिसमें संसार के सर्वाधिक उर्वर व उत्पादक वैज्ञानिक मस्तिष्क और वज्रवक्ष वाले योद्धा तैयार किये जाते थे . जब तक ये भट्टियाँ सक्रिय रहीं कोई भी विदेशी आक्रमण भारत पर स्थाई प्रभाव नहीं डाल पाया . परंतु मुसलमानों के आक्रमणों ने पहली बार भारत के समक्ष गंभीर चुनौती रखी . इन नये प्रकार के आक्रमणकारियों ने भारत की राष्ट्रीयता के केन्द्रों ” विद्यालयों ” और ” मंदिरों ” को नष्ट करना और उन्हें ” मदरसों , मकतबों ” और मस्जिदों में बदलना प्रारंभ किया . उन्होंने भारतीय शिक्षापद्धति के स्थान पर अरबी – फारसी शिक्षण पद्धति प्रारंभ की और भारतीय शिक्षा को हतोत्साहित किया और परिणाम ये हुआ कि तत्कालीन भारत में तेजी से एसा वर्ग विकसित हुआ जो अपनी मातृभूमि को विदेशी मानने लगा .

 

आखिर उपाय क्या हैं ?
इस समस्या का निदान ही इसका उपचार है जो इसके इतिहास में ही निहित है . प्रत्येक देश की अपनी संस्कृति होती है और वह उस देश के भूगोल द्वारा निर्धारित होती है . परिस्थितियों के अनुसार उसमें बदलाव होते रहते हैं पर मूलतत्व बरकरार रहते हैं , भारत में मैकाले के विष का उपचार भी इसे नियम द्वारा संभव है , जैसे —
1- शैक्षणिक सत्र – हम ब्रिटिशों की नकल पर ग्रीष्मावकाश लेते हैं . वे एसा इसलिये करते हैं क्यों कि उनके यहाँ शीत ऋतु दुरूह और ग्रीष्म सुहावनी होती है . इसलिये शैक्षणिक सत्र बसंत पंचमी से प्रारंभ किया जाना चाहिये जैसा कि प्राचीन भारत में हुआ करता था ताकि छात्र शीत ऋतु में अवकाश ले सकें . ( क्षेत्रानुसार इसमें थोडा बहुत फेरबदल भी किया जा सकता है )
2- भाषा – निर्विवाद रूप से इसे संस्कृत होना चाहिये और दक्षिण या विरोध करने वाले राज्य इसे अपनी मातृ भाषा में भी रख सकते हैं , यद्यपि अंग्रेजी भाषा को भी बोलना सिखाना चाहिये क्यों कि विश्व का अधिकांश ज्ञान अंग्रेजी में अनुवादित हुआ है अन्यथा सरकार को एक अनुवाद विभाग स्थापित करना चाहिये जो विश्व के प्राचीन और आधुनिक ज्ञान को संस्कृत और क्षेत्रीय भाषा में अनुवादित कर सके
3- सभी विद्यालयों में विशाल पुस्तकालयों की व्यवस्था होनी चाहिये . ई-लाइब्रेरी भी हो .
4- गुरुकुल पद्धति लागू हो , कम से कम माध्य्मिक स्तर से तो निश्चय ही .
5 – गुरुकुल हेतु प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूलों के शिक्षकों का चुनाव अत्यंत सावधानी से किया जाये . उन्हें बाल मनोविज्ञान में दक्ष होना आवश्यक हो . उन्हें उच्च वेतनमान और अत्यंत उच्च सम्मान जो प्रोफेसरों के ही समान हो , दिया जाये परंतु उनपर कठोर निगरानी रखी जाये विशेष तौर पर उनके चरित्र पर ताकि बाल यौन शोषण की घटनायें घटित ना हो सकें .
6- इंटर और कॉलेज लेवल के शिक्षकों और प्रोफेसरों का चयन अत्यंत उच्च कोटि के विद्वानों द्वारा और कठोर परीक्षा द्वारा किया जाना चाहिये .
7- विज्ञान , गणित और इतिहास पर विशेष जोर दिया जाये . प्राथमिक स्तर पर स्क्रीन और कंप्यूटरों द्वारा और माध्यमिक स्तर पर प्रयोगशालाओं में भी शिक्षा दी जाये ..साहित्य कला के साथ साथ प्राचीन विधाओं यथा वेदपाठन और कर्मकांड को भी सिलेबस में शामिल किया जाये और इनसे स्नातक होने के बाद ही मंदिरों में नियुक्ति के लिये योग्य माना जाये .
8- धनुर्विद्या , निशानेबाजी , कुश्ती , बॉक्सिंग , तैराकी , मार्शल आर्ट , एथलेटिक्स आदि खेलों को बढावा दिया जाये और इनमें प्रवीण विद्यार्थियों को भविष्य में प्रशिक्षक के तौर पर नियुक्त किया जाये .
9- ३ वर्ष के लिये अनिवार्य सैनिक सेवा की शर्त रखी जाये यद्यपि विज्ञान के शोध छात्रों को इससे पृथक रखा जाये .
10 – इनकी वयवस्था के लिये एक अत्यंत उच्च कोटि की संवैधानिक स्वायत्त संस्था का गठन किया जाये जिसमें सरकार का हस्तक्षेप केवल राष्ट्रीय संकट के समय करने का अधिकार हो वर्ना सरकार का अधिकार केवल ” निगरानी ” और ” सूचना देने ” तक सीमित हो . साथ ही इस संस्था के सद्स्यों के आचरण भ्रष्ट होने पर सामान्य नागरिकों से अधिक कठोर दंड की व्यवस्था हो .

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