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शिव की प्राप्ति कैसे होगी

Akanksha Ojha

by Akansha Ojha
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शिव को दो प्रकार के लोग प्राप्त कर पाते हैं। या तो जो एकदम भोला है अर्थात निश्छल है और एक वो जो प्रकांड विद्वान है।
भगवती पार्वती का चरित्र इन दोनों से संयुक्त है। पार्वती पर्वतराज हिमाचल के वंश में अवतरित हुईं सभी प्रकार की सुख सुविधाओं एवं ऐश्वर्य से युक्त कुल में।
भोलापन उनमें था ही और संकल्प भी। शिव से उनका प्रेम संकल्प में परिणत हो गया। उन्होंने शिव और शिव की महानता से ही प्रेम किया और कुछ उनके लिये महत्त्व नहीं रखता था। शिवतत्व के विषय में पार्वती की दार्शनिकता।
पूर्ण उद्गार अभिव्यक्ति व्याख्या प्रबोधन शिवमहापुराण में वर्णित हैं। पार्वती शिवतत्व के विषय में सप्तर्षियों से अधिक ज्ञान रखती हैं। और पार्वती ने शिव से प्रेम में यश अपयश हानि लाभ मान अपमान किसी की चिंता नहीं की।
भोला व्यक्ति मान अपमान हानि लाभ यश अपयश वैभव अवैभव की परवाह नहीं करता क्योंकी जिससे उसने प्रेम कर लिया उस प्रेम के समक्ष सब तुच्छ है और ज्ञानतत्व के अनुगामी विद्वान भी हानि ल‌ाभ यश अपयश वैभव अवैभव मान अपमान को तुच्छ मानकर और उस परिधी को पार कर शिवब्रह्म को प्राप्त होते हैं।
भगवती पार्वती भोलापन और विद्ववता दोनों से युक्त थीं। इसीलिये वह शिव से प्रेम और शिव की महानता की प्रेमी थीं। और शिवतत्व के विषय में उनकी विद्वता सप्तर्षियों से आगे थी। अत: पार्वती को शिव प्राप्त होने ही थे। शिव शक्ति की लीलाओं में गहन अर्थ हैं।
नमः पार्वतीपतये हर हर महादेव

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