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श्रीलंका में आर्थिक तबाही आई हुई है

by Nitin Tripathi
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श्रीलंका में आर्थिक तबाही आई हुई है न अनाज मिल पा रहा है, न बच्चों को दूध मिल पा रहा है, न मरीज़ों को दवा मिल पा रही है. जनता बाहर निकल बवाल न कर पाए इस लिए देश व्यापी कर्फ़्यू लगा दिया गया है.

पाकिस्तान के भी हालत कुछ विशेष बेहतर नहीं हैं.
हर वह देश जो समाजवादी व्यवस्था से चलता है, उद्यमिता / टैक्स अनुशासन को बढ़ावा देने के बजाय मुफ़्त खोरी, सरकार पोषित उद्योग, सरकार पोषित नौकरियाँ, सरकार द्वारा बाँटी जाने वाली ख़ैरात व्यवस्था पर चलता है, उनका यही हाल होता है. भारत भी 1990 में इन्हीं हालत से गुज़रा था. दसकों के लहरू चिचा वाले समाजवाद ने देश के अर्थ तंत्र को खोखला कर दिया था. प्राइवट कुछ था नहीं और सरकारों के हाथ पूरी पावर होती है तो वह ईमानदार कहाँ रह पाती हैं. भारत के पास इतने पैसे नहीं रह गए थे कि विदेशों से ज़रूरी सामान मँगा सके. नौबत यहाँ तक आ गई थी कि विदेशों में भारत की सम्पत्तियाँ नीलाम होने के कगार पर थीं. तब भारत सरकार को देश का सोना गिरवी रख कर पैसा उधार लेना पड़ा था.
फ़िर नर सिम्हा राव प्रधान मंत्री आए. देश में उदारी करण हुआ. इकॉनमी का पहला गियर लगा. देश में कैपिटल फ़्लो स्टार्ट हुआ. प्राइवट उद्योग आरम्भ हुवे. उद्यमी जनता के ख़्वाबों को पर लगे. फ़िर अटल जी के समय दूसरा गियर लगा. सफ़ेद हाथी सरकारी विभागों से मुक्ति पाई गई. नीति बनी कि सरकार का काम है इंफ़्रा स्ट्रक्चर देना. पूरे भारत में सड़कों / हवाई अड्डों का काम युद्ध स्तर पर आरम्भ हुआ. IT क्रांति आई.
मोदी जी ने इस इकॉनमी पर तीसरा गियर लगाया. देश को टैक्स अनुशासन सिखाया. उद्योगों के लिए टैक्स सिसटन सिम्पल करते हुवे gst लाया गया. विपक्ष के लाख उकसावे के बावजूद ऐसी स्कीमें नहीं लाई गईं जो देश के फंड कलेक्शन को कम करें, उल्टा ईमानदार कोशिश की गई कि देश के अधिसंख्य लोग टैक्स देना आरम्भ करें. आत्म निर्भर भारत पर ज़ोर दिया गया. फ़ायनैन्शल से लेकर मैन्युफ़ैक्चरिंग तक सबमें मेक इन इंडिया पर फ़ोकस किया गया.
वहीं लंका में फ़ूड से लेकर दवाइयाँ तक सब इंपोर्ट होती रहीं. लोक लुभावनी घोषणाओं में देश के फंड कलेक्शन पर ध्यान न दिया गया. वह स्कीमें जो केवल पेपर पर अच्छी लगती हैं जैसे देश में अब केवल ओर्गानिक खेती होगी – ऐसी स्कीमों को लागू किया गया तो खेती का आउट्पुट भी आधे से कम हो गया. हर सरकार ज़बर्दस्त लोन लेती चली गई कि कौन सा हमें चुकता करना है बाद वाले जाने. और रही सही कसर करोना ने पूरी कर दी.
आज हालत यह हैं कि नेपाल हो या बांग्ला देश या मालदीव या कोई भी अफ़्रीकन देश. भारत सबको उनकी ज़रूरत पर एकाध बिलियन डालर चिल्लर की भाँति उधार दे कर अपने सम्बंध, ताक़त और ख़ज़ाना मज़बूत कर रहा है. इतना ही नहीं भारत के अपने फ़ाइनैन्स सिस्टम जैसे रुपे, UPI आदि अब अग़ल बग़ल के देशों के फ़ाइनैन्स सिस्टम की बैक बोन बन रहे हैं. भारत की दसियों प्राइवट कम्पनियाँ इन छोटे मोटे देशों की gdp से ज़्यादा का अकेले स्वयं व्यापार कर लेती हैं. आज लंका की ज़रूरत पर भारत अपनी शर्तों पर लोन देता है, तारीफ़ भी पाता है.
बाक़ी फ़िर छोटे विजन में तो हमारे गाँव में भी लोग बता देते हैं इंकम टैक्स माफ़ कर दिया जाए, पेट्रोल से टैक्स हटा दिया जाए, मोबाइल फ़्री कर दिया जाए, अम्बानी अदानी की सम्पत्ति ज़ब्त कर देश में बाँट दी जाए और सबको सरकारी नौकरी दे दी जाए. और इस तरह से एक साल जम कर ऐश कर ली जाए. उसके बाद राम जाने.

 

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