Home राजनीति सत्ताधारियो का दोगला चरित्र
कल एक फ़ोटो देखा। असल में दो फ़ोटो थे। एक में ओवैसी बंधु अपने बच्चों के साथ कहीं आराम से बैठे थे। दूसरे में दिल्ली दंगे के पत्थरबाज थे। कैप्शन था कि इनके बच्चे एसी में आराम करते हैं, उनपर मुकदमें नहीं होते, और आप के बच्चे यूं धार्मिक उन्माद में पत्थरबाजी करते हैं।
ये जिसके भी दिमाग से निकला है वो इस कौम को समझा ही नहीं। ऐसे चित्रों पर हिन्दू भड़कता है, अपने नेताओं को गालियां देता है। उसका नेताओं से मोहभंग होता है, नेता को चुनावों में भारी कीमत चुकानी पड़ती है।
ये लोगों की वैसी सोच नहीं होती। उनको ये सब पता है, आप कोई रहस्यभेद नहीं कर रहे। बात लूट की है, दहशत से वसूली की है, मकान दुकान खाली करवाकर कब्जा जमाने की है। शहर में खौफ बढ़ाना होता है, फटीचर सिंगल पसली भी किसी तगड़े हिन्दू को केवल अपनी टोपी पाजामा के आधार पर घुड़की दे यह बात इनको संतुष्ट करती है। Lumpen losers की मानसिकता अलग होती है, हिन्दू नहीं समझेगा।
हिन्दू अपने नेता को चुनता है सब की खुशहाली के लिए, शांति के लिए। ये अपने नेता चुनते हैं तो उनके निकष अलग होते हैं। उपद्रवमूल्य और उपद्रवियों का हर हाल में साथ, मुख्य निकष होते हैं। मतों की सौदेबाजी से मुफ़्त की सहूलियते हिंदुओं के टैक्स के खर्चे से ऐंठना इसमें भी अहम संतुष्ट होता है इनका। अगर उस नेता में ये गुण हैं तो ऊपर गिनवाई बातें हो जाती हैं। तब फिर नेता ऐश कूटता है और इन्हें पुलिस कूटती है ये बात इनको विचलित नहीं करती।
फ़ोटो चलानेवाले को पलेस्टिन में हमास के नेताओं के खिलाफ होता आक्रोश दिखाई दिया होगा। वहाँ नागरी बस्ती या अस्पताल, स्कूल आदि से रॉकेट चलाते थे। यह मानकर चलते थे कि इस्राइल नागरी बस्ती में रॉकेट नहीं दागेगा। लेकिन इस्राइल ने वह भी किया। प्रचार मैनेज करने में उनको भी महारत है। उन्होंने पहले हमास को एक्सपोज किया कि ये ‘बहादुर’ इस तरह से लड़ते हैं। फिर घोषित किया कि जहां से रॉकेट चला है वहीं हमारा जवाबी रॉकेट जा गिरेगा और वो अधिक ताकतवर होगा।
काफी बच्चे मारे गए फिर भी पलेस्टिन की माएँ बच्चे पैदा करती रही, ये अफीम है ही ऐसी। लेकिन उससे हासिल कुछ नहीं होता दिखा तब उनको नेताओं का दूसरे देशों में सुरक्षित रहना, ऐश से जीना, ढेर सारे बच्चे पैदा करना और सब को अच्छे से रखना यह सब दिखाई देने लगा। क्योंकि बच्चे बस मर रहे थे, हाथ कुछ नहीं लग रहा था। हो सकता है कुछ हाथ लगता, जीत जाते और यहूदियों से अपनी गुलामी करवाते तो बच्चे मारे जाना इनके लिए बड़ी बात नहीं होती।
भारत में इनके लिए अभी भी स्कोप दिखता है क्योंकि हम बहुत जल्दी जमीन छोड़ते हैं और सरकार को ही कोसते हैं। शहरीकरण के साथ सब कश्मीरी हो गए हैं। प्रतिरोध प्रतिकार की सोचते ही नहीं, प्रसन्न करने की सोचते हैं।

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