Home नए लेखकओम लवानिया सम्राट पृथ्वीराज! हिंदुस्तान का शेर : Full Movie Review

सम्राट पृथ्वीराज! हिंदुस्तान का शेर : Full Movie Review

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बॉलीवुड के अतीत वाले कंटेंट का असर है कि नज़दीकी सिनेमाघरों के शो खाली पड़े है गिने-चुने दर्शक बैठे है’
लेखक डॉक्टर चंद्र प्रकाश द्विवेदी ने हिन्दू राजा पृथ्वीराज चौहान को इतिहास के पन्नों से निकालकर सिनेमाई पर्दे पर लाए है। कवि चंद वरदाई की पृथ्वीराज रासो कविता के साथ स्क्रिप्ट व स्क्रीन प्ले पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के इर्दगिर्द लिखा गया है, कन्नौज से प्रेम कहानी भी रखी है या कहे इसको केंद्रित कर दिया गया है और पृथ्वीराज चौहान के शौर्य व वीरता को प्रेम से कमतर कर बैठे है। परन्तु स्त्री को समान अधिकार का अच्छे से जिक्र किया है।
निसंदेह स्क्रीन प्ले दिलचस्प लिखा गया है, इसमें सनातनी पराक्रम और संस्कृति का चित्रण शानदार है। लेकिन…लेकिन! ऐतिहासिक तथ्यों की दृष्टि से जितना पढ़ रखा है उसे रियलिटी कम ड्रामैटिक और कमर्शियल स्वरूप दिया है और इसका फॉर्मेट फ़्लैश बैक रखा गया है। अक्सर पीरियड कंटेंट का पसंदीदा शेप रहता आया है। इसमें कोई ऐसे तथ्य नहीं है जिन्हें नए हो। तिस पर लेखक द्विवेदी ने ऐतिहासिक कहानी को काल्पनिक किरदार काका कान्ह दिए है। इसका रेफरेंस ‘मामा’ से मेल खाता है।
लेखक ने क्लाइमैक्स पर फोकस रखा, उसे सर्वश्रेष्ठ बनाने की पूरज़ोर कोशिश की, कुछ हद तक औसत की दहलीज तक कामयाब रहे है।
पृथ्वीराज चौहान के शौर्य व वीर गाथा को महज 2 घण्टे 13 मिनट समेट दिया, इसे विस्तारित किया जा सकता था। दो प्रसंग में वीरता के हर पहलू को दर्शकों के सामने नहीं रखा जा सकता है। पार्ट में विभाजित कर देते।
डॉक्टर साहब ने संवाद में अच्छे पँच और वजनदार रखा है सुनने पर रौंगटे खड़े होते है। लेकिन उदरू शब्दों की भरमार है। इश्क, अफसाना, फरमान, फरियाद आदि। अफगानी किरदारों के उदरू शब्द तक ठीक है, लेकिन पृथ्वीराज भी ऐसे शब्द उच्चारण में ला रहे है। अच्छे डायलॉग्स जुबां पर रहे है।
‘पृथ्वीराज शौर्य का सूरज है’
‘उत्तराधिकारी रिश्तों से नहीं, योग्यता से चुना जाता है’
‘जंग जज्बातों से नहीं, तलवारों से कायम की जाती है’
मोहम्मद गौरी के मुँह से भाड़े पर लडूं, सुनकर हंसी निकल जाती है।
जब गौरी कहता है कि ये हिंदुस्तानी मिट्टी को माँ मानते है इसके लिए जान भी दे सकते है। जबकि हमारे लिए सिर्फ मिट्ठी का टुकड़ा है। गर्व वाली फीलिंग देता है।
संचित बल्हारा ने सम्राट पृथ्वीराज के स्वागत में अच्छा स्कोर रखा है जबकि शंकर त्रिमूर्ति का संगीत प्रभावी है। हरि हर 70एमएम पर गूँजता है अच्छा माहौल क्रिएट किया है।
प्रोडक्शन डिजाइन में सेट्स अच्छे है, किरदारों के लुक व कॉस्ट्यूम पीरियड कालखंड को रिलेक्ट न कर सके है, बनावटीपन अधिक छाया रहा। जबकि कुछ कलाकारों में किरदार नजर आए।
फ़िल्म की कास्टिंग बेमेल है और कमजोरी भी, शायद निर्माता ने मुख्य किरदारों को छोड़कर बाकी के लिए ऑप्शन खुला रखा। निर्देशक अपनी पसंद जाहिर कर सके। असल खेला मुख्य में ही हो गया।
अक्षय कुमार! शौर्य वीर सम्राट पृथ्वीराज चौहान से मिलने का मौका मिला, लेकिन अक्षय कुमार मिलने की बात तो दूर ठंग से बोल भी न पाए। पृथ्वीराज के समक्ष आवाज़ ही नहीं निकली। खिलाड़ी कुमार ने असाधारण पृथ्वीराज को साधारण कंटेंट की तरह ट्रीट किया और पीछे छूट गए। कुछ फ्रेम में अच्छे लगे है। परन्तु मुँह खोलते ही सब बर्बाद कर दिया है।
मानुषी छिल्लर! पहले डेब्यू कंटेंट में अच्छा कर गई। कुछ सीक्वेंस में अक्षय कुमार से अव्वल नजर आई। संयोगिता को मानुषी के रूप में अच्छी सहेली मिली। न्याय किया है।
संजय दत्त! कट्टपा की यादें ताजा कर गए, छोटे से स्क्रीन प्रिजेंस में ठीक रहे है लेकिन उनके हिस्से में भटवे संवाद भद्दा प्रतीत हुआ।
सोनू सूद! कवि से ज्यादा भविष्यवक्ता रहे, ऐसा लगा कि इन्हें पूरा सिलेबस पहले से रटाया हुआ है महाभारत के संजय की तरह बतला रहे है, आगे क्या होगा।
आशुतोष राणा! जयचंद को इससे बेहतरीन कलाकार दे पाना कास्टिंग डायरेक्टर के लिए सम्भव न था। वाक़ई जयचंद ही लगे है बुलंद आवाज़ में अक्षय को कच्चा रौंद गए है। चेहरे के भाव में छल, कपट साफ झलक रहा था।
छोटी उपस्थिति में बड़ा नोटिफिकेशन फेंका है।
मानव विज! चेहरे के भाव में कमीनापन और कायरता स्पष्ट थी। लुक और अभिनय से मोहम्मद गौरी में समा गए। डायलॉग डिलवरी में अच्छा बेस व भारीपन रखा, इससे डाइलॉग खिलकर निकले।
साक्षी तंवर! 70एमएम पर जबतक रही, प्रभावी दिखी है। बाक़ी कलाकारों ने अपने किरदारों को अच्छा पकड़ा है, अक्षय के सामंत भी उनसे बेहतर कर निकले है। मोहन जोशी भी दमदार रहे है।
मानुष नंदन ने पहले सीक्वेंस व क्लाइमैक्स को अच्छे से कैद किया है। मोहम्मद की धोखेबाजी सीक्वेंस को शानदार बना दिया है और आखिरी में भी कैमरा वर्क अच्छा रखा। कुछ सीन तो सॉलिड बन पड़े है संजय दत्त का हाथी के नीचे से निकलकर गौरी को गिराना अद्भुत रहा।
आरिफ शेख ने इस कंटेंट को कायदे में रखा, ज्यादा खींचने न दिया। क्योंकि लेखक-निर्देशक के पास गीतों के अलावा सीमित मटेरियल था। स्क्रीन प्ले में रोचकता बनाए रखी।
डॉक्टर साहब….डॉक्टर साहब! आपने ड्रीम प्रॉजेक्ट में इतना ही रिसर्च कर रखा था, कुछ तो एक्स्ट्रा सामने रखते। आपके पास जितना रहा, कम से कम उसे तो कॉमर्शियल न रखकर रियलस्टिक शेप दे जाते। पृथ्वीराज में किसी ऐसे कलाकार को लेते, जो इस स्क्रीन प्ले की यूएसपी बनता, न कि कमज़ोरी और आखिर क्या मजबूरी थी, इसे प्रेम कहानी में समेटने की। इससे बेहतरीन ड्रीम को ड्रीम ही रहने देते।
डॉक्टर साहब ने कुछ बिंदुओं से सनातनी धर्म व संस्कृति की सहिष्णुता को चिन्हित किया है कि हिन्दू राजा धर्म और संस्कृति के लिए शरण आए, दुश्मनों की मरते दम तक रक्षा करते है। सहायता प्रदान करते है।
हिन्दू वीर योद्धाओं में कतई छल, कपट, धोखेबाजी न थी। सबकुछ वीरों की भांति किया, अगर जरा भी ऐसे लक्षण होते तो अफगानी, मुगल भारत में प्रवेश न कर पाते।
कंटेंट से जो मैसेज जनरेट हुआ है कि संकट को वक्त पर खत्म कर दो, नैतिकता का बिगुल मत बजाओ। आगे मौका नहीं देता है।
भारत के दुश्मन अतीत में देख लो या वर्तमान में कायर ही निकले है पीठ में छुरा खोंपा है। तब भी सोते हुए, निहत्थों पर वार किया था, अब भी करते आए है। जबतक रहेंगे, करते रहेंगे। भारत को सहिष्णुता त्यागनी पड़ेगी।
इसमें कोई शक नहीं है कि डॉक्टर साहब ने बॉलीवुड कंटेंट में उन बातों को रखा, जिसे बी-टाउन के लेखक-निर्देशक रखने में कतराते थे। सोमनाथ मंदिर को तोड़ने वाले डायलॉग, दुश्मनों को लुटेरा, निर्मम, अत्याचारी परिभाषित किया है।
बॉलीवुड वाले शौर्यवान हिन्दू राजाओं को प्रेमी, आशिक़ बतलाने पर क्यों तुले हुए है, शौर्य को दबाने का लगातार प्रयास हो रहा है ऐसा क्यों…क्योंकि डकैतों की मर्दानगी की पोल खुल जाएगी। ख़ैर।
पृथ्वीराज चौहान के लिए कंटेंट अवश्य देखा जाना चाहिए। सभी देखकर आए। आगे भी दोस्तों को प्रेषित करें।
धन्यवाद

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