Home सच्ची कहानियां सेना भर्ती और वेकेंसी- “कोई पीले चावल नही दे रहा” : Samar Pratap एक भारतीय सैनिक

सेना भर्ती और वेकेंसी- “कोई पीले चावल नही दे रहा” : Samar Pratap एक भारतीय सैनिक

Rajeev Mishra

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कोई पीले चावल नही दे रहा है इतने बड़े देश मे देश रक्षा करने के लिये।लोग फ्री में भी करने को तैयार हैं..
जब हम भर्ती हुवे थे और ड्रिल में गलती करने पर पिछवाड़े पर डंडे बजते थे तो इन्सटेक्टर को बोलते थे कि सर इब इब के छोड़ दो। तो वो बोलता था कि कति ना छोड़ू किसने पीले चावल दिये थी बेटा फ़ौज में भर्ती हो जा और देश सेवा कर। दूसरे कर लेंगे।
सेना की संख्या लिमिटेड है।अगर एक यूनिट में 800 जवान है तो रेजिमेंट सेंटर से नए जवान तब ही भेजे जाएंगे जब 800 में से कुछ कम होंगे।
आप संख्या से ज्यादा जवान नही रख सकते।एक सेक्शन से प्लाटून, कम्पनी और यूनिट लेवल पर लिखत में हर विभाग के हिसाब से संख्या तय है।
एक आदमी पेंशन आयेगा तो उसकी जगह एक लिया जाएगा।आने वाले के रेंक के हिसाब से प्रमोशन भी मिलेगा।मान लो एक सूबेदार पेंशन आया तो लांस नायक,नायक,हवलदार, नायब सूबेदार और सूबेदार 5 आदमियों के प्रमोशन होगा और एक नया जवान सेना में शामिल होगा।
किसी सरकार की हिम्मत नही है की वो भर्ती न करे अगर वेकेंसी हो तो ।क्योकि कमांडिंग ऑफिसर अपनी संख्या कम होते ही सेंटर से नया जवान मांग लेगा।सेंटर कमांडेंट नई भर्ती करे या बीआरओ से आये जवानों को ट्रेंड करके यूनिट में भेजे ये उसका काम है।ये पुलिस नही है कि भर्ती 3 साल रोक दो चुनाव के समय करके वोट ले लो।
हमारे पापा वाली उम्र में जाएंगे तो उस समय सेना फौजियों को भर्ती करने गाँवो में आती थी ।कम ही लोग जाते थे फिर भी उतरी भारत ज्यादा जाता था,पूर्व वाले बहुत कम।
फिर जनसंख्या बढ़ी बेरोजगारी आई तो बंगाल से लेकर साउथ तक के लोगो ने भी सेना में रुचि ली।
आज से 20 से 22 साल पहले भी 250 की भर्ती के लिये हजारों की भीड़ जाती थी और लड़के तीन तीन बार दसवीं करके भी सेना में भर्ती नही हो पाए।
मेरे गाँव और बॉम्बला गांव से जबलपुर की तीन चार बोगी भरी जाती थी हर तीन चार महीने में पर भर्ती 10 या 15 ही लड़के होते थे।बाकी किस्मत समझ कर उम्र निकल जाने पर अपना दूसरा काम करते थे।
अब उस समय बंगाली, साउथ और पूर्व वाले बहुत पेंशन जाते थे और नार्थ वालो में हरियाणा राजस्थान वालो को ये बोला जाता था कि ये तो रिटायरमेंट के बाद भी यही रोटी रोटी में नोकरी कर लेंगे घर जाकर क्या करेंगे।लगभग सब पूरी सर्विस करते थे।
फिर गुड़गांव दिल्ली में जॉब बढ़ी,जमीन बिक्री हुई,नए लड़के पढ़कर जाने लगे उन्हें पता था कि सेना से पेंशन पाकर सेना के कोटे से नोकरी बाहर लगना आसान है और हरियाणा,पंजाब,यूपी,राजस्थान वाले सबसे ज्यादा पेंशन आने लगे।वे आते तो भर्ती फटाफट निकलती और दूसरे स्टेट वाले लम्बी नोकरी करने लगे।।
नार्थ वाले जी हजूरी भी कम करते थे अकड़ में रहते प्रमोशन नही लेते अपने घर आ जाते पेंशन लेकर।
इतने ज्यादा लोग पेंशन आये की पुलिस में एक एक भर्ती में 1500 तक सिर्फ एक्स मैन भर्ती हुवे।सब आते ही दूसरे फौजियों को फोन करते कि आ जाओ क्यो फ़ौज में हाड़ तुड़वा रहे हो पेंशन है ,दूसरी नोकरी है लाखो रुपये के साथ मेडीकल फ्री और केंटीन सुविधा है। फिर और ज्यादा पेंशन आने लगे।
दिल्ली पुलिस,महाराष्ट्र पुलिस,पंजाब पुलिस,हरियाणा पुलिस भर गई एक्स फौजियों से।
अर्धसैनिक बलों में भी खूब फौजी गए और प्राइवेट सेक्टर में भी।
लेकिन 20 साल पहले ही सेना ने इस बात पर चर्चा शुरू कर दी थी कि जब 15 साल के आसपास जवान से सार्जेन्ट बनकर जवान फ़ौज चलाने लायक होता है अपने घर चला जाता है ऊपर से वँहा जाकर दुसरो को और मिस गाइड करता है कि आ जाओ।
सेना से ज्यादा पेंशन भोगी हो गए है।तो सेना अपने बजट से नई सेना तैयार करे या फिर पेन्शन भोगियो के पेट पाले बस।
तो उस समय से ही 20 साल बाद पेंशन मिलेगी या कलर सर्विस के बाद पेंशन मिलेगी जैसे नियमो पर चर्चा होने लगी।और सेना से पेंशन आने पर रोक लगने लगी ।
ऑफिसर को सेना वैसे ही नही छोड़ती थी लेकिन जवान को छोड़ देती थी क्योकि एक कि जगह हजार खड़े है आने के लिये।लेकिन जो एक गया वो 15 से 16 साल के नाम पर 80 से 100 साल तक सेना से सब फेश्लिटी लेगा।।
सेना उस बोझ की वजह से पेंशन पर रोक लगाना चाहती थी।
धीरे धीरे रोक लगी और वेकेंसी निकलनी कम हुई।
आज एक सैनिक को आने के लिये बड़ी बड़ी प्रोब्लम बता के भी 3 या 4 साल लग जाते है।
दूसरा सेना की पैमेंट बढिया हो गई है फेश्लिटी अच्छी है ।बाहर बेरोजगारी देखकर।सेना के एक्स सर्विस मैन का नोकरी के लिये प्रतियोगिता देखकर वँहा रहने वाले फौजियों ने पेंशन कम आने का निर्णय किया।पेंशन वही आते है आजकल जिनका डिसिप्लिन ठीक नही है सेना रखना नही चाहती या फिर
जिन्होंने सेना में रहते हुवे अपनी पढ़ाई की,दूसरे कोर्स किये और सिविल से टच रहकर वँहा की जरूरत जानी या जिनका घर का बेकअप अच्छा है।
नही तो ना तो सेना आने दे रही है ना सैनिक आना चाहते है।
तो जिनको लगता है कि मैं इतने समय से तैयारी कर रहा हूँ ।भर्ती नही निकल रही ।मुझे देश सेवा में जाना है तो सेना कोई भण्डारा तो है नही भाई वँहा वेकन्सी होगी तभी लिया जाएगा।
अब हमारे इधर जिसको पढ़ाई से पीछा छुटाना है या हल्का पढ़ाई में कमजोर है वो 10 के बाद ही बोल देता है कि भर्ती की तैयारी करूँगा।
मैं गाँव की जिम पर बहुतो को बोलता हूं भर्ती देख पढ़ाई तो जारी रख ,
नही हुआ भर्ती तो कंहा जाएगा, पर नही सुनते है।
बहुत से तो ऐसे भी देखे की भर्ती के नाम पर घर वालो से 5 या 7 हजार रुपये लेकर शिमला घूम आये और घर वालो को आकर बोले कि रेस नही लगी अब तैयारी करेगे।
तो आप टायर बांध कर भाग रहे है या सुबह 4 बजे उठकर,आप मे कमाने की इच्छा है या देश भगति की ज्वाला।
वो भावुकता सही है।
लेकिन भावुकता के नाम पर आपको सेना अपनी संख्या से ज्यादा भर्ती करके नही रखेगी।
आप अग्निवीर न बने या सीधे सैनिक बने ।
कम से कम अपनी लाइफ को इतना सस्ता मत बनाओ की जॉब नही मिली तो आत्म हत्या कर ली।
इतनी जल्दी आत्महत्या करने वालो के लिये सेना बनी ही नही है।वो लड़ने वालों के लिये है।वो चाहे सेना में जाकर लड़े या खेत मे या शहर में।
क्योकि सैनिक को बताया जाता है कि लड़ाई मरकर नही जिंदा रहकर जीती जाती है।मरने वाले शहीद लड़ाई के बाद पत्थर पर अंकित हो जाते है । जिंदा ऐसी बहुत लड़ाई सेना में और बाहर आकर जीवन भर लड़ता है।
प्रॉब्लम समझिये मैं रेस मार रहा हूँ,मैं पढ़ रहा हूँ तो मुझे जॉब दो।मेरा भीम यंत्र खड़ा हो गया है तो लड़की दो ये बेतुके प्रश्न है।
आपकी क्षमता आपको समय से सब दिलाएगी।
हमारी गलतफहमी ही ये है कि पढ़ाई को शिक्षित होने से न लेकर जॉब गारन्टी समझते है,दौड़ने को भर्ती होने की गारन्टी समझते है।बहुतो को तो लगता है कि बस सरकार का विरोध करना ही क्रान्ति है।
मुद्दों पर विरोध होता है और मुद्दों पर समर्थन भी ।
सरकार और बाहरी आक्रान्ताओ में अंतर जानो,सरकार हम चुनते है बाहरी लोग हम पर जबर्दस्ती राज करते थे।पर हम इतने साल गुलाम रहे और विरोध किया है कि बस विरोध को क्रांति समझ बैठे है।अपना देश उसकी सरकार उसकी प्रॉब्लम समझने की बजाए उसे बाहरी देश,बाहर के लोग और उसका विरोध करके क्रांतिकारी बनना चाहते है।
तो शांति रखिये,योजनाओं को समझिये न समझ मे आये तो मत जाइए।
कोई पीले चावल नही दे रहा है इतने बड़े देश मे देश रक्षा करने के लिये।लोग फ्री में भी करने को तैयार ह।
जब हम भर्ती हुवे थे और ड्रिल में गलती करने पर पिछवाड़े पर डंडे बजते थे तो इन्सटेक्टर को बोलते थे कि सर इब इब के छोड़ दो। तो वो बोलता था कि कति ना छोड़ू किसने पीले चावल दिये थी बेटा फ़ौज में भर्ती हो जा और देश सेवा कर। दूसरे कर लेंगे।

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