स्कूल और कॉलेज के समय मैंने थोड़ा बहुत “स्टेज” परफॉर्मेंस किया है।
अपने अनुभव से कह रहा हूँ के स्टेज पर हीरो का किरदार निभाना जितना आसान है उतना ही कठिन …..उतना ही जटिल और उतना ही पेचीदा “नेगेटिव” किरदार निभाना है।
विलेन बनना बहुत मुश्किल है।
नेगेटिव किरदार में जान फूंकने के लिये चेहरे पर एक हरामीपन चाहिये …..बात करने का ढंग शातिराना होना चाहिये।
आखों में हवस ……चाल ढाल में कमीनापन चाहिये।
मैं व्यक्तिगत रूप से “बड़ी बिंदी गैंग” की कुछ महिलाओं से मिला हूँ।
उनसे चर्चा हुई है…..वाद विवाद हुआ है।।
यूँ तो फ़िल्म का हर किरदार बेमिसाल है।
लेकिन पल्लवी जोशी ने बड़ी बिंदी गैंग की महिला किरदार को “अमर” कर दिया है।
अगर आप वास्तव में किसी कट्टर वामपंथी महिला से मिले हैं तो आप पल्लवी जोशी को आस्कर अवार्ड से सम्मानित करने की मुहिम में शामिल हो जायेंगे।
बड़ी बिंदी गैंग बात करने में शालीन है…..सभ्य है …..तर्कपूर्ण है।
बड़ी बिंदी गैंग की किसी सदस्या से बात कीजिये…..आपको महसूस होगा के उनका रिसर्च वर्क कमाल का है।
भाषा पर उनकी पकड़ कमाल की है।
उनके द्वारा दिये गये उदाहरण कमाल के हैं।
अगर उनके पॉलिटिकल प्रोपोगेंडा को ना समझा जाये तो उनकी पर्सनैलिटी कमाल की लगती है।
एक ओर सेकुलरिज्म की बात और उसी सेकुलरिज्म की आड़ में राष्ट्रविरोधी प्रोपोगेंडा को प्रोमोट करने का कार्य बड़ी बिंदी गैंग इतनी सरलता से कर लेता है के साधारण युवक/युवती उनकी आइडियोलॉजी में इस तरह से फंसता है जैसे एक चूहा चूहेदानी में फंस जाता है।
पल्लवी जोशी का एक एक डॉयलॉग….. उनकी भाव भंगिमाएं बड़ी बिंदी गैंग के हूबहू हैं।
चेहरे पर वही इंटेलेक्चुअलिज़्म और बातों में वही दोगलापन।
बेशक नेगेटिव किरदार हैं ……लेकिन मेरी समझ में पल्लवी जोशी ने “द काश्मीर फाइल्स” के जरिये वामपंथ के एजेंडे को नंगा कर दिया है।
एक लंबे अरसे के बाद एक नेगेटिव किरदार ने मुझे इस हद तक प्रभावित किया है के मैं ऑफिशियली पल्लवी जोशी का फैन बन गया हूँ।
पोस्ट बेशक़ रचित सतीजा जी ने लिखी पर भाव हूबहू मेरे हैं ।