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हमको वास्तविक चरित्र से क्या मतलब

by Umrao Vivek Samajik Yayavar
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**हमको वास्तविक चरित्र से क्या मतलब, हमको तो केवल और केवल अपनी जड़ता से मतलब है**
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पैदा होते ही आजन्म के लिए जाति तय हो जाने और तय हो चुकी जाति के आधार पर ही जीवन का बहुत कुछ निर्धारित हो जाने वाले समाज के लोगों की कंडीशनिंग ऐसी हो चुकी है कि हमारे पूर्वाग्रह भी स्थाई होते हैं। हम यह स्वीकार कर माने में असमर्थ रहते हैं कि चारित्रिक परिवर्तन भी होता है। हमने एक बार जो सेट कर लिया, हम चाहे जो हो जाए वही सेट रखते हैं। हमारी जड़ता बहुत ही मुश्किल से टूटती है।
यह जड़ता वाली बात हमारे सोच-विचार व मानसिकता के हर पहलू पर लागूम होता है। हम भले ही जीवन में कुछ न उखाड़ पाए हों, और हमारे सामने वाला दलित भले ही जीवन में बहुत कुछ कर गया हो, लेकिन हम भले ही खुलकर नहीं कहें, लेकिन अपने मन में अपने व्यवहार में अपनी सोच में उसे अपने से कमतर ही मानते हैं। जबकि दलित ने विपरीत परिस्थितियों में से निकल कर बहुत आगे तक गया, और हम उसकी तुलना में बेहतर वातावरण पाने के बावजूद कुछ नहीं उखाड़ पाए हों, लेकिन फिर भी जातिगत श्रेष्ठता अहंकार की जड़ता हमें उस दलित का अंदर से सम्मान नहीं करने देती, उसको अपने ही जैसा मनुष्य स्वीकारने नहीं देती। अब ऐसी मानसिकता वाले लोग व समाज सामाजिक न्याय को क्या समझेंगे।
हमारा भारतीय समाज विभिन्न प्रकार व स्तर के पूर्वाग्रहों से आकंठ ग्रस्त रहता है, हमारा भारतीय समाज विभिन्न प्रकार के खांचों में भयंकर रूप से बटा हुआ है। सबसे भयानक तत्व यह है कि हम जड़ता में जीते हैं। हमारी जड़ता स्थाई भाव लिए होती है। हम गति नहीं करते हैं, हम पूर्वाग्रह भी भयंकर रूप से जड़ता का शिकार रहता है।
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हमने एक बार सेट कर लिया कि साम्यवाद अच्छा है, साम्यवाद में समाधान है। हमने सेट कर लिया कि चीन में साम्यवाद है, रूस में साम्यवाद है। तो हमने सेट कर लिया। जैसे हम जाति को बस मान लेते हैं, पैदा होते ही जाति तय हो जाती है। इससे कोई मतलब नहीं कि किसका कर्म कैसा है, किसका व्यवहार कैसा है, जाति तय हो गई तो हो गई। दलित भले ही दुनिया की सबसे बेहतरीन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हो जाए वह दलित जाति का ही रहेगा। ब्राह्मण भले ही किसी जूता कंपनी में काम करे वह ब्राह्मण ही रहेगा।
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बिलकुल इसी तरह हमने सेट कर लिया कि चीन व रूस साम्यवादी हैं तो हैं। भले ही उनमें साम्यवाद का एक भी गुण न हो, हम उनको साम्यवादी मानेंगे औत दूसरों को साम्राज्यवादी। हमने सेट कर लिया तो कर लिया। जो हमने सेट कर लिया है, उसको साबित करने के लिए पूरी ताकत लगा देंगे। जबकि इस ताकत की तुलना में बहुत कम ताकत यथार्थ को जानने समझने में लगनी होती है। लेकिन हमारी जड़ता ऐसी है कि हम जड़ता के लिए पूरी ताकत झोंक देते हैं। और यह करने में गौरव महसूस करते हैं।
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150 साल पहले किसी कारण से होमियोपैथ एलोपैथ की डिबेट हुई, जिन्होंने डिबेट शुरू की वे तो डिबेट से जो जूस निकलना था वह जूस लेकर आगे बढ़ गए, इतना आगे बढ़ गए कि उनके लिए होमियोपैथ एलोपैथ दोनों का ही औचित्य खतम हो गया। लेकिन हम आज भी पूरी ताकत से होमियोपैथ एलोपैथ करते रहते हैं। विडंबना यह कि होमियोपैथ हो एलोपैथ दोनों में ही हमारा कोई योगदान नहीं, दोनों ही योरप की देन हैं। एलोपैथ को नीचा दिखाने का कोई ठोस कारण नहीं हमारे पास, लेकिन हम होमियोपैथ को महान व एलोपैथ को बुरा बताते रहते हैं। क्योंकि हमने ऐसा अपनी मानसिकता में सेट कर लिया है, सेट हो गया तो गया, यही सेट रहेगा।
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हमारा देश विश्वगुरू था, हमारे यहां ईश्वर स्वर्ग से घूमने आते थे और बढ़िया बढ़़िया जादुई उपहार दे जाते थे, जो वे दूसरे समाजों को नहीं देते थे, केवल हिंदुत्व समाज को ही देते थे। हमारे पास सबकुछ था, हमारे पास ज्ञान था, विज्ञान था, हम पुष्पक विमान में उड़ते थे, हम हाथी की गर्दन काटकर आदमी में जोड़ देते थे। हम आसमान में बिना किसी यंत्र के उड़ लेते थे, इतना उड़ लेते थे कि दूसरे ग्रहों तक में चाय-पानी करने चले जाते थे। हम दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने की बातें सुन व देख लेते थे वह भी बिना किसी यंत्र की सहायता से। ऐसा ही बहुत कुछ।
लेकिन जब से मुगल आए उन्होंने सब चौपट कर दिया, जब से अंग्रेज आए उन्होंने सब चौपट कर दिया। मुगलों व अंग्रेजो के पहले हमारे यहां सबकुछ दैवीय था। साम्यवाद था, समाजवाद था, किसान समृद्ध था, कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था थी। मुगलों व अंग्रेजों ने सब बर्बाद करके अपने जैसा होना के लिए मजबूर कर दिया। वह बात अलग है कि हम जैसे हैं, वे वैसे हैं ही नहीं।
लेकिन हमने सेट कर लिया है तो कर लिया है। हमें मुसलमानों से ईसाईयों से नफरत करनी है तो करनी है। हमें खुद से सवाल नहीं पूछना है कि आखिर हम ऐसा क्यों कर रहे हैं। हमें आत्म-परीक्षण नहीं करना है कि सोच विचार करें, सही गलत का विश्लेषण करें। जो सेट है, हमें तो उसी की जिद, उसी की जड़ता, उसी के पूर्वाग्रह में जीना है। दुनिया भले ही इधर की उधर हो जाए।
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ऐसा ही साम्यवाद के संदर्भ में है। हमने रूस व चीन को साम्यवाद आदर्श मान लिया है। ये देश साम्यवाद का आदर्श होना तो दूर की बात, साम्यवाद का ककहरा भी जीते हैं या नहीं, इससे हमें कोई मतलब नहीं। हमने मान लिया तो मान लिया, हमने अपने अंदर सेट कर लिया तो कर लिया।
हमने सेट कर लिया है कि रूस व चीन साम्यवाद के महान आदर्श हैं और अमेरिका व योरप साम्राज्यवादी हैं, तो हैं, जो हमने सेट कर लिया है, वही जड़ता हमारा अंतिम सत्य है। हमें यह देखने की जरूरत नहीं कि चीन व रूस साम्यवादी हैं या भयंकर रूप से तानाशाही व साम्राज्यवादी। हमें यह देखने की जरूरत नहीं है कि योरप के अनेक देश व्यवहारिक रूप से बहुत बेहतर व्यवहारिक साम्यवाद व समाजवादी व्यवस्था में जी रहे है या नहीं।
चूंकि हमने सेट कर लिया है कि रूस व चीन साम्यवादी हैं तो भले ही हमको दीख रहा हो कि वे नीचता कर रहे हैं, आततायी हैं, बर्बर हैं। लेकिन हमारी नजर में वे साम्यवादी ही रहेंगे, महान ही रहेंगे, वे जो करेंगे वह हमारी नजर में साम्यवाद ही रहेगा, हम ताली ही पीटेंगे। रुस व चीन जो भी करें भले ही भयंकर साम्राज्यवाद करेम लेकिन वह सब हमारी नजर में साम्यवाद है। योरप जो भी करे भले ही साम्यवाद व समाजवाद करे लेकिन हमारी नजर में वह साम्राज्यवाद ही रहेगा।
जो हमने सेट कर लिया है, वह सेट ही रहेगा। हमको वास्तविक चरित्र से कोई मतलब नहीं। USSR ने एक बार नाम के आगे समाजवादी जोड़ लिया तो अब जब तक धरती रहेगी तब तक रूस साम्यवादी व समाजवादी ही रहेगा। चीन ने एक बार कम्युनिस्ट पार्टी की स्थाई सरकार बना ली, तो अब जब तक धरती रहेगी तब तक चीन कम्युनिस्ट ही रहेगा। USSR ने 100 साल पहले कह दिया कि योरप साम्राज्यवादी है तो है भले ही योरप के अनेक देशों ने अपनी सेनाएं खतम कर दी हों, भले ही रक्षा बजट की बजाय अपना संसाधन शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार में खर्च करते हों। भले ही शताब्दियों से लड़ते रहने वाले देशों ने अपनी सीमाएं व मुद्राएं एक तरह से समान कर ली हों। लेकिन एक बार हमने सेट कर लिया कि वे साम्राज्यवादी हैं, तो हैं। हम खोज खोज कर तर्क लाएंगे, जबरिया साबित कर देंगे। जरूरत पड़ेगी तो हजार साल पहले का कुछ खोजकर लाएंगे और साबित करेंगे।
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हम तो उस समाज के लोग हैं जहां 70 साल पहले मर चुके आदमी का भूत हमारे देश की सरकार को महान काम नहीं करने देता है। हम तो उस समाज के लोग हैं, जहां पड़ोसी देश के दशकों पहले मर चुके आजम का भूत प्रदेशों के चुनावों में किसकी सरकार बनेगी या नहीं बनेगी यह तय कर देता है। यह है हमारी जड़ता का स्तर।
जब हम अपने, अपने परिवार, अपने समाज, अपनी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य तय करने के विषयों व मुद्दों में अपनी जड़ता से बिलकुल चिपक कर जुटे रहते हैं, तो हम अपने आप से यह अपेक्षा कैसे कर सकते हैं कि हम यह जानने समझने का प्रयास करेंगे कि चीन या रूस में साम्यवाद समाजवाद है या नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि रूस व चीन का वास्तविक चरित्र साम्राज्यवादी हो। कहीं ऐसा तो नहीं कि योरप अपना साम्राज्यवादी चरित्र बहुत पहले ही छोड़कर समाजवाद व साम्यवाद को व्यवहार में जीने की ओर बढ़ गया हो। लेकिन हमको इस सबसे क्या, हमने जो सेट कर लिया है, हम वही मानेंगे। एक बार हो दलित हो गया वह भले ही प्रोफेसर हो, वह चर्मकार जाति का ही रहेगा। ब्राह्मण भले की जूता बनाने वाले कारखाने में मजदूरी करता हो, वह ब्राह्मण ही रहेगा भले काम चर्मकारी का करता हो। इसलिए रूस व चीन भले ही काम साम्राज्यवादी करते हों हमारी नजर में वे साम्यवादी समाजवादी ही रहेंगे, योरप भले ही अपने यहां साम्यवाद समाजवाद को व्यवहार में उतार कर व्यवस्थाएं बना रहा हो, लेकिन हमारी नजर में साम्राज्यवादी ही रहेगा। हमको चरित्र से क्या मतलब, हमको अपनी जड़ता से मतलब है।
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विवेक उमराव

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