Home विषयइतिहास हम गरीब नहीं थे
जब महमूद गजनवी और मुहम्मद गोरी ने भारत पर हमला किया था तो हम कोई गरीब देश नहीं थे.
जब अंग्रेजों ने देश पर कब्जा किया तब भी हम गरीब नहीं थे.
लेकिन जब अंग्रेज इस देश से गए तब हम बेहद गरीब थे. 1942 में जब सत्तर लाख लोग बंगाल के अकाल में भूख से मर गए तब हम बेहद बेहद गरीब थे.
हम कैसे गरीब हुए? क्यों भूखों मरे? क्या हमारी धरती ने अन्न उपजाना बन्द कर दिया था? क्या हमारे बादलों ने बरसना बन्द कर दिया था? क्यों 15% बच्चे पैदा होने के साल भर के अन्दर मर जाते थे?
हमने पहले क्या खोया? समृद्धि या आजादी?
और हमने पहले क्या मांगा? समृद्धि या आजादी?
क्या राणा प्रताप ने अकबर से टैक्स कम लगाने की मांग की थी? क्या शिवाजी चावल के बढ़ते दाम के खिलाफ लड़े थे? क्या भगत सिंह ने अंग्रेजों से राशन में किरासन तेल का कोटा बढ़ाने के लिए लड़ाई की थी? अगर हमने अंग्रेजों से बेहतर बिजली पानी सड़क के लिए लड़ाई लड़ी होती तो हमें बेहतर बिजली पानी सड़क मिल गए होते? और हम उतने से संतुष्ट हो गए होते?
यह झूठ है कि बिजली पानी, सड़क और नौकरी आजादी और आत्मसम्मान से बड़े मुद्दे हैं. बिना आजादी के किसी को समृद्धि नहीं मिली है, नहीं मिल सकती और अगर मिलती भी तो उसका कोई मूल्य नहीं होता.
ज्ञानवापी का संघर्ष सिर्फ एक इमारत के स्वामित्व का संघर्ष नहीं है. इस प्रश्न में सिर्फ अतीत में हुई क्रूरताएं और अत्याचार ही शामिल नहीं हैं, बल्कि हमारे इतिहास के साथ और हमारी संस्कृति के साथ हो रहे इस सतत वर्तमान अन्याय का प्रश्न भी शामिल है. यह इतिहास का बदला वर्तमान से लेने की जिद नहीं है, बल्कि उस इतिहास के नैरेटिव को यथार्थ और सत्य के संदर्भ में स्थापित करने का संघर्ष है.
ज्ञानवापी की मुक्ति का प्रश्न हमारी सांस्कृतिक स्वतंत्रता का प्रश्न है. और बिना सांस्कृतिक मुक्ति के किसी भी भौतिक समृद्धि का स्वप्न देखना भी व्यर्थ है. इसलिए हमें हमारी सांस्कृतिक स्वतंत्रता चाहिए…अपनी भौतिक समृद्धि हम स्वयं देखते देखते अर्जित कर लेंगे.

Related Articles

Leave a Comment