हम भारतीय हीनता-बोध से कितने घिरे हैं। कांग्रेस को हम पश्चिमी नकल में ग्रैंड ओल्ड पार्टी कहते हैं। हालांकि, इंदिरा गांधी के समय ही कांग्रेस के दो-फाड़ हो गए थे और कांग्रेस (आई) बची थी। उसके बाद राहुल बाबा के समय तक तो कांग्रेस वह लेशमात्र भी नहीं बची, जो कभी होती थी। एकमात्र समानता अगर कोई रही तो ये कि एक अंग्रेज ने इसकी स्थापना की और एक इटालैयिन उसकी अध्यक्षा थी।
अस्तु, इंडिया गेट का कथित स्मारक उसी तरह मुझे सालता था, जैसे नालंदा के पास बख्तियारपुर, जैसे कर्णावती की जगह अहमदाबाद, जैसे मुसलमान-ईसाई अत्याचारों के सैंकड़ो प्रतीक।
गुलामी के इस जीवंत प्रतीक को वैसे तो ढाह भी दिया जाए, तो मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी, लेकिन यहां की अमर ज्योति को वॉर मेमोरियल ले जाकर एक कोर्स-करेक्शन तो किया ही गया। राहुल बाबा तो खैर इस पर अगर गरिया रहे हैं, तो ठीक ही है, लेकिन लालू परिवारी की चाकरी करनेवाला मनोझ झा तो सुना है कि कहीं परफेसर भी रहे थे। वह भी फेचकुर फेंक कर इतिहास पढ़ा रहे थे। मने, गुलामी शायद हमारी जीन में भी घुस चुकी है…..।
मोदीजीवा इसीलिए इस देश के लाखों लोगों के लभ हैं। आप गाली देते रहो, जनता उन्हें चुनाव दर चुनाव चुनती रहेगी। इसलिए नहीं कि वह कोई आसमानी व्यक्तित्व हैं, इसलिए कि उस आदमी को जनता की नब्ज पकड़ में आ गयी है। वह जानता है कि देश का बहुसंख्यक मानस क्या चाहता है, उसकी इच्छा क्या है, उसकी महत्वाकांक्षा क्या है…