हम भाषा के तीन रूप पढ़ते हैं।
सांकेतिक
मौखिक
लिखित
मुझे याद है कि मूक बधिर न्यूज़ में समाचार वाचिका धरती पुत्र मुलायम सिंह जी को सिर्फ तीन संकेत में व्यक्त करतीं थीं। पहले संकेत में हाथ से मुलायम वस्तु की अनुभूति… दूसरे में सिर पर सींग का संकेत और तीसरा…गाय/भैंस दूहने का।
इसी प्रकार लोग नाक के नथ पर उंगली लगाकर महिला। मूंछ पर हाथ फेरकर पुरुष, दाड़ी पर हाथ नीचे करके मुसलमान तथा हाथ से ताली बजाकर हिजड़े को संकेत के माध्यम व्यक्त करते हैं।
आपको विदित है कि बहुतायत एवं परिस्थितिवश हमें मौखिक और सांकेतिक मिलाकर बोलना पड़ता है।
जैसे आप फलाने की तरफ इशारा करके ‘कमीना/कमीनी, हरामी’ आदि कह सकते हैं
अब बात होती है लिखित की और उसमें भी प्रतीकात्मक लिखित भाषा की-
जब हम लेखन में मूल बात को किसी प्रतीक के माध्यम से व्यक्त करें और पढ़ने वाला आसानी से समझ जाये तब उस प्रतीक को सार्थक समझा जाता है… जैसे टोंटी, पप्पू,फेंकू, आयेंगे बस….आदि।
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अब महत्वपूर्ण एवं समसामयिक बात-
चुनाव के दौरान कोई आपसे पूछे कि “आप किस पार्टी के साथ हैं??”
आप बस इतना कह दें- ” मैं ‘विकास और कानून व्यवस्था’ के साथ हूं।”
पता नहीं कैसे लोग समझ जाते हैं कि अगला फ्लावर है और खुद फायर होकर साइकिल से उछल और नलके से उखड़ जाते हैं।