ख़ैर, अख़बार चाहे जैसा था संपादक अच्छे थे और ख़ासे कड़ियल। किसी के आगे झुकते नहीं थे। प्रबंधन के आगे भी नहीं। उस समय संपादक नाम की संस्था थी भी। उस ने बहुतेरे संपादक देखे और भोगे थे पर ऐसा संपादक तो भूतो न भविष्यति। राजनीति, साहित्य, खेल, साइंस, कामर्स, ज्योतिष, सिनेमा यहां तक कि खगोलशास्त्र पर भी वह हमेशा अपडेट रहते थे। वह सुनता था कि घर में तो वह हमेशा पढ़ते ही रहते थे दफ्तर में भी दिन के समय वह पढ़ते ही मिलते थे। किसी भी विषय पर वह पूरी तैयारी के साथ बोलते या लिखते थे। ख़बर चाहे किसी अल्लाह मियां के खि़लाफ़ भी क्यों न हो वह रोकते नहीं थे। प्रबंधन और मालिकान के लाख दख़ल के बावजूद। यह शायद इसी नीति का नतीजा था कि एक बार पानी सिर से ऊपर निकल गया।
और अख़बार मालिकान की एक चीनी मिल के खि़लाफ़ भी विधान परिषद के हवाले से एक ख़बर पहले पेज पर छप गई। संपादक उस दिन छुट्टी पर थे। रिपोर्टर नया था। उसे जानकारी ही नहीं थी कि उक्त चीनी मिल इसी व्यवसायी की है और डेस्क ने भी ख़बर देर रात पास कर दी। बावजूद इस सब के संपादक ने उस रिपोर्टर को नौकरी से निकाला नहीं। उसे रिपोर्टिंग से हटा कर डेस्क पर कर दिया। मालिकान को समझा दिया कि रिपोर्टर को निकालने से ख़बर और उछलेगी फिर आप की बदनामी ज़्यादा होगी। मालिकान मान गए थे। रिपोर्टर की आंख में भी पानी था। उस ने भी जल्दी ही दिल्ली के एक अख़बार में नौकरी ढूंढ कर इस्तीफ़ा दे दिया। इस अख़बार के तब का प्रबंधन और मालिकान भी अख़बार वालों के साथ सम्मान से पेश आते थे।