Home लेखक और लेखराजीव मिश्रा हिंदू_इकोनॉमी भाग 2
हलाल एक फ्लैग वेविंग है कि यह ब्रांड या प्रोडक्ट अपनी कौम का है, अपनी इकोनॉमी को कंट्रीब्यूट करता है. उसी की तर्ज पर आप एक “सात्विक” लेबल बना सकते हैं. पर इसे एक फ्लैग वेविंग से अधिक होना होगा. “सात्विक” लेबल वाले प्रोडक्ट्स खरीदने से ग्राहक को क्या फायदा होगा, और अपने प्रोडक्ट्स पर यह लेबल लगाने को बिजनेसमैन क्यों तत्पर होंगे? उससे क्या वैल्यू एडिशन होगा? इसके लिए आपको इस लेबल को एक अर्थ देना होगा…
“सात्विक” का अर्थ बिजनेस पार्लेंस में क्या हो सकता है? वह बिजनेस जो सत्य आधारित हो… यानी दूध सात्विक हो तो उसमें पानी ना मिलाया हो, घी सात्विक हो तो सिर्फ घी हो. अगर सरसों के तेल में पाम ऑयल मिलाई गई हो तो वह पैकेट पर साफ साफ लिखा हो.
अगर बढ़ई सात्विक हो तो वह टीक की लकड़ी बोलकर आम की लकड़ी ना घुसा दे. अगर कॉस्ट कम करने के लिए घुसा रहा हो तो बता दे. अगर डॉक्टर सात्विक हो तो वह जो भी टेस्ट या दवा लिखे, आपके इंटरेस्ट में लिखे ना कि अपनी कमीशन के लिए. अगर एक सर्विस या सामान की डिलीवरी की एक डेट दी जाए तो उसका पालन किया जाए. जो वचन दिया जाए उसका पालन किया जाए. इस आधार पर एक प्रोडक्ट सात्विक हो सकता है, एक बिजनेस भी. सात्विक बीयर भी हो सकती है और सात्विक चिकेन भी.
यह सत्यनिष्ठा अगर इस लेबल की पहचान बने तो यह ग्राहक का कॉन्फिडेंस जीतेगी, और अगर यह लेबल किसी प्रोडक्ट को मिले तो वह ब्रांड बन जायेगा. ऐसे में व्यापारी भी सात्विक के लेबल से जुड़ेंगे और ग्राहक भी इस लेबल को पसंद करेगा. तो यह लेबल सिर्फ एक फ्लैग वेंविंग नहीं रह जायेगा, बल्कि लोग इससे अपने अपने लाभ के लिए जुड़ेंगे और इसमें ही सबका लाभ होगा. फिर हमें किसी को अपने हितों को भूलकर हिंदू हितों की बात करने को नहीं कहना होगा, बल्कि हिंदू हितों से व्यक्तिगत हित एलाइन हो जायेंगे.
प्रश्न है, क्या यह करना संभव होगा? क्या धर्म और अर्थ एक सीध में खड़े होंगे?

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