हैदराबाद मामले पर जनाब अशोक जोहरी साहब के सवालों के जवाब देने का प्रयास किया है…
सवाल:
फ़याज भाई हैदराबाद में दलित नागराजू की मुस्लिम (सैयद, लड़की का परिवार )के द्वारा हत्या के संदर्भ में आपके अनुसार वास्तव में इस हत्या के पीछे सवर्ण मुस्लिम (सैयद )और हिन्दू दलित के बीच का संघर्ष है। आप लोगों का क्या विचार है कि यदि नागराजू ब्राह्मण जाति का होता और लड़की पसमंदा मुस्लिम (निम्न जाति ) की होती तो क्या मुस्लिम समाज इस हिन्दू लड़के और मुस्लिम लड़की के विवाह को स्वीकार कर लेता।
जवाब:
आम तौर से इस्लामी कानून के अनुसार अशराफ मुसलमान का अपने सहधर्मी तथाकथित नीच जाति के मुसलमान(देशज पसमांदा) से शादी विवाह नहीं हो सकता है और ऐसा समाज में होता भी नहीं है एक दो अपवाद छोड़ कर।
इस्लामी कानून के अनुसार एक मुसलमान(अशराफ या पसमांदा) का विवाह एक अमुसलमान (इसमें यहूदी और ईसाई नही आते, लेकिन कुछ अशराफ उलेमा इनसे भी विवाह को वर्जित मानते हैं) से नहीं हो सकता है।
लेकिन अशराफ इस मामले में इस्लामी कानून का उलंघन करता है क्योंकि उसे अपने सत्ता एवं वर्चस्व को मेंटेन रखने में सवर्ण हिन्दू से विवाह करना उचित जान पड़ता है। इसलिए वो खुलेआम अरेंज मैरिज और लव मैरिज दोनो बड़े आसानी से करता आ रहा है। अशराफ के शासन काल से लेकर भाजपा के सभी बड़े सैय्यद नेताओ के वैवाहिक रिश्ते तक उदाहरण के रूप में देख सकते हैं।
नोट:- अशराफ बड़ा चतुर प्राणी है वो अपने स्वार्थ के अनुसार इस्लाम की व्याख्या करता है।
जब इनको अपना सह धर्मी दलित पसंद नहीं है तो फिर ये अधर्मी दलित को कैसे पसंद करेंगे।
वो तो मौजूदा दौर में इन्हे अपने सत्ता वर्चस्व को मेंटेन रखने के लिए हिन्दू दलितों की आवश्यकता है इसलिए जय भीम जय मीम का नारा देते हैं।
याद रखे ये अपने सत्ता एवं वर्चस्व के अनुसार निर्णय लेते आए हैं।
बहुत संभव है कि अगर लड़का हिन्दू दलित न होकर हिन्दू सवर्ण होता तो शायद बात यहां तक आती ही नहीं।
सवाल:
मेरा प्रश्न यह नहीं है. बिंदु यह है कि भारत में पिछले दिनों हुई मुस्लिम लड़की और हिन्दू लड़के की शादी एवं उनकी जाति संरचना के केसेज का आप अध्ययन करें, इस पर एक शोध किया जाना चाहिए. क्या एक ब्राह्मण लड़के और पसमंदा मुस्लिम लड़की की शादी को मुस्लिम समाज आसानी से स्वीकार कर लेगा.
जवाब:
बिल्कुल भी नहीं,
यहां अशराफ द्वारा बताया गया इस्लामी कानून का पसमांदा कड़ाई से पालन करते हुए नही स्वीकार करेगा।
याद रखे मालिक के आदेश को गुलाम बड़ी नैतिकता एवं निष्ठा से पूरा करता है।
लड़की देने का मामले में दिक्कत है क्योंकि कूफु के सिद्धांत के अनुसार बराबरी लड़की की तरफ से देखा जाता है मतलब अगर लड़की उच्च वर्ग की है तो उसका विवाह निम्न वर्ग के लड़के से नही होगा क्योंकि लड़की किसी निम्न वर्ग के लड़के का फर्श (बिस्तर) बनना नही पसंद करेगी।
यहां धर्म के अनुसार इस्लाम उच्च माना जायेगा इसलिए संभव नहीं
नोट: फर्श और फर्राश वाली शब्दावली इस्लामी फिक्ह (विधि) का है जो लड़का और लड़की के लिए प्रयोग होता है।
सवाल:
फिर आप हिन्दुओं को क्या सलाह देंगे
जवाब:
अशराफवाद/सैय्यदवाद के विरुद्ध मजबूती से खड़े होने का, वर्ना ये हिन्दू मुस्लिम करके हमारी(हिन्दू – पसमांदा) मातृ भूमि को संकट में डाले रहेंगे और इसके बदले अपना सत्ता एवं वर्चस्व मेंटेन रखते हुए हमारे ही देश में हमें गुलाम बनाए रखेंगे।