जय महाकाल

Kumar Satish

by Praarabdh Desk
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मेरा पुश्तैनी घर… गंगा नदी के किनारे है जहाँ की मिट्टी काफी चिकनी होती है लेकिन उसमें बालू मिक्स रहते हैं.
इसीलिए, गैंगा के किनारे सांपों की समस्या नहीं होती है.
शायद ऐसा इसीलिए होता होगा क्योंकि बालू वाले मिट्टी में सांपों को रहने में दिक्कत होती होगी…
या फिर, मिट्टी में बालू मिले होने के कारण सांपों को बिल ढह जाता होगा.
लेकिन, मेरी ननिहाल गैंगा नदी से दूर था…
और, पुराने स्टाइल का था.
मतलब कि…. खूब बड़ा घर, बीच में आंगन…
और, घर के आगे पीछे लॉन (हमलोग उसे बाड़ी कहते थे)
घर के आगे वाले में लॉन में तो खैर फूल, नींबू, केले आदि के पौधे थे..
लेकिन, घर के पीछे वाले लॉन में ताड़, आम, अमरूद, जामुन, बेल आदि के पेड़ थे.
जिस कारण मेरे ननिहाल में सांप की बहुत समस्या थी.
शायद.. ताड़, अमरूद और जामुन आदि के पेड़ सांपों को आकर्षित करते होंगे.
कारण जो भी हो…. लेकिन, ननिहाल में तो सांप और बिच्छु का इतना आतंक था कि…
रात में बिना टॉर्च और चप्पल के बाथरूम तक जाना मना था.
चूँकि…. वहाँ सांपों और बिच्छुओं की समस्या बहुत थी तो मेरे ननिहाल के लोग सांप और बिच्छु मारने में एक्सपर्ट थे.
हालांकि, सांप और बिच्छु मारने का काम घर और खेत में काम करने वाले नौकरों का था…
फिर भी, मेरे दोनों मामा भी सांप मारने में सिद्धहस्त थे.
इधर मेरे पापा सरकारी अफसर थे तो हमलोग हमेशा बाहर ही रहते थे तथा घर अथवा ननिहाल कम ही जाते थे.
लेकिन, 10th की परीक्षा के बाद मैं महीने-दो महीने के ननिहाल गया था.
तो, वहाँ रहने के दौरान मैंने गौर किया था कि वहाँ बांस के दो-चार डंडे स्थायी तौर पर रखे रहते थे… और, जैसे ही किसी को सांप दिखा तो वो लक्ष्मण मामा (जो घर में काम करते थे) को बताते थे…
और, लक्ष्मण मामा मुश्किल से 5-10 मिनट में सांप को मार कर समस्या का निपटारा कर देते थे.
पता नहीं क्यों… मुझे सांप मारते देखने में बहुत मजा आता था..
और, जब भी लक्ष्मण मामा सांप मारते थे तो उनके लाख भगाने के बाद भी मैं वहीं पर खड़ा होकर उन्हें सांप मारते देखते रहता था.
इसमें मैंने गौर किया कि…. लक्ष्मण मामा सांप को मारते समय पहली लाठी फुफकारते हुए सांप के मुँह पर नहीं बल्कि उसके शरीर पर मारते थे…
और, सांप के मुँह पर लाठी सबसे अंत में मारते थे..
जो कि मेरे सिद्धांत के हिसाब से सांप मारने का गलत तरीका था.
बाद में पूछने पर लक्ष्मण मामा ने बताया कि….
अगर हम शहरियों के हिसाब से सांप मारा गया तो आधे सांप भाग जाएंगे और आधे पलट कर काट लेंगे.
क्योंकि, सांप भले ही कितना भी फुफकारता रहे…
लेकिन, उसपर पहली लाठी मुँह पर नहीं बल्कि उसके कमर पर मारी जाती है.
जिससे सांप की कमर टूट जाती है… और, वो तेजी से भागने अथवा पलट के काटने में असमर्थ हो जाता है.
उसके बाद उसे दे दनादन लाठी से मार दिया जाता है.
और, मारने के बाद उसके मुँह को चूर कर कहीं जमीन में गाड़ दिया जाता है.
मेरे ये पूछने पर कि क्या सांप सच में ही खुद को मारने वाले आदमी का फोटो खींच लेता है और बाद में उस फोटो को देखकर उस सांप के दोस्त-मोहिम मारने वाले से बदला लेते हैं…
लक्ष्मण मामा जोर से हंसे और बताया कि…
अरे, फोटो-वोटो क्या खींचते होंगे… वो तो हमलोग मुँह इसीलिए चूर देते ताकि सांप का विषदंत थोखे से भी किसी को न चुभ जाए…
क्योंकि, मरने के बाद भी विषदंत और जहर तो मौजूद रहते ही हैं.
थ्योरी समझ जाने के बाद मेरे मन से भी सांप का भय निकल गया…
भय का तो ऐसा हो गया कि गेंहुवन एवं करैत सांप को तो खैर लाठी से मारता था लेकिन हरहरया सांप (उसका बॉयोलोजिकल नाम नहीं मालूम है लेकिन उसके शरीर पर रंग बिरंगी धारियां होती थी तथा वो मैक्सिमम 2 फीट तक का होता था) को तो यूँ ही पूँछ से पकड़ कर फेंक देता था.
खैर… मुझे लगता है कि…. मोई और शाह ने भी बचपन में खूब सांप मारे हैं…
तभी उन्हें सांप मारने का ये तरीका मालूम है कि पहली लाठी मुँह पर नहीं बल्कि कमर पर मारो…
क्योंकि, कल से सोशल मीडिया पर एक अधकचरा ज्ञान तैर रहा है कि…. सांप बचकर भाग जाएगा या पलट कर काट लेगा…
अर्थात, PFI नाम बदल कर फिर से आ जाएगा अथवा प्लान B पर काम शुरू कर देगा.
तो, ये सब शहरिया तरीके से सांप मारने पर होता है कि सांप के मुँह पर लाठी मारते ही सांप फुफकार के डरा दे….
और, सर्र से भाग जाए अथवा पलट के काट ले.
देशी तरीके से मारने के दौरान सबसे पहली लाठी उसके कमर पर मार कर उसकी कमर तोड़ दी जाती है जिस कारण न तो वो भाग पाता है और न ही वो पलट के काट पाता है.
पहले की खान्ग्रेसी सरकार… शहरिया सरकार थी इसीलिए वो शहरिया तरीके से सांप मारती थी…
अर्थात, सांप को फुफकारते देखे तो दन से लाठी उसके मुँह (फन) पर मार दिए.
परिणामतः…. सांप या तो पलट कर काट लेता था या भाग जाता था.
उदाहरण के तौर पर….
इंदिरा गांडी ने पंजाब में सांप मारने की कोशिश की थी और सीधे उसके मुँह पर वार कर दिया था जिस कारण सांप ने पलट कर काट लिया.
उसी तरह….. राजीव गांडी ने भी श्रीलंका में शहरिया तरीके से सांप मारने की कोशिश की और परिणामतः खुद को सांप से डसवा बैठे.
जबकि… उल्फा , SIMI आदि के मामले में सांप भाग गए क्योंकि उस मामले में भी शहरिया तरीके से सांप मारने की कोशिश की गई अर्थात सीधे उसके मुँह पर लाठी मार दी गई थी.
मतलब कि…. सिर्फ उसके संगठन को बैन कर दिया गया.
इसीलिए…. बैन की लाठी पड़ते ही सांप सरसराते हुए भाग गया और फिर PFI के रूप में वापस आ गया.
जबकि…. इस बार मोई और शाह ने सांप को मारने के दौरान पहली लाठी उसके कमर पर मारी.
कमर अर्थात… रीढ़ की हड्डी अथवा Back bone.
और, यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि किसी भी संगठन को चलाने के लिए दो चीज प्रमुख होते हैं… नेतृत्व और पैसा (Financial support)
इन दोनों के के बिना किसी भी संगठन का चल पाना संभव नहीं है.
तो, इस मामले में क्या हुआ है कि…. चूंकि उतने समय तक PFI एक NGO के तौर पर रजिस्टर्ड था इसीलिए उसके सारे ITR , उसके अन्य डॉक्यूमेंट में उसके सारे कर्ता धर्ता की डिटेल जानकारी… सरकार को मिलती चली गई.
साथ ही…. सरकार को ये जानकारी भी मिलती चली गई कि इस संगठन को कौन और कितना पैसा दे रहा है.
साथ ही…. हर काम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने एवं सरकार को विरोध पत्र देने के कारण सरकार के पास इसके हर जिले के पदाधिकारी और कार्यकर्ता का डिटेल मौजूद थे… जो इन्होंने खुद ही सरकार को दे रखे हैं.
इसीलिए, सरकार ने उन्हीं सब जानकारियों को संकलित कर कारवाई की है.
उसके सारे पदाधिकारी एवं महत्वपूर्ण कार्यकर्ता धर लिए हैं…
और, सब पर UAPA के तहत मामला दर्ज किया गया है.
जिन्हें जानकारी नहीं है उन्हें मैं जानकारी दे दूं कि 2019 में पारित इस कानून के तहत …. संगठन के साथ साथ व्यक्ति पर भी आतंकवादी होने का ठप्पा लगाकर उसे बैन कर दिया जाता है.
इस कानून को संसद में पास करवाते समय गृह मंत्री अमित शाह ने चर्चा के दौरान कहा था कि…. “आतंकी गतिविधि में कोई संगठन नहीं बल्कि संगठन को चलाने वाले व्यक्ति लिप्त होते हैं.
ऐसे में सिर्फ संगठन पर प्रतिबंध लगाने से कुछ नहीं होगा क्योंकि ऐसा करने पर वे अपने संगठन का कोई नया नाम लेकर आ जाएंगे.
इसीलिए, अब हम संगठन के साथ उससे संबंधित व्यक्ति को प्रतिबंधित घोषित करेंगे ताकि फिर वो कोई नया संगठन नहीं बना सके.”
मतलब कि… अब इस PFI के लोग कोई नया संगठन नहीं बना सकते..
और, न ही कहीं से आर्थिक मदद ले सकते हैं..
क्योंकि, अब हर स्रोत सरकार के नजर में आ चुका है.
अर्थात… पहले उसके कमर पर लाठी मार कर उसकी रीढ़ की हड्डी को तोड़ा गया इसके उपरांत ही उसके मुँह को चूर के जमीन में गाड़ा गया है.
इसीलिए, अब सांप के दुबारा से पलट के काट लेने अथवा भाग जाने की संभावना नगण्य है.
परंतु…. फिर भी, कुछेक बड़े बड़े लोग इस बारे इसीलिए आशंकित हैं क्योंकि उन्होंने आजतक शहरिया तरीके से ही सांप मारते देख रखा है…
और, इस तरीके में उन्होंने अनेकों सांपों को पलट के काटते एवं भागते भी देखा है.
इसीलिए… वे भी अपनी जानकारी और अनुभव के हिसाब से सही ही बता रहे हैं.
परंतु… सच्चाई ये है कि… इस बार सांप को खांटी देहाती तरीके से मारा गया है इसीलिए हर कोई इस बारे में निश्चिन्त रह सकता है कि…. अब न तो सांप पलट के काट पायेगा और न ही किसी नए अवतार में आ पायेगा.
जय महाकाल…!!!

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