Home विषयजाति धर्मईश्वर भक्ति क्या हुआ श्रीकृष्ण की बहन का जिन्हे कंस ने मारने का प्रयास किया था

क्या हुआ श्रीकृष्ण की बहन का जिन्हे कंस ने मारने का प्रयास किया था

Ranjana Singh

by रंजना सिंह
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विगत कई वर्षों से घूम घूम कर कविता या आलेख रूप में सोशल मीडिया द्वारा हमतक पहुँच रहा हैं,जिसका आशय होता है कि समाज/सनातनी कितने निष्ठुर हैं कि एक बालक को बचाने के लिए एक निर्दोष बालिका की बलि दे देते हैं और उससे भी बड़ी बात कि उस बलिदान को याद भी नहीं रखते।विशेष रूप से जन्माष्टमी के पूर्व इस प्रकार के सामग्रियों की प्राप्ति लगभग सभी को होती ही है,नहीं क्या?
हमारा दुर्भाग्य कि हमनें अपनी मूल भाषा(संस्कृत) खो दी है और पौराणिक ग्रंथों को यदि रखा भी है तो पूजाघर के ताखा पर कपड़ों में लपेटकर सरिया के रख दिया है जिसे धूप अगरबत्ती दिखा कर संतुष्ट हो लेते हैं कि हमनें धर्म कर्म निभा लिया।यूँ भी बरसों बरस के अभ्यास ने हमें हीनग्रंथि युक्त ऐसा बना दिया है कि उँगली देखते ही कुम्हड़ बतिया सरीखे हमारा आत्मविश्वास मुरझा जाता है और कुम्हला कर हम सिर नीचे कर के सोचने लगते हैं कि “ठिके तो कह रहे हैं, कृष्ण को बचाने के फेर में मैया यशोदा की नवजात बच्ची की बलि ले ली गयी।कृष्ण जन्मोत्सव तो हम स्वार्थी लोग मना लेते हैं,पर उस बालिका को भूल जाते हैं।हिसाब से उसदिन उक्त बालिका का बलिदान दिवस मनाना चाहिए”….
कितनी सरलता से हम उनके नैरेटिव में फँसते हैं,,भावुक शब्दजाल में उलझकर स्वयं भी भ्रमित होते हैं और सशक्त प्रतिकार में सर्वथा अक्षम रह उन्हें नीचा दिखाने का सुअवसर देते हैं।
हाँ, यह सत्य है कि भागवत महापुराण में विस्तार में उल्लिखित नहीं कि उस बालिका का आगे क्या हुआ।कंस ने जब उस बालिका के वध हेतु उसे भूमि पर पटकना चाहा तो वह बालिका उसके हाथ से छूटकर आकाश में महामाया रूप में प्रकट हुईं और कंस से कहा कि उसका काल(कृष्ण) जन्म ले चुका है,वह सुरक्षित है,समय आने पर वह उसका अन्त अवश्य ही करेगा,,,यह कहकर वे अंतर्धान हो जाती हैं।
कई लोग यह मानने को प्रस्तुत नहीं कि ऐसी अलौकिकता सम्भव हैं।उनके हिसाब से मनुष्य से उतपन्न वह शरीरधारी बालिका ऐसे कैसे महादेवी रूप में परिवर्तित हो सकती है।खैर, हर चीज को स्थूल रूप में प्रमाणसहित देखने मानने में ही सक्षम समर्थ बुद्धिमानों का कुछ किया नहीं जा सकता।उन्हें नहीं समझाया जा सकता कि राम कृष्ण दुर्गा आदि अलौकिक हैं।जब आवश्यक हुआ ये देह धर कर लीलाएँ करते हैं और उसके उपरान्त अव्यक्त रह सृष्टि के कण कण में वास करते हैं।
श्रीदुर्गाशप्तशती में प्रसंग है,राजा सुरथ महादेवी के विषय में पूछते हैं-
राजोवाच॥५९॥
भगवन् का हि सा देवी महामायेति यां भवान्॥६०॥
ब्रवीति कथमुत्पन्ना सा कर्मास्याश्च* किं द्विज।
यत्प्रभावा* च सा देवी यत्स्वरूपा यदुद्भवा॥६१॥
तत्सर्वं श्रोतुमिच्छामि त्वत्तो ब्रह्मविदां वर॥६२॥
राजा ने पूछा- ॥५९॥ भगवन्! जिन्हें आप महामाया कहते हैं, वे देवी कौन हैं ? ब्रह्मन्! उनका आविर्भाव कैसे हुआ ? तथा उनके चरित्र कौन-कौन हैं ? ब्रह्मवेत्ताओंमें श्रेष्ठ महर्षे! उन देवीका जैसा प्रभाव हो, जैसा स्वरूप हो और जिस प्रकार प्रादुर्भाव हुआ हो, वह सब मैं आपके मुखसे सुनना चाहता हूँ॥६०- ६२॥
ऋषिरुवाच॥६३॥
नित्यैव सा जगन्मूर्तिस्तया सर्वमिदं ततम्॥६४॥
ऋषि बोले- ॥६३॥ राजन्! वास्तव में तो वे देवी नित्यस्वरूपा ही हैं। सम्पूर्ण जगत् उन्हींका रूप है तथा उन्होंने समस्त विश्वको व्याप्त कर रखा है,
तथापि तत्समुत्पत्तिर्बहुधा श्रूयतां मम।
देवानां कार्यसिद्ध्यर्थमाविर्भवति सा यदा॥६५॥
तथापि उनका प्राकट्य अनेक प्रकारसे होता है । वह मुझसे सुनो ।यद्यपि वे नित्य और अजन्मा हैं, तथापि जब देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिये प्रकट होती हैं ,
उत्पन्नेति तदा लोके सा नित्याप्यभिधीयते।
तब वे लोक में उतपन्न/अवस्थित हुई कही जाती हैं।
श्रीराम और श्रीकृष्ण को समाज को “मनुष्य का सम्पूर्ण जीवन कैसा हो”..यह दिखाना था, तो उन्होंने जन्म से प्रयाण तक के सभी चरित्र दिखाए, किन्तु महामाया का प्राकट्य केवल उन अवसरों के लिए होता है जब उन्हें कोई विशेष कार्य सम्पन्न कर पीड़ित जग को त्राण देना होता है।दुर्गा काली अम्बिका महामाया शाकम्भरी भीमादेवी वनदुर्गा आदि आदि रूपों में जब उन्होंने स्वयं को व्यक्त किया, रक्षिका रूप में असुरों का वध,सँसार का कष्ट से उद्धार किया और पुनः अव्यक्त हो गयीं।
देव शक्तियाँ यूँ ही किसी के गर्भ में नहीं आ जातीं।चाहे राम कृष्ण की माताएँ हों अथवा महामाया को गर्भ में धारण करने वाली मैया यशोदा,,पूर्व जन्मों के सुदीर्घ तप के कारण ही इन्होंने यह सौभाग्य पाया कि ये विभूतियाँ इनके गर्भ में आएँ।माता यशोदा का भी यह विराट तपफल ही था कि उन्होंने साक्षात महामाया को गर्भ में धारण कर जन्म दिया और प्रभु विष्णु के कृष्णरूप का पालन पोषण।
जैसे महामाया ने योगनिद्रा के वश में गए विष्णु को जगाकर मधु कैटभ से ब्रह्मा जी की रक्षा की थी,, वैसे ही बालकृष्ण की रक्षा हेतु माता यशोदा के गर्भ से जन्म लेकर माता देवकी तक कारागार में भी पहुँची।
और सत्य में यह यह घटित हुआ कि जब कंस ने उस कन्या के वध हेतु प्रयास किया तो वे मानव(बालरूप) रूप को त्याग कर पुनः अव्यक्त हो गयीं।
महाअसुर शुम्भ निःशुम्भ के वध उपरान्त माता स्वयं ही अपने भविष्य के प्राकट्य के विषय में कहती हैं कि-
देव्युवाच॥४०॥
वैवस्वतेऽन्तरे प्राप्ते अष्टाविंशतिमे युगे।
शुम्भो निशुम्भश्चैावान्यावुत्पत्स्येते महासुरौ॥४१॥
नन्दगोपगृहे* जाता यशोदागर्भसम्भवा।
ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी॥४२॥
अर्थात, वैवस्वत मन्वंतर के अट्ठाईसवें युग में एक और दुराचारी अत्याचारी असुरद्वय शुम्भ निःशुम्भ का जन्म होगा,उस समय नन्द गोप के घर में देवी यशोदा के गर्भ से मैं जन्म लूँगी और उन असुरों के संहार के उपरान्त विंध्याचल में जाकर निवास करूँगी।
तो कथा यह बनती है कि जन्म लेने के उपरांत कंस के कारागार में उपस्थित हो पहले वे कृष्ण की रक्षा का निमित्त बनती हैं और उसके बाद माता विंध्यवासिनी/वनदुर्गा रूप में विंध्याचल में निवास करती शुम्भ निःशुम्भ का अन्त करती हैं।
अन्य सभी शक्तिपीठों में माता सती के कोई न कोई अंग गिरे हैं,जिन्हें शक्तिकेन्द्र मानते उनकी पूजा होती है,किन्तु विंध्याचल में माता के पूरे शरीर/साकार रूप की पूजा होती है।
इससे सम्बंधित कुछ जानकारी तो आप विकिपीडिया पर भी पा सकते हैं।
तो मेरा आग्रह है कि आगे यदि कोई आपको बालिका बलि देने की बात कहकर लज्जित करने का प्रयास करे तो यथोचित उत्तर देकर उनका भ्रमशमन करने का प्रयास करें।

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