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इंग्लैंड का इस समय बुरा हाल

Nitin Tripathi

by Nitin Tripathi
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हाल ही में प्रधान मंत्री की रेस में ऋषि सुनाक को हराने के लिए लिज़ ट्रस ने वह सभी वायदे किए जैसे भारत में केजरीवाल टाइप नेता करते हैं. हम जीते तो टैक्स माफ़ कर देंगे, क़र्ज़ा लेकर इकॉनमी ठीक कर देंगे. ऋषि सुनाक चूँकि समझदार वित्त मंत्री रहे हैं तो उन्होंने tv डिबेट में एक एक बिंदु में स्पष्ट बताया कि यदि ऐसा किया गया तो पाउंड तबाह हो जाएगा, घनघोर मंदी आएगी और महंगाई चरम पर पहुँच जाएगी.
ज़ाहिर सी बात है ऋषि का खूब मज़ाक़ उड़ाया गया – विशेष कर लोअर मिडिल क्लास जनता के द्वारा. पेंशन भोगी वर्ग विशेष रूप से ऋषि के ख़िलाफ़ रहा. लिज़ प्रधान मंत्री बनी. टैक्स माफ़ हुआ.
और परिणाम इग्ज़ैक्ट वैसा हुआ जैसा लाइन बाई लाइन ऋषि ने महीनों पहले tv में बताया था. पाउंड पचास वर्ष के न्यून तम स्तर पर है. महंगाई दस प्रतिशत से ज़्यादा है. लोन की दरें ऐतिहासिक रूप से बढ़ गई हैं. इस सबसे सबसे ज़्यादा परेशान और तबाह वही पेंशन क्लास वर्ग हुआ जो पहले इन्हीं सबकी माँग कर रहा था. अब ट्विटर पर कैम्पेन चला रहे हैं bring back sunak. पर अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत.
ध्यान देने वाली बात यह है कि यह इंग्लैंड जैसे देश का हाल है. विकसित देशों की इकॉनमी इतनी सॉलिड होती है कि वहाँ उतार चढ़ाव विशेष नहीं आते. सन दो हज़ार में महीने का खर्च अगर हज़ार पाउंड होता था तो 2015 में 1100 होगा बस ऐसे ही. स्टेबल इकॉनमी होती है इन देशों की. और कल्पना करिए कि इन देशों का ऐसा बुरा हाल हो रखा है.
पोस्ट कोविड कितने ही देश फेल होते दिख रहे हैं अर्थ व्यवस्था में. लंका जैसों की तो बात अलग थी अब इंग्लैंड जैसे देशों का भी नम्बर आ गया है.
भारत की प्रसंशा करनी होगी कि इमर्जिंग इकॉनमी है, नब्बे प्रतिशत भारत का इकॉनमी वृद्धि में विशेष कॉंट्रिब्यूशन नहीं होता, न उद्योग हैं न इंफ़्रा स्ट्रक्चर. एक बड़ी जनता दिल दिमाग़ से सोसलिस्ट है जो उम्मीद करती है सरकारी मुफ़्त सुविधाओं की और उसे मिल भी रही हैं.
इस सबके बावजूद अन्य देशों को देखते हुवे भारत ने जिस तरह से इकॉनमी सम्भाल रखी है प्रसंशनीय है.

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