‘आदिपुरूष’ की झलक मैंने भी कल देखी और भले ही कुछ बातों से मेरी असहमति है, लेकिन मुझे रावण को नए रूप में देखना अच्छा लगा।
मेरी दृष्टि यह थी कि निर्देशक मुझे रावण का चेहरा नहीं, बल्कि उसके पीछे छिपी विकृति और बदनीयत दिखा रहा है। वह रावण का चेहरा नहीं, बल्कि उसका कुत्सित मन दिखाई दे रहा है। सीता हरण करने के लिए भी रावण ऋषि का वेश बनाकर आया था लेकिन उसके मन में वही विकृति और घृणास्पद भावना थी, जो आदिपुरुष के रावण में निर्देशक ने खुलकर दिखाई है।
लोगों को यदि उस रावण में किसी और कालखंड का कोई चेहरा भी दिख रहा हो, तो यह भी बहुत अच्छा है। जो रावण की प्रवृत्ति थी, वही शैतानी प्रवृत्ति और भी कई आक्रांताओं की थी, अन्यथा उत्तर भारत में न तो घूंघट प्रथा होती, न बाल विवाह होते, न शाम को विवाह किए जाते, न भ्रूण हत्याएं होती और न जौहर हुए होते। रावण वाली आसुरी प्रवृत्तियां हर कालखंड में रही हैं और आज भी अनेक रूपों में रोज दिखाई दे रही हैं।
जिन्हें रावण की विद्वत्ता से बड़ा प्रेम है, उन्हें अल कायदा, तालिबान और आईसिस जैसे संगठनों को देखना चाहिए। वहां भी रावण जैसे कई विद्वान आतंकी मौजूद रहे हैं।
जिन्हें यह भ्रम है कि सीता हरण के अलावा रावण का पूरा जीवन निष्कलंक था और वह बड़ा विद्वान, पराक्रमी, न्यायप्रिय और महान व्यक्ति था, वे कृपया रामायण का ठीक से अध्ययन करें।
जिन्हें अब रावण अपना लग रहा है व उसके सम्मान और गरिमा की चिंता सता रही है, उनसे मेरी कोई सहानुभूति नहीं है और उनके बारे में मुझे कुछ कहना भी नहीं है। रावण के अपमान से कष्ट हो रहा हो, तो अपने घर से राम और हनुमान को हटा दें और रावण की पूजा करें। आप सीता को माँ भी कहेंगे और उस माँ का अपमान व अपहरण करने वाले का गुणगान भी करेंगे, तो आपको आईना देखकर स्वयं को अपने दोगलेपन का अहसास करवाना चाहिए।
आपकी भावना चाहे जो भी हो, लेकिन यह सत्य नहीं बदलेगा कि रावण एक बेईमान, लुटेरा, क्रूर, अय्याश, धूर्त और अहंकारी व्यक्ति था। आप विद्वत्ता को सज्जनता समझने की भूल कर रहे हैं। उसे आपको सुधार लेना चाहिए। आपके मन में रावण की चाहे जो छवि बसी हो, लेकिन मैं यही चाहता हूं कि दर्शक के मन में रावण की ऐसी ही छवि बने कि उसका नाम सुनकर मन में केवल घृणा व तिरस्कार का ही भाव आए क्योंकि उसकी विद्वत्ता और ज्ञान के आवरण में केवल अहंकार और क्रूरता ही छिपी हुई थी।