Home विषयऐतिहासिक विरासतनामा

हम हिंदू बहुत हल्ला मचाते हैं अपनी अस्मिता पर आक्रमण के विषय में लेकिन अपनी अस्मिता की रक्षा तो दूर उसे जानते तक नहीं।
हमारी स्थिति उस नालायक संतान की तरह रही है जो अपने माता/पिता की जीते में कद्र नहीं करते लेकिन उनके जाने के बाद छाती पीटते हैं।
नीचे के चित्र को ध्यान से देखिये।
क्या कोई बता सकता है यह क्या है?
दरअसल यह काल के गाल पर बहा हमारे इतिहास का आँसू है।
यह उसका स्मृति स्थल है जिसके पिता का नाम हर भारतीय के दिल में धड़कता है।
यह श्रीराम के पुत्र लव की आखिरी भौतिक स्मृति है जो उनके ही बसाए नगर में उपेक्षित पड़ी है।
एक समय था जब भारत के सम्राट श्रीराम ने बलूचिस्तान के हिंगलाज पीठ से पूरे पश्चिमोत्तर में गंधर्वों के विरुद्ध भरत के अभियान का निरीक्षण व निर्देशन किया और फिर भारत की सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए छह सैनिक छावनियों की स्थापना की, जिनमें से चार पुष्कलावती(चारसद्दा), तक्षशिला, कुशपुर (कसूर) और लवपुर(लाहौर) आज भी मौजूद हैं, जॉम्बीज की तरह क्योंकि उनकी आत्मा तो तभी समाप्त हो गई जब श्रीराम के हम नालायक वंशज मुस्लिमों को ये नगर दे बैठे।
श्रीराम का मंदिर तो बन रहा है लेकिन उनके बेटों, भतीजों की पवित्र स्मृतियों का क्या?

अनसंग हीरोज:#इंदु_से_सिंधु_तक’ केवल अतीत का विस्तृत गौरवगान ही नहीं इतिहास के महानायकों का कारुणिक रुदन भी है कि उनके उत्तराधिकारियों ने ही उनकी विरासत को बिसरा दिया है।

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