Home आर ऐ -ऍम यादव ( राज्याध्यक्ष) देश को संगठित करने के लिए धन की आवश्यकता
समाज हो या देश, संगठित हो कर लड़ने के लिए धन आवश्यक होता है। इसके लिए देश कर लेता है। करों से ही देश की अर्थव्यवस्था चलती है। युद्ध लड़ने के लिए पहले यह निर्धारित किया जाता है कि किस तरह से लड़ाई होगी और कितने दिन लड़ी जा सकती है। सब का कॉस्टिंग निकाला जाता है। विस्तृत विषय है, दो लाइन का नहीं।
मज्जब की खासियत उसकी कर वसूलने की मशीनरी है। जकाटैक्स है हर मज्जबी के लिए, और उसका प्रमाण भी निर्धारित है। वसूलने की कड़ी मशीनरी है, मुर्दा नहीं उठेगा दफन के लिए अगर क्षमता हो कर भी जकाटैक्स नहीं दिया होगा तो। सरकार का टैक्स मार सकते हैं भायजान, मज्जब का नहीं। यही विशेष व्यवस्था इस मकडजाल को सदा चैतन्य रखती है।
हिंदुओं में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी । ऊपर से सामाजिक तौर पर व्यक्ति की स्वरोजगार की क्षमता को भी वामियों ने खत्म कर दिया। समाजवाद के नाम पर parasite पोसने के लिए कर कुछ ऐसे बढ़ाए कि धन कमाने की कोई incentive ही नहीं रही। संविधान में ‘सोशलिस्ट’ और ‘सेक्युलर’ शब्द घुसेड़नेवाली डायन दादी के समय में तो एक करोड़ कमानेवाले के लिए 97% टैक्स था।
आदमी को चोर बना दिया काँग्रेस ने। मूल बात तो यह कर दी कि वाकई शरीफ आदमी को को भी चोर होने का ठप्पा लगा दिया। दाग लग गया तो फिर सफ़ेद नहीं रहा, फिर क्या स्लेटी, क्या काला । फिर उसे यह समझ में आ गया कि अपनी कमाई को बढ़ाना है तो उसके लिए डेयरिंग के काम करने पड़ते हैं, जिसमें बदनामी, जेल और खून खराबा भी हो सकता है। उसकी उतनी हिम्मत नहीं थी लेकिन पैसे बढ़ाने का लालच भी बलवतर था । तो उसने ऐसे लोगों से हाथ मिला लिया । इसका दिमाग और उसकी डेयरिंग, सही कोंबिनेशन बन गया, फिर उसमें नेशन का कुछ भी हो की फर्क पेंदा ? इंडिया ने हमको दिया क्या, इंडिया से हम ने लिया क्या, हम सब की परवाह करें क्यों, सब ने हमारा किया क्या ?
कम्युनिस्टों ने क्या किया तो सब से पहले डॉ आंबेडकर का नाम लेकर सब व्यावसायिकों से उनके व्यवसाय छुड़वाए। लेकिन कभी यह नहीं बोला कि डॉ आंबेडकर एक अर्थशास्त्री थे, तो ये वामियों वाला अधकचरा सुझाव उनका नहीं हो सकता था। व्यवसायों की जरूरत और उनका कमाने का पोटेन्शियल डॉ आंबेडकर अवश्य समझते। आप ही बताएं, क्या केश कर्तन की जरूरत कभी खत्म होगी ? क्या चर्मकार की जरूरत खत्म होगी ? क्या खटीक का धंधा कभी बंद होगा ? और अगर खटीक और चर्मकार जरूरी है तो क्या उनका मुख्य आधार चरवाहा धनवान नहीं होगा ? हर व्यवसाय की viability है, उसका विश्लेषण करने की दृष्टि डॉ अंबेडकर के पास अवश्य होगी, शिक्षा से अगर बिज़नसमन अपने व्यवसाय का उन्नयन कर सकता है तो अन्य व्यवसायी क्यों नहीं ?
क्या खटीक फूड टेक्नोलोजी नहीं सीख सकता ? किसने रोका है ? इससे उसके व्यवसाय को कहाँ तक ले जा सकता है किसी सोनकर बंधु को चर्चा करनी है तो स्वागत है। मांस का इतना बड़ा करोड़ों का मार्केट है, क्यों म्लेच्छों को छीनने दिया वामियों की बातों में आ कर ? डॉ आंबेडकर यह तो नहीं चाहते, क्या आप ने उनके म्लेच्छ सम्बंधित विचार पढे हैं भी ?
क्या जाटव लेदर टेक्नोलोजी नहीं सीखते ? क्या hand made का मार्केटिंग न हो पाता ? लेदर गूड्स का इतना बड़ा करोड़ों का मार्केट है, क्यों म्लेच्छों को छीनने दिया वामियों की बातों में आ कर ? डॉ आंबेडकर यह तो नहीं चाहते, क्या आप ने उनके म्लेच्छ सम्बंधित विचार पढे हैं भी ?
आज भीम होते तो मीम को कभी साथ न लेते इतना तो दावे के साथ कहूँगा। भारत से अलग होनेवाले रजाकार से बाबासाहेब कभी हाथ न मिलाते।
यह तो बस दो व्यवसाय गिनाए हैं, बाकी भी बात कर सकता हूँ, लेकिन उसमें मुद्दा भटक जाएगा ।
वामियों ने क्या किया तो सब से पहले यह स्थापित किया कि शिक्षा ही प्रगति का मार्ग है। अपने आप में यह बात गलत नहीं कही जा सकती। शिक्षा ही प्रगति का मार्ग है भी। लेकिन यह न भूलें कि यह शिक्षा वामियों से नियंत्रित रही।
नंबर लाना आवश्यक हो गया। उसके लिए मेहनत करो, सब छोड़कर पढ़ाई करो, कोचिंग लगाओ, सेटिंग लगाओ, बस नंबर लाने हैं।
लेकिन नंबर देनेवाला कौन ? उसकी नीयत का क्या ?
छात्र का वर्ष नहीं, माँ बाप की वर्षों की कमाई होती है। संतान जिंदगी भर की पूंजी का भी निवेश बन जाता है। माँ बाप का सब से भंगुर निवेश। और चूंकि शिक्षा महंगी है तो बच्चे भी कम होते होते एक पर ही आ गए। आप समझ सकते हैं माँ बाप की मानसिक हालत। बच्चा बुढ़ापे का मज़बूत सहारा न रहकर वो महंगा चाइनिज Vase बन जाता है, ज़रा किसी ने धक्का दिया तो खत्म।
आप समझ लीजिये कि यह निवेश आप के विकास के लिए नहीं बल्कि आप के विनाश के काम में लाया जाएगा। हमेशा आप उसे बचाने के चक्कर में अपना सब कुछ खो देंगे, वह भी अपनी मर्जी से।
और आप ने यह कभी नहीं सोचा होगा कि इसके जिम्मेदार है वामपंथी। देश को इस tipping point पर वे लाये हैं। इनका साथ दिया है कसाई और इसाइयों ने जिनके अपने अपने दीर्घकालीन अजेंडे हैं। लेकिन इन वामियों को क्या मिला ? ये तो जन्मना हिन्दू रहे हैं, क्या इनको देश या समाज के लिए कभी कोई भावना नहीं रही होगी ?
उत्तर नकार में ही आता है। कहीं भी ये बहस में आप को उत्तर नहीं देंगे कि बंगाल को इनहोने इतनी लंबी सत्ता में केवल कंगाल क्यों बना दिया। केरल का क्या ? यूपी या बिहार की भी जो वाट लगी उसमें इनकी हिस्सेदारी कितनी है।
ये केवल तोड़ सकते हैं, बांधने का कोई ब्लू प्रिंट इनके पास होता नहीं।
कभी पूछिए किसी भी काम्रेड से – भारत के लिए इनकी विजन क्या है । भारत महासत्ता बने इसके लिए इनका रोडमॅप क्या है । क्या ये चाहते भी हैं भारत महासत्ता बनें ? कभी था इनका रोड मॅप ?
इसका आधा उत्तर आप को पता है। आधा इसलिए कहता हूँ क्योंकि ये हमेशा स्वार्थी आत्मकेंद्रित बिकाऊ जीव रहे हैं। बस खरीदार का पट्टा अलग रहा है। कभी रूस था तो कभी चाइना । रूस को भारत अपने खेमें में अपना खरीदार चाहिए था। चाइना को हमें अपने से छोटा ही रखने में इंटरेस्ट है। वैसे तो ये अमेरिका का विरोध करते हैं लेकिन फोर्ड फ़ाउंडेशन क्या है आप ने सुना ही होगा । अमेरिका को हमारा मार्केट चाहिए, देश के तौर पर हमारी हैसियत बढ़े यह अमेरिका नहीं चाहती।
ये वामपंथी हमेशा समस्या की बात करेंगे, समाधान इनके पास कोई नहीं होता। जब आप के पास जो है उसे आप ने तोड़ दिया कि आप इनके गुलाम, बस इससे अधिक उनकी सोच नहीं जाती।
इसका कारण यह भी है कि ये महत्वाकांक्षी होते हैं और हमें कभी यह बात समझ में नहीं आई कि हमें इनको खरीदना चाहिए या कम से कम इनके जोड़ी के लोग खड़े करना चाहिए। हम सब मुफ्त में मांगते रहे और बदले में खुद को इनके हाथों लुटाते रहे। फ्री में कुछ नहीं आता।
बात घूम फिर के वहीं आती है – हिन्दू इकोसिस्टम, हिन्दू इकोनोमी। बिना अर्थ, सब व्यर्थ ।

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