एक अंग्रेज महिला से आज फेसबुक पर लंबी नोकझोंक हुई. महिला ऋषि सुनक पर नाराज़ थीं, बड़ी शिकायत थी कि ऋषि सुनक के पास बहुत पैसे हैं और वह गरीबों का दुख दर्द नहीं समझता.
मैंने कहा, ऋषि सुनक ने स्टॉक मार्केट से पैसे कमाए हैं, कोई विरासत में लेकर पैदा नहीं हुआ. उसके पिता अपने जीवन में वहीं थे जहां मैं हूं. वहां से आगे उसने जो बनाया है, अपनी काबिलियत से बनाया है. उसे सम्पदा अर्जित करना आता है…उसने अपने लिए किया, गोल्डमैन सैक्स के लिए किया, इंग्लैंड के लिए भी कर सकता है. इंग्लैंड को समृद्धि से अपराधबोध पालना बन्द करना पड़ेगा और फेबियन समाजवाद का स्वप्न छोड़ना होगा.
मैडम ने पूछा – और फेबियन उपलब्धि एनएचएस के बारे में क्या कहना है?
एनएचएस समाजवादियों का रामबाण है. एनएचएस की बात करते उनका सीना चौड़ा रहता है, चाहे अंदर से एनएचएस की खाट खड़ी हो. मैंने कहा – आपको एनएचएस पसंद है ना…यह भी अफोर्ड नहीं कर पाओगी अगर यूं ही सरकार निकम्मों पर पैसे खर्च करती रही. और एनएचएस भी इसलिए काम करता है क्योंकि यह अमीर से लेकर गरीब को देने का प्रपंच नहीं करता, अमीर और गरीब सबके लिए काम करता है. इसलिए मुफ्तखोरी बंद करो और काम करो.
अगला हथियार था, लेकिन हर कोई काम नहीं कर सकता…किसी के बच्चे छोटे हैं, किसी को कोई और मजबूरी है.
मैंने माना – जी हां! किसी किसी की कोई मजबूरी होती है. हर कोई काम नहीं कर सकता. पर जो लोग काम नहीं कर सकते, उनका ख्याल रखने के लिए परिवार नाम की संस्था बनी है. सरकार सबकी मजबूरी का ठेका नहीं ले सकती. फिर भी, थोड़ा बहुत जो बन पड़ेगा, सरकार कर देगी. पर दूसरों की कमाई पर किसी का हक नहीं बनता.
मैडम बोलीं – और जो किसी का परिवार ना हो तो? किसी की इनफर्टिलिटी हो. किसी का परिवार टूट गया हो. कोई एक एब्यूजिव रिलेशन में हो…
मैंने कहा – इनफर्टिली है तो इलाज कराओ. इलाज ना काम करे तो बच्चे गोद लो. और फैमिली टूट गई हो तो झेलो. तुम्हारी फैमिली टूटी तो हम क्यों झेलें भला? फैसलों के अपने नतीजे होते हैं और वे नतीजें फैसले लेने वाले को भुगतने होते हैं.
उसने कहा – तुम कैसे आदमी हो? तुममें जरा भी एंपैथी नहीं है?
मैंने कहा – ऐसा है कि एंपैथी की मुझे कोई कमी नहीं है. जितनी मांगोगी, बोरे भर के दे दूंगा. लेकिन मुफ्त की एंपैथी. तुम अपने खर्चे से दुखी रहो, मेरी फोकट की एंपैथी का सारा स्टॉक तुम्हारा है. बस, अपने दुखी होने के लिए मेरे पैसे मत खर्चो.
वह महिला अब गुस्से के मारे मुझे बुरा भला कहने लगी… तुम टोरी हो, टोरी ऐसे ही होते हैं…
मैंने कहा – अगर टोरी प्रधानमंत्री थैचर नहीं होती ना तो इंग्लैंड कटोरा लेकर ग्रीस और श्रीलंका से आगे खड़ा मिलता. और तुम ज्यादा मोरल एग्जिबिशनिज्म ना करो. दूसरों के पैसे से जीना चाहती हो, और दो पैसे की कृतज्ञता नहीं है. अनग्रेटफुल पैरासाइट…
अब उसके सारे तर्क खत्म हो चुके थे…लेकिन ब्रह्मास्त्र मिल गया था… मैंने उसे पैरासाइट कह दिया. उसने कहा – ऐसे शब्द कहने के लिए तुम्हें रिपोर्ट कर दिया जा सकता है. ऐसे कॉमेंट और पोस्ट्स ट्विटर और फेसबुक से डिलीट कर दिए जाते हैं.
मैंने कहा – मुझे जो थोड़ी बहुत अंग्रेजी आती है, उसमें ऐसे लोगों को पैरासाइट ही कहा जाता है जो दूसरों के पैसों पर पलते हैं. पर क्या है कि मुझे ज्यादा अंग्रेजी नहीं सीखनी है…इसलिए भांड़ में जाओ. और उसे ब्लॉक करके चलता बना.
मजे की बात रही कि वामपंथियों के पैंतरों का पूरा स्पेक्ट्रम एक ही कन्वर्सेशन में दिख गया. संपन्न और सक्षम से ईर्ष्या, फिर गरीबों के लिए करुणा का दिखावा (लेकिन दूसरों के कॉस्ट पर), मोरल सुपीरियरिटी का दावा, सामने वाले को गिल्ट ट्रिप देने की कोशिश और फिर विक्टिम आइडेंटिटी का क्लेम…